बिहार की सियासत में इन दिनों महाभारत चल रही है ये महाभारत हस्तिनापुर का सिंहासन पाने के लिये नहीं बल्कि राजनीति में शक्ति प्रदर्शन के लिये हैं । हालांकि बिहार में चल रही इस राजनीति की पटकथा पिछले आठ महिनों से लिखी जा रही थी और अंतत: नीतीश ने 2020 के घात का बदला 2021 के जून में ले लिया साथ ही एक तीर से कई निशाना भी साध गये।
बिहार की राजनीति में आप नीतीश को दरकिनार कर नहीं चल सकते ये 2013 में नीतीश ने भाजपा को भी बता दिया था और 2013 काबदला भाजपा से 2015 में बिहार की राजनीति में मृतप्राय हो चुके लालू की पार्टी राजद को जिंदा कर ले लिया। आज बिहार में अगर राजद की 74 सीटें हैं तो उसमें नीतीश का कम योगदान नहीं है। हालांकि ये बातें नीतीश को अंदर ही अंदर कचोटति रहती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के चिराग ने न खुद अपना घर रौशन किया बल्कि चाचा नीतीश के भी घर को रौशन नहीं होने दिया। इसे लेकर जदयू और भाजपा के बीच भी थोङा मनमुटाव हुआ और चिराग ने खुद को नरेंद्र मोदी रुपी राम का हनुमान बताने से भी गुरेज नहीं की। लेकिन नीतीश खामोशी से सब देखते रहे और चिराग को एक ऐसा जख्म मिला की चिराग की खुद की रौशनी तो फिलहाल ओझल हो ही गई और बचा खुचा बंगला भी चला गया। चिराग के साथ जो हुआ या जिसका तानाबाना बुना गया वो महाभारत के धृतराष्ट्र की याद ताजा कर जाता है और अव चाचा पारस उस नीतीस का बखान किये नहीं थकते जिस नीतीश के राजनीतिक साम्राज्य को उनका भतीजा नेस्तनाबूत करना चाहता था। नीतीस ने चिराग के बंगले को तीर से भेदकर जो बदला लिया उसे चिराग ताउम्र भूला नहीं पायेंगे ।
नीतीश एक तीर से कई निशाना साध गये जिसका परिणाम यह निकला की कल तक नीतीश को आंख दिखाने और तेजप्रताप से मिलकर लालू से बात करने वाले जीतन राम मांझी को देर शाम नीतीश के दरवार में हाजिरी लगानी पङी तो लालू की तारीफ करने वाले भीआईपी के मुकेश सहनी भी अव इस घटनाक्रम के बाद राजनीति के नेपथ्य में चले गये हैं। इधर कांग्रेस भी अव दवाव में है क्योंकि उसके 10 विधायकों के टूटने की खवर लंबे समय से चल रही है तो वहीं राजद को भी नीतीश ने यह साफ संकेत दे दिया है कि नीतीश को सत्ता से बगैर उनके चाहे हटाना किसी के लिये आसान नहीं है। हालांकि नीतीश के इस खेल के पीछे भाजपा का भी अप्रत्यक्ष तरीके से ही सही लेकिन समर्थन जरुर है क्योंकि बगैर भाजपा के चाहे पारस को लोकसभा में नेता का पद चंद घंटों के भीतर नहीं मिल सकता था। चिराग ने भी अपनी पीसी में अपने इस दर्द को यह कहकर बता दिया था कि अगर वो हनुमान हैं तो फिर उनके राम को उनके दर्द का अहसास हो गया होगा।
बिहार में लगातार पिछले कुछ दिनों से इस बात की चर्चा हो रही थी की भाजपा और नीतीश का साथ लंबे समय तक नहीं चलेगा इस घटना ने उसपर भी फिलहाल पूर्णविराम सा लगा दिया है। फिर भी राजनीति है जहां कुछ भी ठोक बजाकर कहना मुश्किल है लेकिन नीतीश के इस गेम प्लान ने एक वार फिर यह बता दिया है कि आज की बिहार की राजनीति नीतीश से शुरु होकर नीतीश पर ही खत्म हो जाती है शायद तभी तो बिहार की राजनीति का चाणक्य नीतीश को यूं ही नहीं कहा जाता ।