डॉ धनंजय गिरि
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद उसके भविष्य और विस्तार को लेकर भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक स्पष्ट और दूरदर्शी दृष्टि रखी थी। उनका मानना था कि किसी भी राजनीतिक दल को लक्ष्य तक पहुँचने के लिए केवल चुनावी सफलता पर्याप्त नहीं होती, बल्कि उसके लिए मजबूत, विचारनिष्ठ कैडर के साथ-साथ समाज के हर वर्ग तक प्रभावी पहुँच बनाना और सदस्यता को निरंतर व व्यापक रूप से बढ़ाना आवश्यक है। अटल जी का यह विचार आज भारतीय राजनीति में एक सिद्धांत के रूप में स्थापित हो चुका है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में अटल जी के इसी संगठनात्मक सुझाव का पूरी निष्ठा से पालन किया गया। परिणामस्वरूप भारतीय जनता पार्टी आज न केवल भारत की, बल्कि पूरे विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। यह उपलब्धि केवल संख्या की दृष्टि से नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की सक्रियता, सामाजिक समावेश और राष्ट्रवादी विचारधारा के व्यापक प्रसार का भी प्रतीक है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। इससे पहले 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय ही वे एक युवा संस्थापक नेता के रूप में उभरे थे। प्रारंभ से ही उन्होंने संगठन निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। सीमित संसाधनों और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी उन्होंने जनसंघ को वैचारिक मजबूती, अनुशासन और राष्ट्रव्यापी विस्तार की दिशा दी। उनका विश्वास था कि विचार और संगठन की शक्ति ही किसी आंदोलन को स्थायित्व प्रदान करती है।
अटल जी की राजनीति सत्ता-केंद्रित नहीं, बल्कि राष्ट्र और संगठन-केंद्रित थी। वे मानते थे कि जब तक पार्टी समाज के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुँचेगी, तब तक उसका उद्देश्य अधूरा रहेगा। यही कारण है कि उन्होंने युवाओं, महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, वंचित वर्गों और मध्यम वर्ग को संगठन से जोड़ने पर विशेष बल दिया। आज भाजपा का व्यापक सामाजिक आधार उसी सोच का परिणाम है।
25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में माता श्रीमती कृष्णा देवी और पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के ऐसे युग-पुरुष थे, जिनका जीवन आज भी राष्ट्र के लिए प्रेरणास्रोत है। 16 अगस्त 2018 को उन्होंने अपनी 94 वर्षों की उद्देश्यपूर्ण जीवन-यात्रा पूर्ण की, किंतु उनके विचार, मूल्य और कर्म आज भी भारत की चेतना में जीवित हैं।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुआयामी था—वे मेधावी छात्र थे, प्रखर वक्ता थे, स्वतंत्रता सेनानी थे, संवेदनशील पत्रकार थे, भाषा के स्वाभिमानी थे और एक निर्भीक व कुशल प्रशासक भी। राष्ट्रीय अखंडता, सांस्कृतिक चेतना और लोकतांत्रिक मूल्यों के वे अनन्य पुजारी थे। इन्हीं गुणों के कारण वे केवल समर्थकों में ही नहीं, बल्कि अपने विरोधियों के हृदय में भी विशेष स्थान रखते थे। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि “अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक पूरे युग का प्रतिनिधित्व करते हैं।”
अटल जी का संपूर्ण जीवन राष्ट्र की अखंडता और एकात्मता को समर्पित रहा। कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के प्रश्न पर वे प्रारंभ से ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ खड़े रहे। “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे”—इस विचार से वे जीवन भर भावनात्मक रूप से जुड़े रहे। सत्ता से बाहर रहते हुए संघर्ष और प्रधानमंत्री बनने के बाद समाधान—कश्मीर को लेकर यही उनका जीवन-लक्ष्य था। उनका प्रसिद्ध कथन, “यदि पाकिस्तान कश्मीर के बिना अधूरा है, तो भारत पाकिस्तान के बिना भी पूर्ण है,” उनके राष्ट्रनिष्ठ दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर और हिंदू शरणार्थियों से जुड़ी नीतियों की खुलकर आलोचना की। संसद से सड़क तक उन्होंने चीनी साम्राज्यवाद का विरोध किया। 1959 में संसद में दिया गया उनका ऐतिहासिक वक्तव्य—“तिब्बत की आज़ादी की लाश पर हम चीन से दोस्ती का महल नहीं बना सकते”—आज भी भारत की विदेश नीति की चेतावनी की तरह गूंजता है। 1961 में गोवा, दमन और दीव की मुक्ति पर उन्होंने कहा था, “यह युद्ध नहीं, भारत की खोई हुई सांसों की वापसी है।” वेरुवाडी के प्रश्न पर उनका स्पष्ट मत था कि देश की भूमि किसी सरकार की जागीर नहीं, बल्कि राष्ट्र की अमानत है।
पत्रकारिता में उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, वीर अर्जुन और स्वदेश के माध्यम से राष्ट्रवादी चेतना को स्वर दिया। उनका मानना था कि पत्रकारिता केवल समाचार देना नहीं, बल्कि राष्ट्र को दिशा देना है। आज के पत्रकारिता जगत के लिए यह विचार मार्गदर्शक है।
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के विकास को नई गति दी। आर्थिक सुधार, बुनियादी ढांचा, शिक्षा, सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन—हर क्षेत्र में उन्होंने दूरदर्शी पहल की। 24 दलों के गठबंधन का संतुलित संचालन उनकी राजनीतिक परिपक्वता का प्रमाण था। “स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना” और “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना” ने भारत की आर्थिक धमनियों को सशक्त किया। उनका विश्वास था कि सड़कें राष्ट्र की धमनियां हैं—यदि वे रुक गईं, तो विकास भी रुक जाएगा।
शिक्षा के क्षेत्र में “सर्व शिक्षा अभियान” और गरीबों के लिए “अंत्योदय अन्न योजना” उनकी संवेदनशीलता का प्रतीक थीं। “नदी जोड़ो परियोजना” जैसी पहल उनकी दूरदृष्टि को दर्शाती है। आज की संचार क्रांति और मोबाइल फोन का लोकतंत्रीकरण भी उनके ही प्रयासों का परिणाम है। “जय जवान, जय किसान” के साथ “जय विज्ञान” जोड़कर उन्होंने आधुनिक भारत का मंत्र दिया।
मई 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण उनके अदम्य साहस और राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक था। अंतरराष्ट्रीय दबावों और प्रतिबंधों के बावजूद उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर और जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया। उनका स्पष्ट संदेश था—भारत अपनी सुरक्षा के प्रश्न पर किसी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
विदेश नीति में उन्होंने शक्ति और शांति का संतुलन साधा। लाहौर बस यात्रा उनकी शांति-प्रयासों की प्रतीक थी, वहीं कारगिल युद्ध में उनके नेतृत्व में भारत ने निर्णायक विजय प्राप्त की। वे शांति के पक्षधर भी थे और आवश्यकता पड़ने पर दृढ़ निर्णय लेने वाले नेता भी।
अटल जी राष्ट्र को सर्वोपरि रखने वाले नेता थे। विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने राष्ट्रीय हित में सरकारों का समर्थन किया—चाहे 1971 का बांग्लादेश युद्ध हो या 1994 में कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय मंच। यह आचरण उन्हें आदर्श लोकतांत्रिक नेता बनाता है।
हिंदी के प्रति उनका प्रेम अद्वितीय था। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में दिया गया उनका भाषण भाषाई स्वाभिमान का प्रतीक है। मातृभाषा में शिक्षा का उनका आग्रह आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से साकार हो रहा है। वे प्रख्यात कवि भी थे—उनकी कविताओं में राष्ट्र, लोकतंत्र और मानवीय संवेदनाएं झलकती हैं।
लोकतंत्र की रक्षा के लिए उन्होंने आपातकाल के दौरान कारावास भी स्वीकार किया। सत्ता के लिए अनैतिक समझौतों से इंकार करना और सरकार खो देना—यह उनकी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता का सर्वोच्च उदाहरण है।
आज, जब हम अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म शताब्दी वर्ष को मना रहे हैं, तब यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि उनका संगठनात्मक दृष्टिकोण कितना कालजयी और प्रासंगिक था। भाजपा का वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी पार्टी बनना केवल वर्तमान नेतृत्व की सफलता नहीं, बल्कि अटल जी द्वारा रखी गई मजबूत वैचारिक और संगठनात्मक नींव का प्रतिफल है।
अटल जी का जीवन और विचार आज भी भाजपा के लिए मार्गदर्शक हैं। उनका यह विश्वास कि “संगठन ही शक्ति है” आज भी पार्टी की कार्यशैली, विस्तार और सफलता का मूल मंत्र बना हुआ है। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।




















