अमित शाह का संकेत और मध्यप्रदेश की नई सत्ता-व्यवस्था

 

कृष्णमोहन झा

भारतीय राजनीति में कई बार सबसे निर्णायक घटनाएँ भाषणों से नहीं, बल्कि मौन बैठकों और प्रतीकात्मक संकेतों से तय होती हैं। ग्वालियर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का हालिया दौरा भी इसी श्रेणी में आता है। इसे केवल एक सरकारी कार्यक्रम या विकास केंद्रित आयोजन मानना राजनीतिक दृष्टि से भारी भूल होगी। दरअसल, यह दौरा मध्यप्रदेश की भविष्य की सत्ता-संरचना और नेतृत्व के स्थायित्व पर अंतिम मुहर लगाने वाला साबित हुआ है।

ग्वालियर के ताज होटल के मराठा सूट में अमित शाह और वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के बीच हुई एकांत चर्चा, उसके बाद प्रदेश के अन्य दिग्गज नेताओं से अलग-अलग संवाद, और फिर मंच से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मुक्त कंठ से की गई प्रशंसा—यह पूरा क्रम किसी संयोग का परिणाम नहीं था। यह एक सुनियोजित राजनीतिक पटकथा थी, जिसका उद्देश्य भोपाल की राजनीति को यह स्पष्ट रूप से समझाना था कि अब सत्ता की धुरी, दिशा और निर्णय केंद्र कहां स्थित है।

कैलाश विजयवर्गीय केवल एक वरिष्ठ नेता नहीं हैं, बल्कि वे भाजपा के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने संगठन और सरकार—दोनों में शक्ति संतुलन के कई दौर देखे हैं। अमित शाह के साथ उनकी एकांत बैठक को इस दृष्टि से देखना चाहिए कि पार्टी नेतृत्व अब पुराने अनुभव और नए नेतृत्व के बीच किसी भी प्रकार की असमंजस की स्थिति को समाप्त करना चाहता है।

इसके बाद मंच से मुख्यमंत्री मोहन यादव की जिस तरह प्रशंसा की गई, वह केवल उनके कार्यों की सराहना नहीं थी। वह उन सभी राजनीतिक अटकलों पर विराम था, जो यह मानकर चल रही थीं कि नेतृत्व का केंद्र कहीं और से संचालित हो सकता है। दिल्ली ने यह साफ कर दिया कि *मध्यप्रदेश में अब सत्ता का एक ही चेहरा है मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव।
अमित शाह की शैली को समझने वाले जानते हैं कि वे सार्वजनिक मंच से बिना कारण किसी की तारीफ नहीं करते। उनकी हर प्रशंसा के भीतर संगठनात्मक अनुशासन का संदेश छिपा होता है। ग्वालियर से दिया गया यह संदेश केवल मुख्यमंत्री के समर्थन का नहीं था, बल्कि पार्टी के भीतर मौजूद सभी संभावित शक्ति-केंद्रों के लिए भी था।

यह संकेत था कि अब समानांतर राजनीति, अलग-अलग गुटों की सक्रियता या व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिए सीमित स्थान है। हाईकमान चाहता है कि प्रदेश में राजनीति समन्वय, स्पष्ट नेतृत्व और अनुशासन के सिद्धांत पर आगे बढ़े।
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव को अब ‘फ्री हैंड’ मिलने जा रहा है। लेकिन इसका अर्थ केवल प्रशासनिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है। राजनीति में फ्री हैंड का मतलब होता है—
निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता,
और उन निर्णयों की पूरी जवाबदेही।
यह वही भरोसा है, जो केंद्रीय नेतृत्व केवल तब देता है, जब उसे लगता है कि नेतृत्व प्रयोग नहीं, बल्कि दीर्घकालिक निवेश* है। अमित शाह का खुला समर्थन इस बात का संकेत है कि पार्टी अब मध्यप्रदेश में अस्थिरता या प्रयोग की राजनीति से आगे बढ़कर स्थायित्व चाहती है।
अब सवाल यह नहीं है कि मुख्यमंत्री कौन है—यह तय हो चुका है। असली सवाल यह है कि भविष्य के सत्ता-समीकरण कैसे आकार लेंगे।
पहला, संगठन और सरकार के बीच संतुलन अब स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री के पक्ष में झुका हुआ दिखाई देता है। इसका मतलब यह नहीं कि संगठन कमजोर होगा, बल्कि यह कि संगठनात्मक निर्णय और सरकारी निर्णय एक ही दिशा में चलेंगे।
दूसरा, वे नेता जो अब तक अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर असमंजस में थे, उन्हें यह संदेश मिल चुका है कि आगे बढ़ने का रास्ता मुख्यमंत्री के साथ समन्वय से होकर ही जाता है। अलग-थलग चलने की राजनीति अब लाभकारी नहीं रहेगी।
तीसरा, मंत्रिमंडल और प्रशासनिक संरचना में भी आने वाले समय में ऐसे संकेत दिख सकते हैं, जो यह दर्शाएँ कि मुख्यमंत्री को नीतिगत और प्रशासनिक फैसलों में अधिक स्वतंत्रता दी जा रही है। यह बदलाव धीरे-धीरे लेकिन स्थायी होगा।
दिल्ली से आया यह संदेश भोपाल की राजनीति के लिए एक साथ अवसर भी है और चेतावनी भी। जो नेता इस संकेत को समय रहते समझ लेंगे, वे सत्ता के केंद्र में बने रहेंगे। जो इसे अनदेखा करेंगे, उनके लिए राजनीतिक हाशिये पर जाने का खतरा बढ़ेगा।
राजनीति में सबसे बड़ा जोखिम अस्पष्टता होती है। ग्वालियर में अमित शाह ने उसी अस्पष्टता को समाप्त किया है। अब यह साफ है कि आने वाले समय में मध्यप्रदेश की राजनीति एक नेतृत्व, एक निर्णय केंद्र और एक दिशा के सिद्धांत पर आगे बढ़ेगी।
दिल्ली ने अपना संदेश दे दिया है। अब भोपाल की राजनीति की परीक्षा है। सवाल अब ‘कौन मुख्यमंत्री है’ का नहीं, बल्कि ‘कौन इस नेतृत्व के साथ कैसे खड़ा होता है’ का है।
राजनीति में जो संकेत समय पर पढ़ लेता है, वही भविष्य का हिस्सा बनता है।
बाकी—सत्ता की कहानी में केवल संदर्भ बनकर रह जाते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक हैं )