सरकार के सधे कदम से मिल सकता है समस्या का समाधान

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर अब चुनावी रैलियों का दौर तो लगभग खत्म हो गया है , लेकिन अब तक जो भी चुनावी रैलियां हुई , जो भी रोड शो हुए क्या उसका कोई दुष्परिणाम नहीं होगा ?

नई दिल्ली। कोरोना (COVID19) महामारी विश्व को ही अपनी गिरफ्त में लेकर यह साबित कर दिया है कि यदि प्रकृति की नजर टेढ़ी हो गई, तो फिर उसे संभालने में कितने धनबल और कितने जनबल का नुकसान उठाना पड़ सकता है । यह अब सब  पिछले एक  सालों से सब देख रहे है , लेकिन फिलहाल उसका निराकरण निकलने में हम सफल नहीं हो सके है । कोरोना का जो दूसरा फेज शुरू हुआ है वह कितना मारक है इसकी किसी ने  कल्पना तक नहीं की थी।

दबाई और इंजेक्शन (Injection) का यह हाल है की बाजार से वह गायब है  अथवा यह कह सकते हैं कि ब्लैक मार्केटियर ने उन प्राणरक्षक इंजेक्शन और दवाओं को  अपने गोदान में  ऊंची कमाई के लिए काल कोठरी में बंद  कर रखा है । सरकार को इस बात की फुरसत नहीं कि वह ऐसे देश द्रोहियों पर कड़ी कार्यवाही करे जो जीवन रक्षक दवाओं से अपना धन बढ़ना चाहते हैं ।

इसके कई कारण हैं और जो प्रमुख कारण है वह पांच राज्यों में हो रहे विधान सभा के चुनाव तथा कई राज्यों के ग्राम पंचायतों का चुनाव । जिनपर देश की जनता ने भरपूर विश्वास किया , अपने समर्थन दिया उनकी भूमिका केवल राज्यों की तो छोड़िए गली गली घूमकर अपनी सरकार बनवाने की हो गई है । जिस दिल्ली से देश चलता है वह दिल्ली राजनेता विहीन होकर रह गई क्योंकि चाहे सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के सब अपने को खलीफा साबित करने से उन पांचों राज्यों की जनता को फुसलाने – झुठलाने में लगे हुए थे कि किसी न किसी प्रलोभन में आकर जनता उनसे रीझ जाय और  उनकी सरकार बन जाय । परिणाम क्या हुआ ? पूरे देश के शमशान घाट और कब्रिस्तान लाशों से पट गए और सरकार चुनाव जीतने के लिए खासकर एक महिला के पीछे अपने घुड़साल के सारे घोड़े खोल दिया ।

सांप गुजर जाने के बाद लकीर पीटने की कहावत अपने देश में ही चरितार्थ होती हैं । जब महामारी (COVID19) अपने चरम पर है तब नए  नए आदेश जारी करके जनता में क्या साबित करना चाहते है ? क्या इस महामारी के दूसरे फेज के  आने से हम बेफिक्र हो गए थे । कोई माने या ना माने लेकिन , इसे स्वीकार कर लेने चाहिए कि बड़ी बड़ी रैलियों और रोड शो का ही दूरगामी परिणाम है कि बिहार में महामारी ने अपना चरम रूप धारण कर लिया है और मुख्यमंत्री को 15 मई तक लॉकडॉन की घोषणा करनी पड़ी । चुनाव के समय तो यह बात आम होती है की गांव के गांव रैलियों में भाग लेने के लिए बाहुबल से और धन बल से बुलाए जाते है जिन्हे अपनी सुरक्षा के लिए कोई परवाह नही, उसका दुष्परिणाम दूरगामी चुनाव के बाद ही देखने को मिलता है । अभी दिल्ली – मुंबई का जो हाल है वही हाल बिहार का होने जा रहा है और वही हाल कुछ दिन बाद बंगाल में भी देखने को मिलेगा । इसके बावजूद यदि जनता नहीं चेती और सरकार नहीं जागी तो फिर क्या होगा इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है।

बंगाल सहित पांच राज्यों में जो चुनाव (Election) हो चुके हैं या हो रहे हैं, उनकी स्थिति का आकलन करें । रिजल्ट तो दो मई को आना होगा , लेकिन सबसे अधिक जिसपर सबका  ध्यान केंद्रित है वह राज्य है पश्चिम बंगाल (West Bengal) । वहां आठ चरणों में से छह चरणों में चुनाव हो चुके हैं । 294 सीटों पर हो रहे विधान सभा के चुनाव में तृणमूल  के पास 211 सीट है और ममता बनर्जी दस वर्षो से सत्ता की कुर्सी पर है । इस चुनाव में ममता बनर्जी पर सारे आरोप लगे , लेकिन अडिग होकर उन्होंने उसका सामना किया । उनके करीबियों को तोड़ा मरोड़ा गया , उनके पैर भी टूटे , लेकिन फिर भी वह बेखौफ चुनाव प्रचार करती रही और अब भी ममता बनर्जी का दावा है कि  बंगाल की जनता उन्हे फिर से चुनकर सत्ता की कुर्सी सौंप रही है क्योंकि उन्होंने कोई कमाई नहीं की है और जनता के साथ कोई धोखा नहीं किया और अपना गोदाम नहीं भरा । लेकिन , सत्ता के लिए बेताब भाजपा को अपनी कमी तो दिखती नहीं है और तरह तरह के आरोप लगाने की जो आदत है उसे वह उससे बाज भी नहीं आ रहे हैं ।