COVID19 Update : खुशखबरी ! गांवों में नजीर बनता कोरोना टीकाकरण

भारत गांवों में बसता है। ऐसे में जब कोरोना टीकाकरण अभियान गांवों की ओर चला और लोगों की भागीदारी बढी, तो जाहिर है कि इसके सकारात्मक परिणाम आएंगे। आखिर, कोरोना के खिलाफ वैक्सीन ही सबसे कारगर हथियार है।


नई दिल्ली। कोरोना की वैक्सीन अब वॉक इन भी शुरू हो गई है इसलिए दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अभी तक वैक्सीन न लगा पाने वाले लोगों के मन में इस तरह के विचार कौंधना साधारण बात है वह इसलिए क्योंकि शहर में सबकुछ सर्व सुलभ है। फर्ज कीजिए किसी नये वायरस के लिए गांव के लोगों को किस तरह प्रोत्साहित किया जा रहा होगा, वह भी ऐसी स्थिति में जबकि देश में पहली बार व्यापक स्तर पर कोई वैक्सीन व्यस्क लोगों को लगाई जा रही है और वह ओरल रूप में नहीं बल्कि सूई के रूप में दी जा रही है।

स्थितियां इतनी आसान भी नहीं है जिनता कि मेट्रो शहर में न्यूजपेपर पढ़ते हुए पढ़ना कि फलां राज्य के फलां जिले में शत प्रतिशत कोरोना टीकाकरण किया जा चुका है। पोलियो की जंग जिनते के लिए जिस स्तर का प्रयास हमने सालों तक किया,कोविड वैक्सीन के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को वैक्सीन सेंटर तक लाने के लिए उसी स्तर के प्रयास बेहद कम समय में किए जा रहे हैं। शहरी आबादी को प्रोत्साहित करने जैसी मशक्कत लगभग न के बराबर है, इसलिए गांवों में कोविड वैक्सीनेशन के लिए मानवीय और चिकित्सीय संसाधानों की असल परीक्षा है।

गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के कोविड टीकाकरण के आंकड़े प्रभावित करने वाले हैं। 22 जून मंगलवार को मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 15 लाख लोगों का टीकाकरण किया गया। इन राज्यों के जिलों में टीकाकरण के लिए पंचायत स्तर पर बेहतरीन प्रयास किए जा रहे है। मध्यप्रदेश में खाटला सभाओं से जनजातीय समुदाय के बीच वैक्सीन को पहुंचाया जा रहा है, खाट सभाओं की तरह की खाटला बैठकों का जनजतीय समाज में काफी प्रभाव है, बैठक में स्वीकार की गई बातों को समुदाय के सभी लोग स्वीकार करते हैं।

इसी तरह तड़वी को भी प्रयोग किया गया, तड़वी लीडर समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं और समुदायों की समस्या का समाधान करने के लिए लोग तड़वी नेता की मदद लेते हैं। मध्यप्रदेश झाबुआ जिले के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. राहुल गनावा ने बताया कि स्थानीय प्रयास से झाबुआ में बीस प्रतिशत टीकाकरण हो चुका है, शहडोल में पांच प्रतिशत टीकाकरण हो चुका है। यहां की शिवपुरी जिले की एक पंचायत को कोरोना टीकाकरण में बेस्ट पंचायत अवार्ड दिया गया है। राज्य के मांडला और डिंडोरी समुदाय को नसबंदी के लिए जाना जाता है, यहां टीकाकरण की टीम को वैक्सीन के प्रति विश्वास जिताने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। वहीं गुजरात के जनजतीय इलाकों में वैक्सीनेशन के लिए डेयरी नेटवर्क का प्रयोग किया गया।

बनासकांथा जिले में डेयरी मिल्क कारोबार से जुड़ा हर व्यक्ति की कोविड वैक्सीन को लेकर जागरुक है। गुजरात के राज्य टीकाकरण अधिकारी नयन कुमार पोपट लाल जानी 14 जनजातीय जिलों के टीकाकरण के लिए बहुत आश्वस्त हैं। दाहोद, पंचमाल, नर्मदा, महिसागरपुर आदिवासी बहुल जिलों में कोविड वैक्सीन के लिए जिला स्तरीय योजनाएं बनाई गईं। अब थोड़ा पर्वतीय इलाकों में टीकाकरण की स्थिति को समझते हैं, हिमाचल प्रदेश के कोमिक गांव को पहला शत प्रतिशत टीकाकरण गांव घोषित किया जा चुका है। समुद्रतल से 15 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थिति इस गांव तक पहुंचने के रास्ते काफी दुर्गम हैं, घर काफी दूर और संगठित नहीं हैं। बावजूद इसके यहां लोगों ने कोविड संक्रमण की गंभीरता और आवश्यकता को देखते हुए ऐसे क्षेत्र जहां मोबाइल का नेटवर्क नहीं पहुंचता वहां बैलेट बॉक्स के माध्यम से टीकाकरण के लिए आवेदन किया और नंबर आने पर लोगों को वैक्सीन दिया गया। प्रशासनिक अमले ने सभी तक वैक्सीन पहुंचाने की हर संभावनाओं को तलाशा और वैक्सीन पहुंचाई गई। पूर्वोत्तर राज्यों के नागालैंड के तीन गांव याली, मोलेंडेन और लांनकेंमडेंग गांव में 18 साल से अधिक आयु वर्ग का शत प्रतिशत कोविड टीकाकरण किया जा चुका है। यहां घनघोर बारिश के मौसम में तीस से 40 किलोमीटर की दूरी तक तय स्थान पर टीकाकरण के लिए पहुंचने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के लिए दुर्गम रास्ते कभी बाधा नहीं बने।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण के मामलों में राज्यों की अब तक की स्थिति संतोषजनक है, वैक्सीनेशन से जुड़ी शंका और भ्रम को दूर करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। कोरोना की पहली और दूसरी लहर का रौद्र रूप देखने के बाद वैक्सीन को लेकर शंका होना बेमानी सा लगता है, जिन्होंने संक्रमण की वजह से किसी अपने के जाने का दंश झेला वह सोच रहे हैं काश वैक्सीन पहले आ जाती?