लोकतंत्र के पर्व का पहला उपहार दलबदल?

कल हरियाणा में इनेलो में फिर घर वापसी हुई है रामपाल माजरा की जिन्हें इनेलो का प्रदेशाध्यक्ष भी बना दिया गया ।

नई दिल्ली। लोकतंत्र एक पर्व है और जैसे हर बड़े पर्व से पहले छोटे छोटे पर्व भी मनाये जाते हैं । जैसे सीधी दीपावली नहीं आती, पहले नवरात्र, फिर दशहरा, छोटी दीपावली और फिर कहीं जाकर दीपावली आती है, धूमधाम से ! ऐसे ही लोकतंत्र का पर्व‌ सीधे नहीं आता, इसकी भी पहले कुछ रस्में हैं, जैसे चुनाव आने से पहले दलबदल ! सबसे पहली झांकी हर चुनाव में दलबदल होती है और यह शुरू हो चुकी है । कल हरियाणा में इनेलो में फिर घर वापसी हुई है रामपाल माजरा की जिन्हें इनेलो का प्रदेशाध्यक्ष भी बना दिया गया । वे दो साल पहले भाजपा में चले गये थे लेकिन जल्द ही मोहभंग हो गया और इनेलो यानी अपने घर लौट आये ! इनेलो में नफे सिंह राठी की दुखद घटना के बाद प्रदेशाध्यक्ष पद खाली पड़ा था, सो रामपाल माजरा की पदोन्नति भी हो गयी, बन गये प्रधान जी ! इसी तरह कांग्रेस से रूठ कर असल में राव बहादुर चले गये जजपा में ! जजपा तो गठबंधन तोड़ दिये जाने से घायल बैठी है और इन पर मरहम लगा दी राव बहादुर ने‌ ! वैसे ये मूल इनेलो के ही नेता हैं लेकिन परिवार बौछार, पार्टी बंट गयीं तो कोई नये घर जा रहा है तो कोई पुराने घर लेकिन घर वापसी हो रही है और आगे भी होती रहेगी। राव बहादुर को भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से जजपा की टिकट मिल जाने की आस है और उनका कहना भी है कि कांग्रेस में रहते यह आस पूरी होती नहीं दिखती थी, तो समय रहते सही जगह आ गये !  अभी तो हिसार के भाजपा सांसद व पूर्व आईएएस अधिकारी बृजेन्द्र सिंह ने भाजपा का ’कमल’ लौटा दिया यह कहते हुए कि पहले दिन ही यह बात समझ आ गयी थी कि यहां मेरी बात बनेगी नहीं और बात नहीं बनी । इस तरह बृजेन्द्र सिंह कांग्रेस में शामिल हो गये । अभी उनके पिता चौ बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस में घर वापसी बाकी है । इस तरह पिता पुत्र ’हाथ’ थामने‌ और हाथ से हाथ मिला अभियान चला देंगे । वैसे चुनाव आने से पता चलता है कि किसका, किस पार्टी में दम घुट रहा था, चुनाव न आयें तो पता भी न चले कि दम उखड़ रहा है या दिल लग रहा है ! अक्सर दलबदल के बाद यही बात सुनने को मिलती है कि फलानी पार्टी मे मेरा दम घुट रहा था और दिन मैं यह घुटन बर्दाश्त नहीं कर सकता था । इसलिए मैंने वह पार्टी छोड़ दी और फिर कुछ आरोप भी लगाये जाते हैं कि ऐसी ऐसी योजनायें चल रही थीं, जिनसे मेरा कोई मेल‌ नहीं खाता था ! बिनमेल ब्याह की तरह बस निभाये जाते हैं और फिर चुनाव पर फैसला हो जाता है कि अब तलाक लेना ही पड़ेगा और फटाक से दलबदल हो जाता है । आपको पता है विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली को पूरा भरोसा था कि कांग्रेस टिकट दे देगी और वे कांग्रेस के झंडे को लेकर प्रचार भी कर चुके थे लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस का टिकट नहीं मिला तो रातों रात जजपा ने सम्पर्क किया और वे चुनाव मैदान में उतरे और जीते, मंत्री बने और कहा कि यदि कांग्रेस में टिकट मिल भी जाता, विधायक भी बन‌ भी जाता पर मंत्री तो न बन पाता ! भैया इस दलबदल के बड़े बड़े गुण ! सुन सके तो सुन और समझ सके तो समझ, नहीं तो ऐसे ही राजनीति करते रह जाओगे ! न टिकट मिलेगी, न झंडी वाली कार मिलेगी ! अभी तो यह दलबदल का पहला पर्व‌ शुरू हुआ है, आगे आगे देखिये होता है क्या ! इब्तदाये राजनीति है, रोता है क्या!