नई दिल्ली। योगी गोरखनाथ के गुरू स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ इस आसन में बैठा करते थे। हालांकि यह एक दुष्कर आसन है इसलिए इसे सरल करके अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन का नाम दिया गया है। इसे करने के लिए सबसे पहले जमीन पर बैठकर बाएं पांव की एड़ी को दाएं तरफ से लाकर नितम्बों के पास लाएं, ताकि एड़ी का हिस्सा नतम्बांे को छुए। उसके बाद दाएं पांव को बाएं पांव के घुटने के पास जमीन पर पांव के पंजे को जमाकर रखें। फिर बाएं भुजा को वक्षस्थल के पास लाकर कांख के हिस्से को दाएू पांव के घुटने के नीचे जंघा के ऊपर स्थापित करें। अब दाएं हाथ को पीछे की तरफ से कमर को लपेटकर और नाभि को छूने का प्रयास करें। मेरूदंड को अपने अवलंब पर पूरा मोड़ दें, ताकि दोनों कंधे एक रेखा में हो जाएं। जितना अधिक आप मोड़ देंगे, उतना अधिक लाभ होगा। कुछ देर इसी अवस्था में रुकें।े इसी प्रकार इस आसन को दूसरी ओर से टांग और हाथ को बदल कर करें। दोनों ओर से कम से कम 2-2 बार अवश्य करें। श्वास की गति सामान्य रहेगी।
मिलते हैं कई लाभ
– यह आसन मेरूदण्ड को लचीला और मजबूत बनाता है।
– कमर, कंधो, जांघो, बाजुओं और पीठ की मांसपेशियों को मजबूती देता है यह आसन।
– मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण है यह आसन।
– इससे पेनक्रियाज ग्लेण्ड उत्तेजित होते हैं।
– फेफड़े और हृदय को इस आसन से बल मिलता
कुछ सावधानियां भी
– योगिक क्रियाएं योग गुरु के सान्निध्य में ही करें।
– स्लिप डिस्क, साइटिका, उच्च रक्तचाप, हृदय, हर्निया, अल्सर, मिर्गी स्ट्रोक के रोगी व गर्भवती महिलाएं योगिक क्रियाएं नहीं करें।