Guest Column : अब न टूटे किसानों के साथ संवाद का सिलसिला

यह संतोष का विषय है कि किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने एम एस पी के मुद्दे को सुलझाने के लिए समिति के गठन का सरकार का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और एक ऐतिहासिक किसान आन्दोलन की सुखद परिणिति का मार्ग प्रशस्त हो गया।

कृष्णमोहन झा
यह निःसंदेह संतोष का विषय है कि ‌32 किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने 378 दिन पुराना किसान आन्दोलन स्थगित करने की घोषणा कर दी है। केंद्र सरकार ने एम एस पी को छोड़कर किसानों की बाकी मांगों पर अपनी लिखित सहमति देकर इस आंदोलन की वापसी का मार्ग प्रशस्त किया है इसलिए किसान संगठनों के साथ ही वह भी साधुवाद की हकदार है। एम एस पी पर जो गतिरोध बना हुआ था उसे दूर करने की सरकार ने अपनी ओर से जो सराहनीय पहल की उससे किसान संतुष्ट दिखाई दे रहे हैं इसलिए अब यह उम्मीद की जा सकती है कि किसानों को उस मुद्दे पर पुनः आंदोलन की आवश्यकता महसूस नहीं होगी । किसान संगठनों के नेता अब यह मान रहे हैं कि सरकार उनके साथ किया गया वादा पूरा निभाने में संशय की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रखेगी। कृषि कानूनों की वापसी और बाकी मांगों पर सरकार की सहमति से प्रसन्न आंदोलनकारी किसान 11दिसंबर को सिंधु , टिकरी और गाजीपुर बार्डर से संयुक्त मोर्चे में शामिल 32 संगठनों के नेतृत्व में फतह मार्च के रूप में अपने राज्यों के लिए प्रस्थान करेंगे। कृषि कानूनों के विरोध में 24 सितंबर 2020 को पंजाब में शुरू हुए किसान आंदोलन को वापस लेने की घोषणा संयुक्त मोर्चे के द्वारा पंजाब में ही 15 दिसंबर को जाएगी। अगले साल 15 जनवरी को संयुक्त मोर्चे की बैठक संपन्न होगी जिसमें सरकार द्वारा उनसे किए गए वादों की प्रगति की समीक्षा की जाएगी और उसके अनुसार आगे का कार्यक्रम तय किया जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को आश्वस्त किया है आंदोलन ‌‌‌‌‌‌‌ के दौरान जिन किसानों के विरुद्ध मुकदमे दर्ज किए गए हैं उन्हें वापस लेने के लिए संबंधित राज्य सरकारों ने सहमति प्रदान कर दी है । रेल्वे द्वारा दर्ज मामले भी तत्काल वापस ले लिए जाएंगे।इसके अलावा आंदोलन में मृत किसानों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए भी संबंधित राज्य सरकारें राजी हैं। केंद्र सरकार ने किसानों को यह आश्वासन भी दिया है वह विवादास्पद बिजली बिल को किसान संगठनों से बातचीत के बाद ही संसद में पेश करेगी।न ए प्रदुषण कानून के सेक्शन 15 को हटाने पर भी सरकार तैयार हो गई है। इस तरह आंदोलन कारी की अधिकांश मांगों को केंद्र सरकार द्वारा मान लिए जाने के बाद किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने अपना आंदोलन समाप्त करने की घोषणा की।


सप्ताह पूर्व जिस दिन राष्ट्र के नाम अपने संदेश में तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी उसी दिन से सारा देश यह उम्मीद कर रहा था कि इन कानूनों का शुरू से ही विरोध कर रहे कुछ राज्यों के आंदोलन कारी किसान अब अपने अपने घरों को लौट जायेंगे लेकिन प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद भी आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेताओं के मन में कुछ संशय बना हुआ था इसलिए वे सरकार से कुछ और बिंदुओं पर स्पष्टीकरण चाह रहे थे। यूं तो प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद सरकार की नेकनीयती पर संदेह व्यक्त करने की कोई गुंजाइश ही बाकी नहीं रह गई थी फिर भी सरकार की ओर से आंदोलनकारी किसानों के नेताओं को संतुष्ट करने की कोई कसर बाकी नहीं रखी गई और सरकार की उस ईमानदार पहल का सुखद परिणाम भी जल्द ही सामने आ गया जब आंदोलनकारी किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने अपना आंदोलन वापस लेने के लिए 11 दिसंबर की तारीख की घोषणा कर दी। प्रधानमंत्री ने किसानों से यह अपील उसी दिन की थी जिस दिन उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में भरे मन से तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी। सारा देश अब यही चाह रहा है कि आंदोलनकारी किसान प्रधानमंत्री की अपील पर सकारात्मक रुख प्रदर्शित करते हुए अपनी बाकी मांगों पर सरकार के साथ सार्थक संवाद करने के लिए पहल करें। यहां यह भी गौर करने लायक बात है किजो किसान संगठन इतने माहों से किसान आन्दोलन की बागडोर संभाले हुए थे वे सब भी अब आंदोलन जारी रखने के लिए एकमत नहीं थे और तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद आंदोलनकारी किसानों का एक बड़ा वर्ग घर लौटने की तैयारी में जुट गया था। यदि कुछ किसान संगठन एम एस पी पर कानून बनाए जाने की मांग को लेकर आंदोलन जारी रखने के पक्ष में हैं तो भी उनके बीच आंदोलन को वर्तमान स्वरूप में ही जारी रखने के बिंदु पर पूर्ण सहमति दिखाई नहीं दे रही थी। अनेक किसान संगठन यह मानते हैं कि किसानों का असली विरोध तो नए कृषि कानूनों को लेकर था और जब सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए हैं तब बाकी मांगों के संबंध में सरकार से बातचीत का मार्ग अपनाना ही उचित होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में यह कहा था कि सरकार ने किसानों के साथ बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले रखे हैं। एम एस पी का मुद्दा सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री ने समिति बनाने की घोषणा कर दी है जिसके लिए सरकार ने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का फैसला किया है और उसने समिति के लिए किसान संगठनों से नाम भी मांगे हैं। कुल मिलाकर अब यह माना जा सकता है कि सरकार कृषि सुधारों की दिशा में हुई प्रगति को निरंतर जारी रखना चाहती है लेकिन सरकार को भी यह अहसास हो गया है कि भविष्य में किसानों के हित‌ में भी कोई बड़े दूरगामी फैसले करने के पूर्व किसान संगठनों को भी विश्वास में लेना उचित होगा ताकि बढ़े हुए कदम पीछे खींचने की स्थिति निर्मित न हो सके।
तीनों कृषि कानूनों की वापसी की सारी संवैधानिक प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के बावजूद किसान संगठनों के नेता एम एस पी पर कानून बनाने और आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा देने और आंदोलन कारी किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने की मांगों पर अडिग नजर रहे थे ।अब यह मांगें भी सरकार ने मान ली हैं। एम एस पी को कानून का रूप देने की मांग पर कुछ किसान संगठनों के नेताओं की राय थी कि उनका आंदोलन मुख्य रूप से तीनों कानूनों के विरोध में था जो सरकार ने वापस ले लिए हैं अतः अब इस आंदोलन को समाप्त कर एम एस पी जैसे मुद्दों को सरकार के साथ बातचीत करके सुलझाने की कोशिश करना उचित होगा जबकि राकेश टिकैत जैसे नेता यह कह रहे थे कि आंदोलन को जारी रखकर ही एम एस पी कानून की मांग मानने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है।