पहले चरण में 30 करोड लोगों को टीकाकरण के लिए चुना गया। 26 जनवरी, 2021 की शाम तक का सरकारी आंकडा बताता है कि शुरु के दस दिनों में केवल 20 लाख 29 हजार 424 लोगों को टीका लगा। अब सबसे अहम सवाल यही खडा होता है कि जब शुरुआत में, जबकि लोगों की उत्कंठा सबसे अधिक होता है, 10 दिनों में 20 लाख लोग आए, तो पहले चरण के 30 करेाड लोगों तक पहुंचने में सरकार को कितना समय लगेगा ? भारत की कुल आबादी 135 करोड से अधिक बताई जाती है। इस पूरी आबादी को टीकाकरण करने में कितना समय लगेगा ? क्या यह दशकों तक चलेगा ? यदि हां, तो इसका कैसा प्रभाव होगा ?
दरअसल, शुरुआती 10 दिनों के टीकाकरण अभियान में सरकारी व्यवस्था पूरे लाम पर दिखीं। राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूर पूर्वोत्तर के राज्यों तक सरकार की ओर से व्यापक प्रबंध किया गया। मगर कमी देखी जा रही है, तो वह है भरोसे का। देश में टीकाकरण अभियान से पहले ही हराम और हलाल के फेर में कोरोना वैक्सीन को उलझाया गया। यह कुछ कम हुआ, तो इसके बाद मुद्दा उठा कि कोविशील्ड बेहतर या कोवैक्सीन ? क्या दोनों वैक्सीन पूरी प्रक्रिया से गुजरी है ? यदि यह टीका प्रभावी और सुरक्षित है, तो देश के राजनेताओं और अधिकारियों ने सबसे पहले दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई ?
असल में, कई दूसरे देशों के राष्ट्ाध्यक्षों ने पूरी दुनिया के सामने आकर कोरोना का टीका लगवाया। भारत में भी कई लोग यही उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाॅक्टर हर्षवर्धन से कर रहे थे। हालांकि, अपने संबोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि जिन लोगों ने कोरोना महामारी के शुरूआती दौर से लेकर अब तक लोगों की जान बचाई है। जिन्होंने पूरा काम किया है, सबसे पहले कोरोना टीका पर पहला अधिकार उनका है। इसलि पहले चरण में 1 करोड स्वास्थ्यकर्मी, 2 करोड फ्रंटलाइन वर्कर्स – इसमें सेना, अर्द्धसैनिक बल, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी जैसे समुदाय के लोग आते हैं। उसके बाद 27 करोड में वैसे लोगों को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 50 साल से अधिक है अथवा जो किसी गंभीर बीमारी की चपेट में हैं।
इस संदर्भ में बार-बार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाॅक्टर हर्षवर्धन, नीति आयोग के डाॅ वीके पाॅल, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली के निदेशक डाॅ रणदीप गुलेरिया ने जनता की समझाइश की। डाॅ वीके पाॅल, डाॅ रणदीप गुलेरिया, आईसीएमआर के वैक्सीन विशेषज्ञ डाॅ एनके अरोडा जैसे लोगों ने पहले ही दिन कोरोना का टीका लगवाकर देश की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की कि यह टीका पूरी तरह सुरक्षित है। बावजूद इसके, दिल्ली में ही कई डाॅक्टरों ने इस वैक्सीन को लेेने से मना कर दिया। राममनोहर लोहिया अस्पताल में पहले दिन पंजीकरण के बाद भी डाॅक्टरों ने टीका लगवाने से मना कर दिया। इसके बाद कई दूसरे जगहों से भी ऐसी ही खबरें आईं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए एक रैपिड रेस्पाॅन्स रूम का गठन किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव की अगुवाई में यह काम करता है। इसके तहत देश के जाने माने वैज्ञानिक और डाॅक्टरों की टीम लोगों की शंकाओं को दूर करने का काम कर रही है। अब तो समय ही बताएगा कि समस्त देशवासियों को कोरोना वैक्सीन को लेकर कब तक भरोसा कायम होगा ?
हालांकि, कुछ दिन पहले यह खबर आई थी कि दूसरे चरण में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना वैक्सीन लगवाएंगे। इसके साथ ही तमाम केंद्रीय मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री भी ऐसा ही करेंगे। दरअसल, कोरोना टीकाकरण अभियान के दूसरे चरण में उन सभी लोगों को वैक्सीन लगाने की योजना है जिनकी उम्र 50 साल के ऊपर है। ऐसे में सभी मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और विधायक जिनकी उम्र 50 साल से अधिक है, को दूसरे चरण के दौरान कोरोना की वैक्सीन लगाई जाएगी। हालांकि कोरोना टीकाकरण का दूसरा चरण कब शुरू होगा, इस बारे में फिलहाल कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। कोरोना टीकाकरण अभियान के दूसरे चरण में ज्यादातर नेताओं को कोरोना की वैक्सीन लग जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरे चरण के लिए जो आयु वर्ग निर्धारित किया गया है उसमें देश के 75 फीसदी सांसद, भारत सरकार के 95 फीसदी से ज्यादा कैबिनेट मंत्री, 76 फीसदी से ज्यादा राज्यों के मुख्यमंत्री और करीब 82 फीसदी राज्य मंत्री कवर हो सकते हैं।