निशि भाट
कहा जाता है कि किसी एक परिवार को सुधारना हो तो एक पुरूष को शिक्षित करो, जबकि किन्हीं दो परिवारों को सुधारना है तो एक महिला को शिक्षित करो। शिक्षा महिलाओं के आत्मनिर्भर होने की पहली सीढ़ी है। शिक्षा और आत्मनिर्भरता के मूल वाक्य को समझने के बाद राज्य सरकारों ने भी इस दिशा में सराहनीय पहल की हैं। शिक्षा नीति और स्वरोजगार की नई राहें महिलाओं को आगे बढ़ने का खुला आसमान दे रही हैं।
महिला आत्मनिर्भरता की बात जब आदिवासी और जनजाति बहुल मध्य-प्रदेश जैसे राज्य की हो तो भौगौलिक परिस्थितियां और सामाजिक ताने बाने को जोड़कर महिला विकास को देखा जाना जरूरी हो जाता है। जिससे बिना समग्र विकास की बात बेमानी हो जाती है। महिला कल्याण के लिए प्रतिबद्ध राज्य सरकार ने सबसे पहले योजनाओं पर खर्च होने वाले बजट को बढ़ाया, वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश में जहां महिला एवं बाल विकास का वार्षिक बजट 262.60 करोड़ रुपए मात्र था, इसे बढ़ाकर वर्ष 2023-24 में 14,688 कर दिया गया। बढ़े हुए बजट को महिला कल्याण की विभिन्न योजनाओं पर खर्च किया गया, यह सुनिश्चित किया गया कि योजना के लिए पात्र सभी महिलाओं तक इसका लाभ पहुंचे। जिसका सबसे पहला असर महिला साक्षरता पर पड़ा, वर्ष 2005-06 में प्रदेश में महिला साक्षरता दर जहां मात्र 44 प्रतिशत थीं, वर्ष 2022-23 में यह दर बढ़कर 65.4 प्रतिशत हो गई।
साक्षर महिला न सिर्फ निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होती है बल्कि वह आत्मविकास के लिए भी बेहतर विकल्प तलाश सकती है। बाल विवाह दर कम होने के साथ ही इसका असर ड्राप आउट या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाली बेटियों पर पड़ा। राज्य में ड्राप आउट का आंकड़ा वर्ष 2005-06 में 18.26 प्रतिशत था, जो वर्ष 2022-23 में घटकर 6.63 प्रतिशत ही रह गया है। प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बेहतर काम कर रही है, चार से पांच महिलाओं का समूह स्व रोजगार को संचालित कर रहा है और वह घर का खर्च चलाने में अपना योगदान दे रही हैं। प्रदेश सरकार की सहकार योजनाओं से महिलाओं को इस बावत काफी बल मिला। प्रदेश के दीदी कैफे को आज भला कौन नहीं जानता? जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने कार्यक्रम मन की बात में कर चुके हैं। एक समय था जबकि महिलाओं के पास साहूकारों से उच्च ब्याज दर पर ऋण लेकर काम शुरू करने का ही विकल्प मौजूद था, जिससे उनकी अधिकांश पूंजी ब्याज में ही चली जाती थी। गांवों में सहकार से महिला उद्यमिता को आगे बढ़ाने में मदद मिली है, महिलाएं छोटे छोटे कामों का प्रशिक्षण प्राप्त कर आगे बढ़ रही है और अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ने का रास्ता दिखा रही है। अकेले मध्यप्रदेश में चार लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 47 लाख से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी हैं। इन स्वयं सहायता समूहों को पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक का क्रेडिट लिंकेज दिया जा चुका है। छोटे प्रयासों से शुरू स्वयं सहायता समूहों के बड़े उद्यम आजीविका मार्ट पोर्टल पर 600 करोड़ रुपए के उत्पादों का कारोबार कर चुके हैं। प्रदेश के सात पोषण आहार संयंत्रों का संचालन करने वाले महिला स्वयं सहायता समूहों का प्रतिवर्ष का टर्न ओवर 750 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।
महिला उद्यमिता नई पीढ़ी के लिए एक रोल मॉडल का काम करता है, जिन महिलाओं को सरकारों की गलत नीतियों की वजह से अनुकूल परिस्थितियां नही मिली थी, उन्होंने अवसर मिलते ही अपनी योग्यता को साबित भी कर दिया। महिला स्वयं सहायता के बढ़ते कदमों को देखते हुए प्रदेश सरकार ने महिलाओं के लिए इंडस्ट्रीयल क्लस्टर बनाने की भी घोषणा की है, इसके साथ 100 करोड़ रुपए के नारी सम्मान कोष की भी स्थापना की गई है। पढ़ी लिखी महिलाओं को राज्य में ही स्वरोजगार के अवसर मिल सकें, इसके लिए कई स्टार्टअप योजनाएं शुरू की गई हैं। नई स्टार्ट अप नीति 2022 में महिला स्टार्ट अप्स को विशेष स्थान दिया गया। वर्तमान में प्रदेश में महिलाओं द्वारा कुल 1345 स्टार्ट अप संचालित किए जा रहे हैं। महिलाओं के स्टार्ट अप को क्रेताओं की कमी न हों, इसकी भी व्यवस्था की है। महिला उद्यमों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकारी खरीद में उन उत्पादों को प्राथमिकता दी जाती है, जिन्हें महिलाओं द्वारा तैयार किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना योजना ने प्रारंभिक स्तर पर आर्थिक तंगी का समाधान कर दिया है। इसमें प्रदेश की 1.24 करोड़ से अधिक महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपए दिए जा रहे हैं, जिसकी धनराशि कुछ दिन पहले ही बढ़ाकर 1250 रुपए कर दी गई। इससे महिलाएं परिवार की छोटी जरूरतों को खुद ही पूरा करने में सक्षम हो गईं, धन की अधिक जरूरत होने पर महिलाएं दो प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण ले सकती हैं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत 21 साल की होने पर बच्चियों को एक लाख 43 हजार रुपए की धनराशि दी जा रही है, जिससे बेटियां लखपति बन गई हैं।
स्वामित्व और निर्णय लेने का अधिकार ऐसे दो अहम फैसले प्रदेश सरकार द्वारा किए गए, जिससे समाज में महिलाओं का कद ऊंचा हो गया। मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत बनाएं जाने वाले मकानों का स्वामित्व महिला और पुरूष दोनों को दिया गया। जिससे किसी एक का मालिकाना हक न हों, इन आवासों की संयुक्त चाबियां भी दी गईं। शराब का सेवन कई परिवारों का तबाह कर देता है, इसका निर्णय अब महिलाओं के पास होगा कि किस क्षेत्र में शराब की दुकान खोली जाएं या नहीं, इसके लिए प्रदेश की आबकारी नीति में बदलाव करने का पूरा खाका तैयार कर लिया गया है। एक अत्यंत महत्वकांक्षी योजना के तहत जमीन या मकान की रजिस्ट्री घर की महिला सदस्य के नाम कराने पर प्रदेश सरकार ने पंजीयन शुल्क में तीन प्रतिशत से घटाकर एक प्रतिशत कर दिया, जिसके काफी उत्साहजनक परिणाम देखे गए और महिलाओं के पक्ष में संपत्ति पंजीकरण में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई।
महिला स्वावलंबन और विकास का दौर अभी शुरू हुआ है, जिसे अभी बहुत आगे जाना बाकी है। अवसर मिलते ही अपनी योग्यता साबित कर महिलाओं ने यह दिखा दिया है कि समाज का कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं। मुबारक महिलाओं यह जीत जारी रहनी चाहिए—
(लेखिका पत्रकार हैं)