क्या नीतीश पर भारी पड़ रही है लालफिताशाही ?

सुशासन बाबू की छवि लिए मुख्यमंत्री नीतश कुमार से राज्य के जनप्रतिनिधियों की शिकायत है कि राज्य के नौकरशाह उनकी नहीं सुनते। विधायक और मंत्री क्या करें ? जब नौकरशाह ही सब करेंगे, जो जनप्रतिनिधि जनता को क्या जवाब देंगे ?

 

पटना। लोकतंत्र-व्यापकता लिये एक ऐसा शब्द जिससे यह पता चलता है कि जनता का जनता के लिये जनता के द्वारा शासन । भारतीय संविधान भी कमोवेश इसकी यही व्याख्या करता है लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं हैं और लोकतंत्र की परिभाषा आज के परिप्रेक्ष्य में बदलति हुई हो गई है तंत्र का लोक यानी जनता पर शासन । दरअसल में बिहार में पिछले 24 घंटे से एक नाटक शुरु हुआ है और उसके नायक के तौर पर मदन सहनी उभर कर सामने आये हैं। अव बिहार की सियासत में फिलहाल नायक तो नीतीश हैं लेकिन मदन की नई नायकी नीतीश पर भारी पङ सकती है। लेकिन बिहार में पहली वार ऐसा नहीं हुआ है इससे पहले भी नीतीश सरकार पर लालफिताशाही को बढावा देने का ारोप लगता रहा है। 2011-12 में बतौर मुख्यमंत्री नीतीश खुद भी कई बार कह चुके हैं की वे बढति लाल फिताशाही से परेशान हैं और उन्हें ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं।

लालफिताशाही का मतलव होता है अधिकारियों की मनमर्जी। ये भी कोई नई बात नहीं है और इससे पहले भी अधिकारियों की मनमर्जी चलति रही है औकर आगे भी चलेगी। लेकिन मदन सहनी को ये बातें इसवार कुछ ज्यादा सालने लगी तो वे मीडिया के सामने आकर अपनी वेदना को शब्दों में पीङो कर अपनी ही सरकार की नीयत पर सवाल खङे कर दिया । जव सरकार का एक मंत्री ही सरकार के सिस्टम की पोल खोलने लगे तो विपक्ष हमलावर होगा ही तो लगे हाथ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी ने फिर से कह डाला कि ये सरकार खुद तीन माह में गीर जायेगी। दरअसल में तेजस्वी लगातार इधर दिल्ली में रहे हैं तो हो सकता है कि वो ज्योतिष सिख रहे हों। लेकिन इतना तयहै कि तेजस्वी अगर शासन में आये तो वे निश्चित तौर पर अपने पिता की तरह शासन करेंगे जिनके राज में लालफिताशाही कराह रही थी । एक वजह ये भी हो सकती है कि आज लालफिताशाहों को मनमर्जी करने की छूट दे दी गई हो।

लालफिताशाही में मुख्य रुप से आईएएस और आईपीएस आते हैं और उनको तो ब्रिटिश कानून ने ही सबसे बङे अधिकारी का तमगा दे रखा है तो साहव फिर मंत्री की क्या सुनेंगे और बेचारे विधायक जी को तो बैचारा ही रहने दिजीये। दरअसल में समस्याकी जङ में है जनप्रतिनिधियों की शिक्षा को लेकर किसी कानून का न होना और यही वजह है कि अंग्रेजी बोलनेवाले अधिकारीयों को लगता है कि जनप्रतिनिधि को कुछ पता नहीं है तो वे अपनी मर्जी की चलायेंगे और रही सही कसर नीतीश जी जैसे माननीय मुख्यमंत्री पूरी कर देते हैं जो अधिकारियों के सामने अपने मंत्रीयों को भाव ही नहीं देते। आज से कुछ दिन पहले भी नीतीश जी के एक दुलरुआ अधिकारी के सामने राजद का एक विधायक सर सर कहकर अपनी फरियाद कर रहा था और अधिकारी अपने रौव में थे। बाद में वो वीडीयो भी खुव वाईरल हुआ लेकिन नीतीश जी के चहेते अधिकारी का मजाल है जो कोई कुछ विगार पायेगा। ऐसे कई उदाहरण बिहार में 2005 से लेकर अभी तक देखने को मिले हैं। हां ये बात अलग है कि लालू जी के शासनकाल में बैगन के खेत में खङे होकर यही अधिकारी जेठ की दुपहरी में मीटींग करते थे। छोङिये लालू जी के शासनकाल को अभी तो बिहार में सुशासन बाबू का शासन है जिसमें लालफिताशाही पर बोलना या लिखना भी गुनाह है।

बहरहाल बिहार में अव लालफिताशाही को लेकर आवाजें मुखर हो सकती हैं क्योंकी जनप्रतिनिधि से लेकर आम आवाम तक इनसे परेशान हैं । दूसरी बात यह भी है कि देश में जबतक अशिक्षा रहेगी और लोग अपने अधिकारों को लेकर जागरुक नहीं होंगे तव तक लालफिताशाही का रुतवा बरकरार रहेगा । फिर भी पहले से लोग अव ज्यादा संवेदनशील होते जा रहे हैं और इसे और ज्यादा आगे बढाने की जरुरत है ताकि आनेवाले दिनों में किसी राज्य में लालफिताशाही से परेशान होकर कोई मत्री इस्तीफा नां दे सके ।क्योंकि इससे उस लोकतंत्र की आत्मा जरुर कराह रही होगी जिसकी कल्पना गांधी ने की थी….