कर्नाटक शपथ ग्रहण : विपक्ष की एकजुटता की ओर कदम

-कमलेश भारतीय

आखिर कर्नाटक में मुख्यमंत्री का फैसला हो गया । जैसे तैसे कांग्रेसियों के हाथ जुड़ पाये ये सोनिया गांधी ने डी के शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनने के लिये मनाया , तब कहीं जाकर संकट हल हुआ । सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार ने अपने अपने पद की शपथ ली । इनके अतिरिक्त आठ और मंत्रियों ने भी शपथ ली । इस शपथ ग्रहण समारोह को विपक्ष ने एकजुटता और शक्ति प्रदर्शन के रूप में प्रदर्शित किया । इस शपथ ग्रहण समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार , उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव , छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री भूपेंद्र बघेल , हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू भी शामिल हुए । कांग्रेस ने उन पांच गारंटियों को भी पहले ही दिन लागू करने की घोषणा की जिन्हें चुनाव के दौरान घोषणाओं के रूप में पेश किया था । उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नहीं आये । आप और डीआरएस को निमंत्रण ही नहीं दिया गया था । असल में कांग्रेस ने आप के असली एजेंडे को समझ लिया है कि यह तो भाजपा की परोक्ष मददगार पार्टी साबित हो रही है । जैसे उत्तराखंड एक उदाहरण माना जा सकता है । बसपा से भी दूरी बना कर रखी । पिछले दस साल से बसपा प्रमुख मायावती अपनी छाप नहीं छोड़ सकी हैं दलित मतदाताओं पर !
विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश शपथ ग्रहण समारोह के बहाने काफी सही कदम है । नीतीश कुमार ने बीच में कमल के फूल की पेटिंग बना कर पाला बदल लिया था । इससे विपक्षी एकता कमजोर हुई थी । पर भाजपा ने न तो नीतीश कुमार को राष्ट्रपति बनाने योग्य समझा और न ही उपराष्ट्रपति । आखिर नीतीश कुमार का मोहभंग हुआ और वे फिर पलटी मार गये ! ममता बनर्जी ने पश्चिमी बंगाल का चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में खुद को पेश करना शुरू किया लेकिन तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन जाने के बाद कुछ होश आई है । इसी प्रकार शरद पवार की उलटबांसियां भी कम नहीं ! कभी अघाड़ी सरकार बनवाते हैं तो कभी भाजपा की ओर झुकते नजर आते हैं !
सन् 2024 के लोकसभा चुनाव तक विपक्ष नये नये प्रयोग करेगा और यदि एकजुट हो गया तो चुनौती पेश करने लायक हो जायेगा !
दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा जरूर
हर हथेली खून से तर और ज्यादा बेकरार !