नई दिल्ली। अन्य जरूरी खनिज तत्वों की तरह फास्फोरस शरीर के लिए बहुत आवश्यक है, लेकिन किडनी रोगियों को इसका सेवन बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। शरीर में अत्यधिक उच्च फास्फोरस का स्तर, हाइपरफॉस्फेटिमिया की स्थिति को जन्म दे देता है। इस स्थिति में लाल चकत्ते, हड्डी या जोड़ों में दर्द, खुजली, मांसपेशियों में ऐंठन, मुंह के आसपास सुन्नता और झुनझुनी आदि लक्षणों को महसूस किया जाता है। शरीर में बहुत अधिक फॉस्फेट की मात्रा विषाक्तता उत्पन्न करती है। साथ ही फास्फोरस की अधिकता से सम्बंधित जटिलताओं में अंगों और कोमल ऊतकों का सख्त होना शामिल है।
आमतौर पर किडनी रोगियों में हाइपरफॉस्फेटिमिया, जैसी बीमारी देखी जाती है। बता दें कि हाइपरफॉस्फेटिमिया में मरीज के शरीर में फास्फोरस का स्तर बढ़ जाता है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है, जैसे फॉस्फेट का अत्यधिक सेवन, फॉस्फेट उत्सर्जन में कमी आदि। हाइपरफॉस्फेटिमिया वाले रोगियों को मांसपेशियों में ऐंठन, सुन्नता या झनझनाहट की समस्या होती है। उनमें हड्डी या जोड़ों में दर्द, थकान, सांस की समस्या, एनोरेक्सिया, उल्टी और नींद में गड़बड़ी आदि जैसे लक्षण नजर आते हैं।
डॉक्टर सुदीप सिंह सचदेवा (नेफ्रोलॉजिस्ट) कहते हैं कि आमतौर पर फॉस्फेट आंत में पचे हुए खाने से एब्जॉर्ब होता है। सामान्य परिस्थिति में यदि शरीर में फॉस्फेट का स्तर बढ़ जाता है तो किडनियां इन्हें संतुलित करने में सहायक होती हैं। लेकिन अगर किडनी की कार्य प्रणाली में गड़बड़ी हो तो इससे हाइपरफॉस्टिमिया की समस्या होती है।
हाइपरफॉस्फेटिमिया के उपचार के लिए सही समय पर निदान करना आवश्यक है। विभिन्न उपचारों की मदद से रक्त में फॉस्फेट के स्तर को सामान्य किया जा सकता है। लेकिन इससे पहले जरूरी है कि डायट में कम से कम मात्रा में फास्फोरस का सेवन करें। सॉफ्ट ड्रिंक, कार्बोनेटेड पेय, चॉकलेट, टिन मिल्क, प्रॉसेस्ड मीट, प्रॉसेस्ड चीज, जंक फूड, आइसक्रीम, बीन्स, ब्रोकली, कॉर्न, मशरूम, कद्दू, पालक, शकरकंद, मीट, मछली, कॉटेज चीज, मोजरेला चीज आदि का सेवन भी कम करना चाहिए।