किसान आंदोलन: हस्तक्षेप के बाद समिति और सुप्रीम कोर्ट भी आए सवालों की जद में

नई दिल्ली। करीब दो महीने होने को हैं। केंद्रीय मंत्रियों से कई दौर की बातचीत हो गई। कई मंत्रियों ने अपील की। देश के सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया। वस्तुस्थिति समझने-बूझने के लिए चार सदस्यीय समिति बनाई। फिर भी आंदोलन जारी है। किसानों की मांग अपनी जगह कायम है कि जब तक नए कृषि कानूनों को खत्म नहीं किया जाता है, आंदोलन जारी रहेगा। अव्वल तो यह कि किसान नेता जमकर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर सवाल उठा रहे हैं। संभवतः सुप्रीम कोर्ट के किसी भी हस्तक्षेप पर इस प्रकार का सवालिया निशान शायद ही पहले कभी लगा होगा।

इस लिहाज से देखें, तो मौजूदा किसान आंदोलन को इस बात का श्रेय देना होगा कि उसके नेतृत्व ने कुछ अद्भुत समझ दिखाई है। पहले उसने अपने आक्रोश को महज सरकार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन उद्योग घरानों की इस मामले में खुल कर चर्चा की, जिन्हें इन कानूनों से सीधा लाभ पहुंचेगा। इसी तरह उसने न्यायपालिका की संवैधानिक भूमिका और आज के माहौल में उसकी बन गई भूमिका पर भी बड़ी स्पष्ट समझ दिखाई है। इसलिए कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र से जुड़े इस मसले पर न्यायपालिका की पनाह लेने से वह बचा।

संभव है, कई लोगों को ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आगे आकर कृषि कानूनों के मामले में सक्रियता दिखाना अजीब सा लग रहा होगा। इसको लेकर पहले चर्चा चल रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने इन कानूनों पर संवाद बनाने के लिए जो कमेटी बनाई है, उसने इससे जुड़ प्रश्नों को और गंभीर बना दिया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर फिलहाल रोक लग दी है। इसके साथ ही तीनों कानूनों और उन्हें लेकर किसानों की मांगों की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाने का भी आदेश भी उसने दिया है। मगर समिति में शामिल किए गए सदस्यों के नाम और इस मामले में उनका रुख इतना चर्चित है कि इस समिति का विवादास्पद बन जाना अस्वाभाविक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद पंजाब के 32 किसान संगठनों की बैठक हुई। उसके बाद किसान नेता राजेवाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के सदस्य विश्वसनीय नहीं हैं, क्योंकि वे लिखते रहे हैं कि कृषि कानून किसानों के हित में है। हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे। हम सिद्धांत तौर पर समिति के खिलाफ हैं। प्रदर्शन से ध्यान भटकाने के लिए यह सरकार का तरीका है। किसान 26 जनवरी के अपने प्रस्तावित ‘किसान परेड’ के कार्यक्रम पर अमल करेंगे और वे राष्ट्रीय राजधानी में जाएंगे।
वहीं, भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत ने ट्विटर पर आरोप लगाए कि शीर्ष अदालत की तरफ से गठित समिति के सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या तीन कृषि कानूनों के समर्थक हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने एक बयान में कहा कि यह स्पष्ट है कि अदालत को विभिन्न ताकतों ने गुमराह किया है और यहां तक कि समिति के गठन में भी उसे गुमराम किया गया है। ये लोग तीनों कानूनों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं और इसकी सक्रियता से वकालत की है।

भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां का कहना है कि हम सरकार के साथ कल बातचीत कर रहे हैं और करेंगे। हमें सुप्रीम कोर्ट के बनाए गए समिति से भी अधिक उम्मीद नहीं दिख रही है। क्योंकि, ये लोग सरकार के ही है। उनकी बात ही करेंगे। सरकार बैठक में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल का हवाला देगी। सरकार की हमारी समस्या सुलझाने की कोई अच्छी मंशा नहीं है। उनका यह भी कहना है कि किसान संघों को कोई समिति नहीं चाहिए। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और हमारे फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए।