LJP Crisis : क्यों अपने ही लगे हैं चिराग को बुझाने की कोशिश में ?

पिता चले गए तो चाचा सियासत की बागडोर अपने हाथ में लेकर सत्ता की मलाई खाना चाहते हैं। यह कहानी है लोकजनशक्ति पार्टी की, जहां पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान के खिलाफ सभी सांसद हो गए हैं। इससे लोजपा और खासकर चिराग को पार पाना होगा। क्या वे सफल होंगे ?

नई दिल्ली। लोकजनशक्ति पार्टी में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। बिहार की राजनीति सहित दिल्ली में हलचल तेज हो गई है। जिस प्रकार से लोजपा के पांच सांसदों ने पशुपति पारस को अपना नेता मानने के लिए पत्र लिखा है, उससे लोजपा के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान के सांसद पुत्र चिराग पासवान की राजनीति को खासा झटका लगा है।

कहा जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह सधी हुई राजनीति का असर है। नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को ख़त्म करने की जैसे ठान रखी है।एक विधायक थे बिहार में, तोड़ लिया। अब कई दिनों से JDU नेता ललन सिंह,पशुपति पारस के संपर्क में थे, उसका असर दिखा। LJP के 5 सांसदों ने लोकसभा स्पीकर को लिखकर दे दिया है कि सदन में उनके नेता चिराग पासवान नहीं पशुपति पारस होंगे। यानी मोदी कैबिनेट में जाने की जो उम्मीद थी,वह भी साफ़! कुल मिलाकर रामविलास पासवान की LJP में अब उनके ही बेटे की कोई जगह नहीं बची।राजनीति भी ग़ज़ब का खेल है।

चिराग युवा हैं और समझदार भी। लीक से हटकर पार्टी और जनता का भला करना चाहते हैं लेकिन LJP ने चिराग को बुझाने की कोशिश की है, अव्वल तो इस पारिवारिक दल को मिट ही जाना चाहिए। दलितों के उत्थान का ढोंग रचते रचते ये पार्टी सिर्फ एक परिवार को सत्ता में बिठाने तक सीमित रह गई। सालों से लोग देख रहे हैं कि ये दल परिवार के आगे नहीं निकलता, परिवार के बाहर निकलता है तो सिर्फ पैसे के लिए।

राजनीति में ना कोई आपका सगा है और ना ही कोई संबंधी। महाभारत जैसे धर्मग्रंथों में भी राजनीति की सच्चाई के बारे में अच्छे से व्याख्या की गई है और इतिहास साक्षी रहा है कि राजनीति में वही लोग सफल हो सकते हैं जो अपनी टीम में योग्य सलाहकारों को परख कर रखते हैं और वही लोग अवसर को लपकने में माहिर होते हैं। अर्जुन इसलिए सफल हुए क्योंकि द्रोणाचार्य जैसे गुरु और कृष्ण जैसे सलाहकार उनके पास थे। चंद्रगुप्त इसलिए सफल हुए क्योंकि उनके पास चाणक्य के रूप में बेहतरीन सलाहकार थे।

चिराग पासवान को विरासत में बहुत कुछ मिला, लेकिन ऐसा क्या अचानक से हो गया कि पिता रामविलास पासवान के निधन के कुछ दिन बाद ही बंगले में आग लग गई। आग लगाने वाले भी कोई और नहीं बल्कि चाचा और चचेरे भाई हैं। दरअसल चिराग के एक ढेर काबिल सलाहकार हैं जो खुद को बहुत सयाना और शातिर मानते हैं। खबरों की माने तो उस सलाहकार की बातों पर धृतराष्ट्र की तरह आंख मूंदकर विश्वास करने वाले चिराग की लौ अब बुझने ही वाली है। राजनीति का ये नियम अन्य क्षेत्रों पर भी लागू होता है, अगर आपकी टीम अच्छी है और आपकी टीम में काबिल लोग हैं तो फिर शून्य से शिखर पर भी पहुंचने की भरपूर संभावना बनी रहती है।