नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पश्चिम बंगाल (West Bengal) के दौरे पर थे। यास (Yaas) चक्रवात से हुए नुकसान का जायजा लेने गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने समीझा बैठक बुलाई, लेकिन इसमें ममता बनर्ती (Mamta Banarjee) ने प्रधानमंत्री को इग्नोर किया। अब सवाल उठता है कि इसकी हनक कहां तक जाएगी ? क्या यह संघीय व्यवस्था पर कुठाराघात नहीं है ? क्या ममता बनर्ती ने एक व्यक्ति नहीं, एक संवैधानिक पद को इग्नोर किया है।
ऐसे एक नहीं, कई सवाल हैं, जो चर्चा में आ गए हैं। बता दें कि ममता बनर्जी और उनके चीफ सेक्रटरी समीक्षा बैठक में 30 मिनट देर से पहुंचे जबकि वे उसी परिसर में थे। जी हां ममता बनर्जी ने पहले राज्यपाल धनखड़ और पीएम मोदी को इंतजार करवाया और इसके बार देरी से पहुंचते ही उन्होंने तूफान से हुए नुकसान को लेकर दस्तावेज पकड़ाए और वहां से निकल गईं।
कई राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि प्रचंड बहुमत वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamta Banarjee) को ऐसा नहीं करना था। उन्होंने पश्चिम बंगाल के हालिया चुनाव में मुँह की खाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समीक्षा बैठक का बहिष्कार किया। विरोध का यह जायज़ तरीका नहीं है। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ. लेकिन कोई यह भी परख कर बताये कि ऐसा करने के लिये तूनक मिजाज़ मुख्यमंत्री को किस शातिर ने बाध्य किया ? कहीं वज़ह तो यह नहीं कि TMC वालों को पकड़ रहे हो।
असल में, बीते महीने विधानसभा चुनाव परिणाम से हताश भारतीय जनता पार्टी के नेता आने वाले समय में राज्य की तृणमूल कांग्रेस की सरकार को चैन से रहने नहीं देखा। भाजपा अब राज्य में सशक्त विपक्षी की भूमिका में है। कांग्रेस और वामदलों के नग्णय होने से उसके लिए राजनीतिक पिच अधिक दिखाई पडती है। भाजपा विपक्ष के रूप में हो-हल्ला करना जानती है। किसी भी मुद्दे को कैसे-कैसे जमीन के साथ हवा में यानी सोशल मीडिया में शगूफा बना दिया जाए, उस कला में वह निष्णात है। ऐसे में हर कोई मान कर चल रहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए शांति के दिन नहीं होंगे।