पीएम ने सदन में कहा आंदोलनीवी, इस शब्द पर हो रही है अब सियासत

सरकार जैसा बर्ताव कर रही है और किसानों की बात नहीं सुन रही है। हमारे पास अपने संसदीय अधिकारों का उपयोग करके खेती से जुड़े इन तीन कानूनों को रद्द करने के लिए इसे लाने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया है।

नई दिल्ली। दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों को लेकर जब संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बात कर रहे थे, तो उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि कुछ लोग आंदोलनजीवी होते हैं, जो असल में परजीवी होते हंैं। बस, इसके बाद तो लोगों की बयानबाजी पूरे दिन होती रही। तमाम सोशल मीडिया के मंचों पर इस शब्द की व्याख्या होती रही। इस नए शब्द से कई लोग बुरी तरह से तिलमिला गए हैं।

स्वयं भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो आंदोलनजीवी कहा है। हम आंदोलन करते हैं, हम जुमलेबाज तो नहीं हैं। MSP पर कानून बनना चाहिए वो नहीं बन रहा। तीनो काले कानून खत्म नहीं हो रहे हैं। प्रधानमंत्री जी ने 2011 में कहा था कि देश में MSP पर कानून बनेगा। यह जुमलेबाजी थी। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि यह आंदोलन लंबा चलेगा। अभी सरकार को 2 अक्टूबर तक का समय दिया गया है। दिल्ली से किसान वापस नहीं आ रहे थे जो साढ़े तीन लाख ट्रैक्टर गए थे वे वापस आ रहे थे। सरकार गलतफहमी में न रहे कि किसान वापस चला जाएगा।

वहीं, कांग्रेस नेता सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि सरकार जैसा बर्ताव कर रही है और किसानों की बात नहीं सुन रही है। हमारे पास अपने संसदीय अधिकारों का उपयोग करके खेती से जुड़े इन तीन कानूनों को रद्द करने के लिए इसे लाने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया है।

असल में, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में बहस हुई बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री का जो भाषण हुआ, उसके तथ्य और तर्क काफी प्रभावशाली रहे। अपने लंबे भाषण में उन्होंने किसान आंदोलन के विरुद्ध कोई भी उत्तेजक बात नहीं कही। वे अपनी सरकार की कृषि-नीति के बारे में थोड़ा ज्यादा गहरा विश्लेषण प्रस्तुत कर सकते थे लेकिन उन्होंने जो भी तथ्य और तर्क पेश किए, उन्हें यदि देश के करोड़ों आम किसानों ने सुना होगा तो उन्हें लगा होगा कि जैसे भारत में दुग्ध-क्रांति हुई है, वैसे ही अब कृषि-क्रांति का समय आ गया है।

प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्रियों, लालबहादुर शास्त्रीजी व देवेगौड़ाजी का जिक्र करके और मनमोहन सिंहजी को उद्धृत करके विपक्ष की हवा निकाल दी। वे दोनों सदन में उपस्थित थे। उन्होंने विपक्षी नेताओं— शरद पवार, गुलामनबी आजाद और रामगोपाल यादव का उल्लेख भी बड़ी चतुराई से कर दिया। उन्होंने विपक्ष के विघ्नसंतोषी स्वरुप को उजागर करते हुए एक नए शब्द का उपयोग कर दिया, ‘आंदोलनजीवी’। उन्होंने विरोध की राजनीति पर भी काफी मजेदार व्यंग्य किए और उसका स्वागत किया। कुल मिलाकर संसद के इस सत्र में किसान आंदोलन पर विपक्ष का पक्ष कमजोर रहा।