Shivraj singh Chouhan : समस्याओं को आत्मबल से सुलझाते रहे, सरकार चलाते रहे

कोरोना को जल्दी ही शिवराज सरकार के आगे घुटने टेकने के लिए विवश होना पड़ेगा।बस आवश्यकता इस बात की है कि कोरोना के विरुद्ध मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जो लड़ाई छेड़ी है उसमें वह हर कदम पर उनका साथ देने का संकल्प ले।

भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह सिंह चौहान (Shivraj singh Chouhan) ने अपने चतुर्थ कार्यकाल का प्रथम वर्ष पूर्ण लिया है। उन्होंने एक वर्ष पूर्व जब मुख्यमंत्री पद की बागडोर संभाली थी तब तक प्रदेश‌ में कोरोनावायरस दस्तक दे चुका था और आज जब उनके चतुर्थ कार्यकाल का प्रथम वर्ष पूर्ण हुआ है तब कोरोना एक बार फिर प्रदेश में पांव पसार रहा है परंतु मुख्यमंत्री विचलित नहीं हैं। उनका आत्मविश्वास मानों प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता को यह भरोसा दिला रहा है कि जिस सुनियोजित रणनीति से हमने कोरोना पर गत वर्पष काबू पा लिया था उसी रणनीति से हम एक दिन मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की धरती से कोरोना का नामोनिशान मिटाने में सफल होंगे। चुनौतियां इतनी अधिक थीं कि इस एक वर्ष में मुख्यमंत्री को कभी चैन ‌से बैठने का अवसर नहीं मिला ।
पग पग पर उन्हें कठिन चुनौतियों का सामना करना परंतु शिवराजसिंह चौहान की तो पहचान ही यही है कि चुनौती कितनी भी कठिन क्यों न हो, वे कभी विचलित नहीं होते। चुनौतियों से जूझने का जो अद्भुत शिवराज ‌सिंह (Shivraj singh Chouhan) के पास मौजूद है वह विरले ही राजनेताओं में देखने को मिलता है। यही स्थिति एक वर्ष पूर्व भी तब देखी गई थी जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने गुट के २२कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होकर कमलनाथ सरकार के पतन की पटकथा लिख दी थी। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ ‌तो मुख्यमंत्री पद के लिए जिन नामों पर विचार किया गया उनमें शिवराजसिंह चौहान अग्रणी थे। शिवराज सिंह के तीन कार्यकालों की उपलब्धियों और प्रदेश की जनता के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय लोकप्रिय राजनेता की छवि ने मुख्यमंत्री के रूप में चौथी पारी की शुरुआत करने का हकदार बनाया। शिवराज सिंह चौहान का कर्मठ व्यक्तित्व उनके राजनीतिक ‌जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है इसलिए मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम ही सबसे पहले उभर कर सामने आता है।

यही यह बात दावे के साथ कह सकता हूं कि शिवराजसिंह चौहान ‌के राजनीतिक जीवन में अनेकों बार विषय परिस्थितियों में उन्हें गुरु गंभीर जिम्मेदारी सौंपी गई है परंतु उन्होंने उस जिम्मेदारी को स्वीकार करने ‌की अनिच्छा कभी व्यक्त नहीं की। आगे बढ़ कर हर जिम्मेदारी को अपने कंधों ‌पर वहन करने का साहस दिखाया और हर इम्तिहान पर कुछ इस तरह खरे उतरे कि उनके ‌प्रतिद्वंदी‌ भी दांतों तले उंगली दबाने के लिए विवश हो गए। उनकी साहसिक राजनेता की छवि का आभामंडल इतना प्रदीप्त है कि उनके प्रति द्वंदी उनकी राह में गति अवरोधक बनने का साहस नहीं जुटा पाते। इसीलिए जब वे गरज कर कहते हैं कि टाइगर जिंदा है तो वह कोरी गर्वोक्ति नहीं होती । वे जो कुछ कहते हैं उसमें संकल्प,साहस, समर्पण से उपजा आत्मविश्वास झलकता है परंतु शिवराजसिंह चौहान के सुदीर्घ राजनीतिक जीवन में उनके इस आत्मविश्वास को कभी किसी विरोधी ने भी अहंकार का रूप लेते हुए नहीं देखा है। पिछले तीन कार्यकालों में उन्होंने सहज ,सरल और निरभिमानी मुख्यमंत्री (Shivraj singh Chouhan) की जो छवि बनाई थी वह पिछले एक साल में और निखर कर सामने आई है।

एक वर्ष पूर्व जब शिवराज सिंह चौहान (Shivraj singh Chouhan) मुख्यमंत्री पद का दायित्व वहन करने करने के लिए भाजपा की पहली पसंद बने‌ तब उन्होंने मंत्रिमंडल का गठन स्थगित कर कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने की कारगर रणनीति तैयार करने पर पूरा ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया यद्यपि उन‌ विषय परिस्थितियों में उनके इस फैसले कर सवाल भी खड़े किए गए परंतु कुछ समय पश्चात ही उनके आलोचक यह स्वीकार करने के लिए विवश हो गए कि मुख्यमंत्री के इस फैसले के पीछे उनकी गहरी राजनीतिक सूझबूझ थी। शिवराजसिंह चौहान ने मंत्रिमंडल ‌गठन की कवायद पर समय और शक्ति जाया करने के बजाय कोरोना संक्रमण की स्थिति से कुशलतापूर्वक निपटने के लिए एक अधिकारसंपन्न टास्क फोर्स का गठन किया। यह टास्क फोर्स उन परिस्थितियों में मंत्रिमंडल से कहीं अधिक उपयोगी साबित हुआ। मुख्यमंत्री पद की शपथग्रहण के तुरंत बाद उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं तय कीं और उनमें कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाना, समाज के गरीब ‌तबके के लोगों को हर संभव ‌आर्थिक मदद पहुंचाना और जीवनोपयोगी सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना उस समय उनकी पहली प्राथमिकता बन गया ।
मुख्यमंत्री ने उस समय सारी व्यवस्थाओं की स्वयं ही मानीटरिंग करने का जो फैसला किया था उस पर राजनीतिक तबकों में भले ही कुछ अनपेक्षित सवाल उठाए गए परंतु जनता ने मुख्यमंत्री के इस फैसले को अपना पूरा समर्थन प्रदान किया। शिवराजसिंह चौहान (Shivraj singh Chouhan) ने कोरोना को काबू में करने के लिए प्रशासनिक जमावट को अंजाम देने के बाद अपने मंत्रिमंडल का गठन किया और मुश्किल परिस्थितियों में एक संतुलित मंत्रिमंडल का गठन कर उन्होंने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि प्रदेश का यह सहृदय और संवेदनशील मुख्यमंत्री राजनीतिक सूझ-बूझ का भी धनी हैं। विधायकों के चुनाव क्षेत्र में संवैधानिक बाध्यता के कारण बाद में उपचुनाव कराए गए उनमें से अधिकांश क्षेत्रों में भाजपा की विजय से यह सुनिश्चित हो गया कि प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवराजसिंह चौहान (Shivraj singh Chouhan) को ही आसीन देखना चाहती है। उपचुनावों के परिणाम इस सत्य को भी प्रमाणित कर रहे थे कि शिवराज सिंह चौहान ने जिस दिन पहली बार मुख्यमंत्री की शपथ ली थी तब से आज तक उनकी लोकप्रियता यथावत बरकरार है।