आने वाले पीढ़ियों के पोषण के लिए टिकाऊ और वहनीय कृषि तकनीक आवश्यक: विशेषज्ञ


नई दिल्ली।
कम होती जोत और खराब होती मिट्टी को देखते हुए कृषि-तकनीक (एग्री-टेक) से ही आने वाली पीढ़ियों को पोषण संभव हो सकता है। किसान दिवस के उपलक्ष में नई दिल्ली में आयोजित ‘उत्कृष्ठता का अधिकार: कृषि-तकनीक संगोष्ठी 2023’ में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि किसी भी कृषि-तकनीक के आम उपयोग के लिए उसका आर्थिक तौर पर व्यवहारिक और प्रकृति के नजरिए से टिकाऊ होना आवश्यक है।

भविष्य की पीढ़ियों का पेट भरने के लिए तकनीक के महत्व को रेखांकित करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक डॉ आर सी अग्रवाल ने इस मौके पर घोषणा करते हुए कहा कि कृत्रिम मेधा (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस) की पढ़ाई कृषि के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य कर दी गई है।

भविष्य की पीढ़ियों को पोषण देने की भारत की यात्रा में तकनीक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होने वाली है। पौधे की बीमारियों को पहचानने और कीटनाशकों के प्रभावी छिड़काव जैसी कृषि क्षेत्र की तमाम चुनौतियों से निपटने में कृत्रिम मेधा का उपयोग समय की जरूरत है। इसके महत्व को समझते हुए कृषि के विद्यार्थियों के लिए कृत्रिम मेधा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी गई है,” डॉ आर सी अग्रवाल कहा।

कृषि क्षेत्र में तकनीक की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है, जिसके कारण यह क्षेत्र बड़ी मात्रा में निवेश भी आकर्षित कर रहा है। लेकिन, नाबार्ड के पूर्व मुखिया श्री गोविंदा राजुला चिंताला ने चेताते हुए कहा कि इस बड़े निवेश का फायदा तभी होगा, जब एग्री-टेक भारत की प्राकृतिक विविधता का सम्मान करते हुए सिर्फ निवेशकों के लिए ही नहीं, बल्कि किसानों के लिए लाभकारी होगा।

कैंसर-कीटनाशक दवाओं के मिथक को ध्वस्त करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन डॉ आर जी अग्रवाल ने कीटनाशक दवाओं के चीन (1300 ग्राम प्रति हेक्टेयर) की तुलना में भारत (350 ग्राम प्रति हेक्टेयर) में बेहद कम खपत को रेखांकित किया।

“विभिन्न अध्ययनों में कीटनाशक दवाओं और कैंसर के बीच कोई भी संबंध स्थापित नहीं हुआ है,” डॉ अग्रवाल ने कहा। उन्होंने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भारतीय कृषि के परिदृश्य में व्यापक परिवर्तन के लिए जिन पांच बिंदुओं पर जोर दिया, उनमें मिट्टी को स्वस्थ करने के लिए जैविक खाद को बढ़ावा, किसानों द्वारा तकनीक का व्यापक प्रयोग, जल स्तर में वृद्धि और जल प्रबंधन के लिए तालाबों का निर्माण, बीज उपचार और कृषि क्षेत्र में सरकार के व्यापारी की भूमिका का समाप्त होना शामिल हैं।

कैंसर-कीटनाशक दवाओं की लिंक से जुड़ी प्रचलित बातों को चुनौती देते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के मुख्य वैज्ञानिक (प्लास्टिकल्चर) डॉ राकेश शारदा ने चौंकाते हुए कहा कि लोकप्रिय धरना के विपरीत पंजाब में कीटनाशकों का प्रयोग कम होता जा रहा है। “टिकाऊ कृषि तकनीकियां” सत्र में बोलते हुए डॉ शारदा ने तर्क दिया कि कीटनाशक नहीं बल्कि जल प्रदूषण और मिट्टी में मिल चुके भारी धातुएं कैंसर का कारण बन रही हैं।

कृषि में अनुसंधान को बढ़ावा देने और कृषि-रसायनों के बुद्धिमत्तापूर्व उपयोग की वकालत करते हुए भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में कृषि आयुक्त डॉ पी के सिंह ने कहा, “पौध की बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में सरकार एकीकृत कीट प्रबंधन प्रणाली को अपना रही है, और वस्तुतः कृषि-रसायन कृषि में ‘विकृति’ ने निपटने में मददगार साबित हो रहे हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान पर एक रुपये के निवेश से 14 रुपये का रिटर्न मिलता है।

एग्री-टेक नियमन पर आयोजित सत्र में विचारों में अंतर के बीच भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ शोभना कुमार पटनायक और आईसीएआर में पौध संरक्षण एवं जैव विविधता के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) डॉ एस सी दुबे ने सरकारी विनियमन को सही ठहराते हुए उन्हें भविष्य-उन्मुख, किसान हितैषी और एक जिम्मेदारीपूर्ण दायरे में नवाचार को बढ़ावा देने वाला बताया। जबकि, डेरी, खाद्य, कृषिव्यापार एवं संबंधित क्षेत्रों के विधि-तकनीकी विशेषज्ञ श्री विजय सरदाना ने कृषि विनियमनों को नवाचार का दम घोंटने वाला ठहराते हुए उनको खत्म करने की बात कही।

धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन डॉ अग्रवाल ने जोरदार अपील करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र से जुड़े कानूनों को उद्यमिता और तकनीक को प्रोत्साहित करने वाला विकास आधारित बनाकर सिस्टम को प्रधानमंत्री के देश के लिए विजन को साकार करने की दिशा में काम करना चाहिए।