Yoga, लंग्स का डिटॉक्सिफिकेशन करता है गोमुखासन

गोमुखानन में हमारे शरीर की आकृति गाय के मुख समान हो जाती है। इसलिए हमारे योगियों ने इस आसन का नाम गोमुखासन रखा है।

नई दिल्ली। योग शब्द संस्कृत के “युज” धातु से बना है, जिसका अर्थ मिलाना, जोड़ना, संयुक्त करना या ध्यान को केंद्रित करना है। योग को किस विधा से जोड़कर देखे यह जानने के लिए हमारे प्राचीन योगियों के विज्ञान को समझना होगा। वे जड़ एवं चेतन (निर्जीव एवं सजीव) दोनों में एक ही चेतना को उपस्थित मानते हैं। यह चेतना तŸव संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो “योग का अर्थ होता है अपान और प्राण, रज और वीर्य, सूर्य और चंद्र, जीवात्मा और परमात्मा का मिलन”। यही योग कहलाता है। आज योग की क्लास में करते हैं गोमुखासन।

विधि – जमीन पर बैठ जाऐं। उसके बाद बांई टांग को मोड़ते हुए ऐड़ी को नितम्ब के पास ले जाकर दांऐ नितम्ब की ऐड़ी पर टिकाकर बैठ जाऐं। इसी प्रकार दांई टांग को मोड़कर ऐड़ी को बांऐ नितम्ब के पास लाऐं। हमारे घुटनों की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि दोनों घुटने एक-दूसरे के ऊपर आ जाऐं। अब बांऐ हाथ को पीछे से मोड़कर हथेली को बाहर की ओर रखते हुए ऊपर की ओर ले जाऐं। दाहिने हाथ को ऊपर से मोड़ें और कोहनी सीधी करते हुए दोनो हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे से पकड़ लें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहें, ध्यान रहे कमर, गर्दन और सिर बिल्कुल सीधा होना चाहिए। नजर सामने की ओर तथा श्वास की गति सामान्य होनी चाहिए। कुछ देर बाद अपनी क्षमतानुसार इस स्थिति में रहने के बाद इसी प्रकार से दूसरी टांग को मोड़कर और हाथों की पोजीशन चेंज कर इसका अभ्यास करें। इस आसन को दोनो ओर से कम से कम 3-3 बार अभ्यास करें।

कई लाभ हैं – यह आसन दमा तथा क्षय रोगी के लिए रामबाण का काम करता है। इसके अभ्यास से धातु की दुर्बलता, मधुमेह, प्रमेह और बहुमूत्रा आदि रोग दूर हो जाते हैं। जब हम इस आसन में एक तरफ को हाथ उठाते हैं तो एक तरफ का फेफड़े का श्वास अवरूद्ध होता है और दूसरा फेफड़ा तीव्र वेग से चलता है। जिससे हमारे फेफड़ों की सफाई तथा रक्त का संचार बढ़ जाता है। हमारे फेफड़ों के 1) करोड़ छिद्रों में रक्त का संचार भली-भांति होता है। महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी परेशानी और ल्यूकोरिया की शिकायत दूर करता है। महिलाओं के वक्ष स्थल को सुडोल बनाता है, छाती चौड़ी होती है, पीठ, गर्दन, बाह और टांगे मजबूत होती हैं।

सावधानियों को अपनाएं – गठिया के मरीज इसका अभ्यास ना करें। इस आसन का अभ्यास जल्दबाजी में ना करें। साधक जब वज्रासन में बैठने में अभ्यस्त हो जाऐ तो इस आसन का अभ्यास करे।