नई दिल्ली। योग का अर्थ होता है अपान और प्राण, रज और वीर्य, सूर्य और चंद्र, जीवात्मा और परमात्मा का मिलन”। यही योग कहलाता है। आज योग की क्लास में करते हैं गोरक्षासन। इसे ऐसे करें।
विधि : सबसे पहले जमीन पर बैठ जाऐं, इसके बाद दोनों पैरों के तलवों को आपस में मिलाकर दोनों हाथों से दोनों पैरों को मिलाते हुए इस प्रकार आगे आकर दोनों मिले हुए पैरों के बीच बैठ जाऐं और हमारे दोनों घुटने जमीन को स्पर्श करें। उसके बाद दोनो हाथों को घुटने पर रखते हुए कमर, गर्दन, बिल्कुल सीधा रखते हुए इस आसन में स्थित रहें, ध्यान रहे कि हम सामने की ओर देखेंगे। हमारे श्वास की गति समान्य रहनी चाहिए। जितनी देर हम इस आसन में आसानी पूर्वक रूक सकते हैं रूकें अगर ना रूक पाऐं तो धीरे-धीरे आसन को खोलें। यह इस आसन का एक चक्र हुआ, कम से कम 5 बार इसका अभ्यास करें।
लाभ व प्रभाव : इस आसन के अभ्यास से पिंडलियों, कमर, घुटने और जांघो की हड्डियाँ व पेशियाँ मजबूत और सबल होती हैं, इसे लगाने से पैरों की थकान दूर होती है। बवासीर, मूत्रा संस्थान सम्बन्धित रोग दूर होते हैं। प्राण और अपान की एकता होती है। कमर तक के नीचे वाले भाग को विशेष लाभ प्राप्त होता है। महिलाओं के लिए काफी लाभप्रद आसन है। मासिक धर्म की गड़बड़ियाँ, गर्भाश्य के विकार दूर होते हैं।
सावधानियां : योग के मुश्किल आसनों में से एक है विशेषकर गठिया के रोगी इसका अभ्यास ना करें। जहां तक सम्भव हो इस आसन को योग गुरू के सान्निध्य में ही अभ्यास करें।