World Mental Health Day : युवा भारतीय अपनी मानसिक सेहत का बेहतर ढंग से रख रहे हैं ध्‍यान

आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करने से पता चलता है कि कोविड की दूसरी लहर का भारतीयों पर बहुत ही बुरा असर पड़ा जिसके संकेत मानसिक स्वास्थ्य के लिए ऑनलाइन सलाह लेने वालों की संख्या में 95 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी से चलता है

नई दिल्ली। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया भर में 2012 से 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य की वजह से 1.03 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है। वहीं, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत की आबादी में से करीब 14 फीसदी लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी उपचार की ज़रूरत है। लेकिन भारतीय लोग अब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कहीं अधिक जागरूक हो गए हैं और इसके समाधान के लिए सक्रिय तौर पर मदद भी ले रहे हैं।

देश की प्रमुख एकीकृत स्वास्थ्यसेवा कंपनी प्रैक्टो ने पाया है कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत सलाह लेने वाले लोगों की संख्या में जबरदस्त तेज़ी आई है (नीचे चित्र 1) और सालाना आधार पर ऐसे लोगों की संख्या 44 फीसदी बढ़ी है। पिछले वर्ष सलाह लेने वाले कुल लोगों में से 57 फीसदी 25 से 34 वर्ष की उम्र के रहे। इनमें से 61 फीसदी पुरुष और 39 फीसदी महिलाएं थीं।

इन जानकारी से उन वजहों का पता चलता है जिनका असर भारत के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है (अक्टूबर-सितंबर 2021 बनाम 2022):

• मादक द्रव्यों का सेवन, तनाव और अवसाद के बारे में प्लेटफॉर्म पर सबसे ज़्यादा सवाल पूछे गए

• मादक द्रव्यों के सेवन से टियर 1 और 2 शहरों के लोगों को प्रभावित कर रहे हैं, पूछताछ करने वाले 52 फीसदी लोग टियर 1 और 48 फीसदी लोग टियर 2 शहरों से आते हैं*

• टियर 1 शहरों में दिल्ली से पूछताछ करने वाले लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा यानी करीब 20 फीसदी है जबकि मुंबई की हिस्सेदारी 10 फीसदी रही*

• हालांकि, टियर 1 शहरों से सबसे ज़्यादा पूछताछ तनाव और अवसाद के बारे में की गई, 66% हिस्सेदारी के साथ टॉप 3 शहर दिल्ली, बेंगलुरू और मुंबई रहे*

*(समयावधि: अक्टूबर 2021- सितंबर 2022)

• मादक द्रव्यों का सेवन, पीटीएसडी और घबराहट कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनमें सालाना आधार पर सबसे ज़्यादा वृद्धि देखने को मिली

• मादक द्रव्यों का सेवन करने के मामलों में, एल्कोहॉल की आदत से जुड़े सवालों में 28 फीसदी, ड्रग्स सेवन से जुड़े सवालों में 53 फीसदी और नशा छोड़ने के बाद के लक्षणों से जुड़े सवालों में सालाना आधार पर 98 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिली

• खानपान की आदतों में गड़बड़ी और पीटीएसडी जैसे सवालों को लेकर भी सालाना आधार पर 42 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली

• नीचे सवालों और घटनाओं के बारे में शहर के हिसाब से जानकारी दी गई है:

• टियर 1 शहरों में दिल्ली से सबसे ज़्यादा सवाल यानी 20 फीसदी पूछे गए, इसके बाद मुंबई 10 फीसदी, बेंगलुरू 9 फीसदी, चेन्नई 6 फीसदी, हैदराबाद और पुणे 3 फीसदी। टियर 2 शहरों की हिस्सेदारी 49 फीसदी रही (मादक द्रव्यों का सेवन)

• खानपान में गड़बड़ी

• दिल्ली 23 फीसदी

• बेंगलुरू 19 फीसदी

• मुंबई 13 फीसदी

• हैदराबाद 10 फीसदी

• पुणे 8 फीसदी

• चेन्नई 6 फीसदी

• टियर 2 – 21 फीसदी

• पीटीएसडी:

• दिल्ली 30 फीसदी

• मुंबई 18 फीसदी

• बेंगलुरू 17 फीसदी

• पुणे 7 फीसदी

• चेन्नई 6 फीसदी

• हैदराबाद 5 फीसदी

• टियर 2- 17 फीसदी

इन जानकारी के बारे में डॉ. एलेक्जेंडर कुरुविला, चीफ हेल्थकेयर स्ट्रैटेजी ऑफिसर, प्रैक्टो ने कहा, “देश में मानसिक स्थिति से जुड़े मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन अच्छी बात यह है कि लोग मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझ रहे हैं और मदद मांग रहे हैं। यह देखना बहुत ही सुखद है लेकिन जब बात मानसिक स्वास्थ्य की हो तो निजता और पहचान छिपाना महत्वपूर्ण हो जाता है और निजता का ध्यान रखते हुए विशेषज्ञों की मदद लेने में ऑनलाइन कंसल्टेशन ने अहम भूमिका निभाई है।”

डॉ. हरीश शेट्टी, मनोचिकित्सक, डॉ. एल एच हीरानंदानी हॉस्पिटल जो प्रैक्टो पर सलाह देते हैं, ने कहा, “वैश्वीकरण और आज की तेज़ गति के जीवन ने मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर डाला है। इस असर इतना बुरा है कि सात में से एक भारतीय मानसिक रूप से अस्वस्थ्य है। हालांकि देश के युवाओं में इसे लेकर जागरूकता बढ़ी है लेकिन इसके बारे में कम जानकारी रखने वाले परिवार अब भी बाधक के तौर पर काम करते हैं जिसे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देकर ही पार किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानसिक बीमारी की समय से पहचान करके इसके बुरे प्रभावों को कम किया जा सकेगा। इसके अलावा, इमोशनल कॉन्टैक्ट टाइम (ईसीटी) और फैमिली कॉन्टैक्ट टाइम (एफसीटी) को बढ़ाने से भी मदद मिल सकती है।”