नोएडा। फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों ने हाई रिस्क ब्लड कैंसर से पीड़ित 45 वर्षीय मरीज का सफलतापूर्वक इलाज किया. क्योंकि ब्लड कैंसर हाई रिस्क की स्थिति में पहुंच चुका था इसलिए मरीज़ को बचाने के लिए तत्काल इलाज की ज़रूरत थी. हाई रिस्क वाला केस होने के चलते महज कीमोथेरेपी का इस्तेमाल करना नाकाफ़ी था और केस के बिगड़ने की आशंका अधिक थी. फोर्टिस नोएडा में हेमेटोलॉजी के डायरेक्टर और एचओडी डॉ राहुल भार्गव के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने इस मरीज का सफल इलाज किया.
कैंसर का ये मरीज़ थकान, सांस लेने में तकलीफ, बुखार और शरीर में दर्द के लक्षणों के साथ अस्पताल में आया था. विस्तृत जांच रिपोर्ट से पता चला कि मरीज़ हाई रिस्क कैंसर से पीड़ित है और उसे तत्काल इलाज की ज़रूरत है. कैंसर की प्रकृति आक्रामक होने के चलते कैंसर सैल्स को कंट्रोल करने के लिए पहले इंडक्शन कीमोथेरेपी और सपोर्टिव केयर की मदद से कैंसर का भार कम किया गया और बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के लिए मरीज़ की विस्तृत जांच की गई. मरीज की जेनेटिक और म्यूटेशन टेस्टिंग की गई.
डॉ राहुल भार्गव ने कहा, “मरीज़ को फ़ुल मैच बोन मैरो ट्रांस्प्लांट की सख़्त ज़रूरत थी. सौभाग्य से मरीज़ के बड़े भाई का बोन मैरो पूरी तरह मैच हो गया और वो अपनी बहन की ज़िंदगी बचाने के लिए स्टैक सैल्स डोनेट करने को तैयार हो गया. टीम द्वारा फोर्टिस अस्पताल में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के 3 महीने बाद मरीज़ पूरी तरह कैंसर मुक्त हो गया. पेशंट अब ईश्वर और अपने परिवार के प्रति आभारी महसूस करती हैं.”
हेमेटोलॉजी और स्टेम सैल ट्रांस्प्लांट के क्षेत्र में मेडिकल प्रगति के साथ, बोन मैरो ट्रांस्प्लांट लाइलाज और घातक कैंसर के लिए सबसे अच्छे ट्रीटमेंट के विकल्प के रूप में उभर रहा है. बोन मैरो हड्डियों के अंदर नरम वसायुक्त टिशू है जो रक्त कोशिकाओं में फैलते हैं. इस प्रक्रिया को दो हिस्सों में बांटा गया है- एलोजेनिक (टिशू मैच वाला कोई भी डोनर) और ऑटोलॉगस (जहां मरीज के शरीर से स्टेम सेल लिए जाते हैं)।बीएमटी प्रक्रिया के दौरान, क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुके बोन मैरो को स्वस्थ बोन मैरो से बदलने की ज़रूरत होती है. इसमें सबसे अहम काम मरीज़ और डोनर की सैल्स का मिलान करना है.
फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा में हेमेटोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ अनुपम शर्मा ने कहा कि ऐसे हाई रिस्क केस में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट मरीज़ के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बोन मौरो ट्रांस्प्लांट के दौरान, लाल रक्त कोशिकाओं, सफ़ेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाता है. इस समय कम प्रतिरोधक क्षमता के चलते मरीज़ एक नवजात शिशु की तरह होता है, जो संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होता है. कई तरह की परेशानियों और संक्रमणों के प्रबंधन के संबंध में बीएमटी के दौरान मरीज़ को स्थिर करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. एक अलग व्यक्ति से स्टेम सैल को मरीज़ के शरीर में ट्रांसफ़र करना और फिर एक सफल प्रत्यारोपण के लिए उसकी स्वीकृति महत्वपूर्ण है.