गुरू का मान राष्ट्र का सम्मान

5 सितंबर शिक्षक दिवस पर विशेष

कुमकुम झा

गुरु के प्रति भक्ति की परंपरा भारत में बहुत ही पुरानी है कि प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली में वेदों का ज्ञान व्यक्तिगत रूप से गुरुओं द्वारा मौखिक शिक्षा के माध्यम से शिष्य को दिया जाता था।गुरु शिष्य का दूसरा पिता माना जाता है था जो कि प्राकृतिक पिता से भी अधिक आदरणीय था । जैसे सूर्य बिना कहे सब को प्राण उर्जा देता है ,मेघ जल बरसाता है , हवा भी बिना किसी भेदभाव के सबको प्राणवायु से जीवित रखती है वैसे ही गुरुजन भी शिष्य की भलाई में लगे रहते हैं । उनका उद्देश्य ही है कि कैसे हम अपने बच्चों को सही शिक्षा दें जो गुरु के सिर को गर्व से ऊँचा कर दे। इस संदर्भ में एक छोटी सी कहानी है …..
प्राचीन काल में एक गुरू अपने आश्रम को लेकर बहुत चिंतित थे गुरू वृद्ध हो चुके थे अब शेष जीवन हिमालय में ही बिताना चाहते थे लेकिन उन्हें यह चिंता सताए जा रही थी मेरी जगह पाने योग्य उत्तराधिकारी हो जो आश्रम को ठीक तरह से संचालित कर सके ।उस आश्रम में दो योग्य शिष्य थे और दोनों ही गुरु को बहुत प्रिय थे दोनों को गुरू ने बुलाया और कहा मैं तीर्थ पर जा रहा हूँ और गुरू दक्षिणा के रूप में तुम से बस इतना ही माँगता हूँ कि यह 2 मुट्ठी गेहूं है 1 एक एक मुट्ठी तुम दोनों अपने पास संभालकर रखो और जब मैं आऊँ तो मुझे वह गेहूं वापस कर देना जो शिष्य मुझे अपने गेहूं सुरक्षित वापस कर देगा मैं उसे ही इस गुरूकुल का गुरु नियुक्त करूंगा।दोनों शिष्यों ने गुरु के आज्ञा को शिरोधार्य रखा और गुरू को विदा किया । एक शिष्य गुरु को भगवान मानता था उसमें तो गेहूं की पोटली बाँध कर सुरक्षित स्थान पर रख किया दूसरा शिष्य जो गुरु को ज्ञान का देवता मानता था उसने उन एक मुट्ठी गेहूं को ले जाकर गुरुकुल के पीछे की खेत में बो दिया ।कुछ महीनों बाद जब गुरु आए तो उन्होंने अपने शिष्यों से अपने 1 मुट्ठी गेहूं माँगी ,पहले वाले शिष्य ने पोटली में रखी गेहूं जिसकी वह रोज़ पूजा करता था वह दे दिए जो कि पूरी तरह सड़ चुका था और किसी काम का नहीं रह गया था ,वही दूसरे शिष्य ने आश्रम के पीछे ले जाकर कहा गुरुदेव या लहलहाती फ़सल जो आप देख रहा है वो उसी एक मुट्ठी में गेहूं के हैं और मुझे क्षमा करें कि जो गेहूं आप मुझे दे गए थे वही गेहूं मैं नहीं दे सकता ।लहलहाती फ़सल को देख कर गुरु का चित्त प्रसन्न हो गया और उन्होंने कहा कि जो शिष्य गुरू के ज्ञान को फैलाता है ,बाँटता है ,वही श्रेष्ठ उत्तराधिकारी होने का पात्र होता है ।मूलतः गुरु के प्रति सच्ची गुरु दक्षिणा यही है की गुरू से प्राप्त शिक्षा एवं ज्ञान का प्रचार प्रसार व उसका सही उपयोग कर जन कल्याण में लगाया जाय।इसी संदर्भ में आचार्य चाणक्य का चरित्र कालजयी है । चाणक्य कहते थे कि शिक्षक की गोद में प्रलय और निर्माण दोनों पलते हैं ।प्राचीन भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य हमेशा हम सब के प्रेरणास्रोत गुरू रहेंगे । आचार्य चाणक्य को अपनी बुद्धि एवं पुरुषार्थ पर पूरा भरोसा था ।भारतीय इतिहास के एक ऐसे गुरू जिन्होंने ना सिर्फ़ भारत भूमि के पहले चक्रवर्ती सम्राट का निर्माण किया बल्कि एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जिस ने पहली बार भारत के अधिकांश हिस्से को एक शासन के अधीन कर दिया फिर भी वो तपस्वी कर्मठ और मर्यादाओं को पालन करने वाले गुरु थे जिनका जीवन आज भी अनुकरण है ।आज भी कुशल राजनीतिक विशारद को चाणक्य की संज्ञा दी जाती है। चाणक्य का निवास स्थान शहर से बाहर एक कुटिया थी जिसे देखकर चीन के ऐतिहासिक यात्री फाहियान ने कहा था कि इतने विशाल देश का प्रधानमंत्री ऐसी कुटिया में रहता है? तब चाणक्य का उत्तर था कि जहां का प्रधानमंत्री साधारण कुटिया में रहता है वहाँ के निवासी भवनों में निवास करते हैं और जिस देश का प्रधानमंत्री राजभवनों में रहता है वहाँ के सामान्य नागरिक झोपड़ियों में रहती है ।ऐसे युगद्रष्टा युग स्रष्टा थे चाणक्य । आज भी चाणक्य के राजनीतिक चिंता धारा को समाविष्ट करके ही हमारे देश का उद्धार हो सकता है ,और उनकी नीतियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक है
माना कि आजशिक्षा जगत का परिदृश्य पूरी तरह से बदला हुआ है लेकिन फिर भी एक शिक्षक को अपने स्कूल या कॉलेज के बच्चों का भविष्य सँवारने में सबसे ज़्यादा ख़ुशी होती है । भगवान कृष्ण ने भी संदीपनों ऋषि के आश्रम में शिक्षा समाप्त कर गुरु दक्षिणा स्वरूप उनके पुत्र को काल के मुँह से वापस लाकर दिया ।
यह एक गुरु का ही असर था कि अंगुलिमाल जैसा क्रूर डाकू भी भिक्षु बन गया ऐसा होता है गुरु का सामर्थ्य । जिस प्रकार चाणक्य ने चंद्रगुप्त को ,रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को खोजा उसी प्रकार आप यदि योग्य शिष्य हैं तो आपको गुरू ढूँढने की ज़रूरत नहीं है गुरु स्वयं ही आपको ढूँढ लेंगे लेकिन आप तैयार रहें गुरु दक्षिणा देने के लिए अर्थात अपने समस्त अहंकार,घमंड ज्ञान और अज्ञान पद व शक्ति अभिमान सभी को त्याग दें और अपने शिक्षक का सम्मान करें, यही टीचर्स डे पर गुरु के लिए सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा होगी।

(लेखिका शिक्षिका और साहित्यकार हैं)