नई दिल्ली। रामजस कॉलेज, डीयू की कैंटीन एक समय में इतनी शानदार हुआ करती कि हम हॉस्टल में रहनेवाले छात्र, मेस का खाना छोड़कर कई बार शौक से वहां खाने जाते. साफ-सफाई और व्यवस्था इतनी दुरुस्त हुआ करती कि किसी शानदार कैफे-रेस्तरां में बैठकर खाने का आभास होता. मुझे वहां गए कम से कम दस साल तो हो ही गए होंगे और अब यहां के खाने के बारे में डॉ. रूपाली सिन्हा ने जो लिखा है और जो तस्वीर साझा की है, वो बेहद चिंताजनक है. डॉ. रूपाली का लिखा आप भी पढ़िए-
रामजस कॉलेज (दिल्ली विश्विद्यालय) के कैंटीन से एक प्लेट खाना(जिसमे दाल चावल और मिक्स सब्जी थी)खा कर मेरी जान पर बन आई। फूड पॉइजनिंग से ऐसा जबरदस्त इन्फेक्शन पेट में हुआ ,बीते 3 दिन कितनी तकलीफ में गुजरा है इसके लिए शब्द तो नहीं है बयां करने के लिए, पर इस बात का जरूर अंदाजा लगा सकते हैं कि कितने निचले दर्जे का फूड सर्व किया जाता है,बहुत ही घटिया स्तर का कैंटीन और उसका फूड है। डिस्चार्ज हो कर घर आई हूं और बेहद कमजोरी में कांपती उंलगियों से ये पोस्ट कर रही हूं।
घर के बने खाने और फलों पर ही भरोसा किया जा सकता है। बाजार तो सिर्फ स्वास्थ्य के साथ खेलता है।
दिल्ली आ कर कॉलेज के प्रिंसिपल को एक शिकायत पत्र जल्द भेजूंगी कैंटीन की गुणवत्ता सुधारने के बारे में।
खैर इस बीच मुझे एक अद्भुत अनुभव हुआ जिसे आप सबको जरूर जानना ही चाहिए
हॉस्पिटल में जब बेड पर लेटे हुए या बाथरूम में बेहद तकलीफ में जोर जोर से रोती, तभी अचानक भीतर से एक आवाज आती कि ये तो सबसे खूबसूरत है,इसको गौर से देखो,तुम जा सकती हो। और जाते ही इस शरीर से जुड़े सारे कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी, इस संसार के सारे स्ट्रगल दूर हो जाएंगे। ये बार बार यहां वहां इंटरव्यू से छुट्टी। निराशा,आशा सबसे परे… इसको बस महसूस करो क्या होता है जाना।
होश पूर्वक जाना। डर नहीं कि बचा लो मुझे अभी और बहुत कुछ पाना है भोगना है। ये सारे कष्ट इसी जीवन से जुड़ा है,देखो तो जीवन से परे है क्या…
और यकीन नहीं होगा आप सबको, मेरा दर्द,मेरी बेचैनी सब धीरे धीरे उतरने लगता। नींद आ जाती।
यानी हमें कष्ट होता है आसक्ति से,इस शरीर से जुड़े सुखों के प्रति आसक्ति ही सारे दुखों का मूल है, और ये मन से जुड़ा है।
मन से ऊपर उठते ही आसक्ति उठ जाती है और कष्ट कम feel होता है।
आत्महत्या या जीवन से भागना इसका हल नहीं,पर मृत्यु से भयभीत होना आसक्ति है जीवन से।
होश में,पूरे होश में जो आए उसको देखें,ये जीवन क्या ला रहा है,उसी के साथ हो जाना है। और ये चेतना से जुड़ा है।
चैतन्य हो कर जीवन के साथ बहना बिना आसक्ति के, यही कष्टों से मुक्ति है.
(विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)