लखनऊ । उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अभी पूरे देश की नजर है। पिछले दस दिनों से उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी में जिस तरह की बैठकें चल रही हैं उससे भले ही यह चर्चा हो रही हो कि उप्र में मंत्रिमंडल में फेरबदल या विस्तार संभावित है। लेकिन दरअसल संघ के सूत्रों की मानें तो संघ की चिंता भारतीय जनता पार्टी की गिरती साख है। संघ विचारक की बातचीत को आधार मानें तो उन्होंने कहा कि भाजपा में एक खासियत है कि वह आती दूसरे के कुकर्मों से है लेकिन जाती अपने कुकर्मों से है। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि हम यही चाहते हैं कि भाजपा की सरकार रहे, क्योंकि इनके सिवा हमारी और देश हित की सोचता कौन है। इसी चिंता को लेकर संघ आजकल उध्ोड़बुन में है और उसने मौजूदा समय में चौतरफा हमले झेल रही मोदी सरकार की गिरती साख को बचाने के लिए अब कमर कस ली है। संघ के 1० बड़े पदाधिकारी शनिवार को दिल्ली में आयोजित एक बैठक में शामिल हुए। संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत, दत्तात्रेय होसबले, कृष्ण गोपाल, सुरेश सोनी और भाजपा के केंद्रीय संगठन मंत्री बी एल संतोष सहित कई बड़े नेता दिल्ली पहुंच भी चुके हैं। उन्होंने मंथन किया। पूरी बागडोर खुद भागवत ने संभाली हुई है।
सूत्रों की मानें तो जिन चार प्रमुख मुद्दों को लेकर महामंथन हो रहा है उसमें बंगाल चुनाव में हुई हार, बंगाल में हिदुओं पर हो रहे अत्याचार और बंगाल में चल रहा विचार युद्ध क्या रुख लेगा? उत्तर प्रदेश में चल रहे राजनीतिक गतिरोध को कम करना, पंचायत चुनावों में भाजपा को हार क्यों मिली? कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार की साख क्यों गिरी, कोरोना से निपटने में क्या नाकामयाब हुई सरकार? केंद्र के मंत्रिमंडल में बदलाव से पार्टी को क्या फायदा होगा? केंद्र सरकार के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का हल, कई राज्यों के गांवों में नहीं घुस पा रहे भाजपा के नेता।
खबर है कि हरियाणा और यूपी सरकार के मुख्यमंत्रियों के कामकाज पर भी चर्चा हुई। सूत्रों की मानें तो कई मंत्रियों की कार्यप्रणाली को भी जांचा जा रहा है और आने वाले समय में कुछ नए चेहरे मोदी कैबिनेट में दिखाई दे सकते हैं। उत्तर प्रदेश की बात करें तो वहां भी हालात उत्तराखंड में जो त्रिवेंद्र रावत के हुए थे, उसी तरह के बनते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री और उनके विधायकों के बीच गतिरोध जारी है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और मुख्यमंत्री योगी कई बार आमने-सामने होते दिखाई दिए हैं। इसके अलावा कई विधायकों ने भी मुख्यमंत्री के खिलाफ जात-पात करने का आरोप लगाया है।
ऐसे में आने वाले चुनाव में बीजेपी किस तरह जीत हासिल करेगी, ये बड़ी चुनौती है। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। जिसके चलते प्रदेश में बड़े बदलाव की अटकलें शुरू हो गई थीं। हालांकि सीएम योगी की स्थिति बदलने के आसार कम ही हैं। जब देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा था तब मोदी और उनकी पूरी कैबिनेट बंगाल फतह की तैयारी में जुटी थी। लेकिन दूसरी लहर इतनी भयानक होगी इस बात का अंदाजा किसी ने नहीं लगाया था। बात कोरोना वैक्सीन की करें तो मोदी सरकार ने अपनी वाहवाही के लिए वैक्सीन को विदेशों में भेज कर अपनी किरकिरी करा ली। ऐसा कई सर्वे रिपोर्ट में साबित हुआ है। इन सर्वे में ये बात सामने आई है कि मोदी और अमित शाह की साख को धक्का पहुंचा है। इस हालात को सुधारने के लिए संघ-भाजपा एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। ये भी माना जा रहा है कि मोदी कैबिनेट का विस्तार जल्द हो सकता है। दिल्ली बॉर्डर पर पिछले 6 महीने से ज्यादा समय से चल रहा किसानों का आंदोलन भी गले की हड्डी बना हुआ है। केंद्र सरकार को लगा था कि आंदोलन लंबा चलेगा तो बिखर जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब तो किसानों का नारा यही है कि जब कानून वापसी होगी तभी घर वापसी होगी। दिल्ली के साथ लगते हरियाणा में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के सार्वजनिक कार्यक्रमों पर भी किसानों ने प्रतिबंध लगा दिया है। दिल्ली में संघ के आला पदाधिकारियों की बैठक में इस बार कुछ भी मामूली नहीं रहने वाला है। क्योंकि लंबे समय के बाद सत्ता में आई भाजपा की साख बचाने में संघ के बड़े पदाधिकारी जुटे हैं। इस बैठक में जिन मुद्दों को लेकर चर्चा हुई, वे भी मामूली नहीं हैं। क्योंकि राज्यों या केन्द्र में कोई बड़ा बदलाव होता है तो उससे भी गुटबाजी बढ़ने की आशंका रहती है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभयदान दे दिया है। लेकिन साथ ही संघ का यह भी मानना है कि योगी को भी अपने रुख में थोड़ा नरमी लाते हुए विधान परिषद सदस्य अरविद कुमार शर्मा को अपने मंत्रिमंडल में उचित स्थान देना चाहिए। जबकि सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी अरविद शर्मा को अधिक से अधिक अपने मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बनाने को राजी हैं, वहीं केंद्रीय नेतृत्व शर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ साथ उन्हें गृह एवं गोपन नियुक्ति जैसा अहम विभाग देने के पक्ष में है जिससे उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पर अंकुश लग सके और तालमेल व समन्वय बेहतर हो सके। लेकिन योगी और उनके समर्थक इसमें राज्य में समानांतर सत्ता का नया शक्ति केंद्र बनने का खतरा देखते हैं। माना जा रहा है कि संघ नेतृत्व पिछले चार-पांच महीने से चल रही इस खींचतान में बीच का रास्ता निकालना चाहता है। उसके सामने उत्तर प्रदेश में मोदी और शाह की ताकत का प्रतीक अरविंद शर्मा और अपने करीबी योगी आदित्यनाथ के बीच सामंजस्य बिठाना भी बेहद टेढ़ी खीर है। क्योंकि अगर दोनों के बीच तालमेल नहीं हुआ तो पीएम मोदी जिस तरह से अरविंद शर्मा को लेकर प्रतिष्ठा बनाये हैं। उससे संघ के लिए बहुत समय तक योगी के साथ खड़ा होना मुश्किल भी होगा।