कहीं जीत-हार की परिणति तो नहीं है यह दंगा ?

जीवन में हार जीत लगी रहती है। सत्ता की कुर्सी आती जाती रहती है। जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल में खूनी खेल अब हो रहा है। उस पर बयानबाजी हो रही है, वह कई सवाल को जन्म दे रही है। आखिर इसकी इंतहा क्या है ?

जो दीप पश्चिम बंगाल (West Bengal) ने जलाया है, उसे शोला बनने से क्यों रोक रहे हैं ? उस रोशनी से पूरे देश को प्रकाशित होने दीजिए। लड़ते दो हैं, जीतते तो केवल एक ही हैं। जीतने वाला भी वही होता है और हारने वाला भी वही, लेकिन हारने वाला कई तरह का आरोप लगाता है। हल्ला करता है। और कई बार, वह अपना आपा खोकर जीत को एक पक्षीय करार देता है। चुनाव जीतने हारने के बाद कुछ उपद्रवी तत्व समाज को नुकसान पहुंचता है, दंगे करता है। फिर क्या एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप से समाज को दिग्भ्रमित करता है और हर पक्ष अपने को पाक साफ होने का दिखावा करता है। वह दूसरे पक्ष को हमेशा दोषी करार देता है। इसके बाद जांच भी होती है, लेकिन जांच की रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की जाती और मामला रफा दफा हो जाता है। कई बार तो जांच रिपोर्ट आने में सालों नहीं, दशकों तक लग जाते हैं।

उदाहरण के रूप में यदि कहा जाए तो हर चुनाव के बाद इस प्रकार के दंगे हुए हैं । अभी दो चुनाव तो सबको याद है पहले दिल्ली विधान सभा चुनाव के बाद जो दंगे हुए और पश्चिम बंगाल में जो हो रहा है । वही दिल्ली में भी हुआ था, वही पश्चिम बंगाल में भी हो रहा है। सच तो निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलता है , लेकिन उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से जनता के समक्ष कहां आ पाती है ?

लगातार दो चुनाव में भाजपा (BJP) धूल चटाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को केंदीय सत्तारूढ़ दल द्वारा कहां काम करने दिया जा रहा है और उस व्यक्ति विशेष अथवा दल के लिए हमेशा बंदूक के नोक पर रखने की कोशिश की जाती है और सरकार पर तरह तरह के आरोप लगाए जाते हैं । उसी प्रकार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय में और उसके बाद कितने अपमानजनक बातें मुखमंत्री ममता बनर्जी के लिए कही गई । अब एक गोलबंदी के तहत नेताओं को यह बात पच नहीं रही है और वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करने लगे हैं। हालांकि, राज्यपाल और राष्ट्रपति इतने कमजोर मानसिकता के नहीं होते जो कुछ हारे हुए विपक्ष के कहने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन (President Rule) लगा दंे। वे जो भी निर्णय लेंगे या लेते हैं, उसका संविधानसम्मत होना अनिवार्य होता है। वैसे दिल्ली सरकार के सारे अधिकार उपराज्यपाल को देकर केंद्रीय सत्तारूढ़ दल ने मुख्यमंत्री को पंगु तो बना ही दिया है । हो सकता है कुछ ऐसा ही नियम बनाकर पश्चिम बंगाल (West Bengal) सरकार को पंगु बना दिया जाए।