चिड़ियां दा चम्बा

सच है मां से ही मायका होता है। मां से ही रौनकें होती हैं।

नई दिल्ली। मां कहती थी कि भप्पी ! जब तक मैं हूँ तब तक आ जाया कर ! मेरे बाद कौन पूछेगा ? मां से ही मायका होता है । मां के बाद भाई भाभी कैसा व्यवहार करें , कह नहीं सकती !
आज मां की कही यह बात बहुत याद आ रही है । भाई ने फोन पर जो कहा उसके बाद तो मां की कही बात याद कर बेसाख्ता आंसू निकल आये !

-देख भप्पी ! आना तो तेरी खुशी । रोक नहीं सकता लेकिन अब तेरी भाभी बूढ़ी हो गयी है । काम होता नहीं । मैं भी जैसी हालत में हूं तुझे पता है । कहीं बाहर अंदर जाकर कुछ ला नहीं सकता ! फिर बताओ कैसे स्वागत् करूंगा तुम्हारा ?
-वीर ! मैं बना दूंगी न चार रोटियां और सब्जी ! बस । बहुत मन है आने का , मिलने का !
-लो ! यदि मायके आकर भी रोटियां ही थापनी हैं तो अपने घर ही खा पका लेना । यहां आकर काम क्यों करना ? और अब तुम भी कौन सी जवान रह गयी हो जो रोटियां पका लेगी और सब्जी बना लेगी सबकी !

अरे ! भाई ने कितनी आसानी से मायके आने से इंकार कर दिया । कितनी मासूमियत से आने से रोक दिया ! सच ही तो कहती थी मां कि भप्पी ! मेरे बाद तू तरसेगी इसी घर को ! इन्हीं गलियों को ! बस ! यादें ही रह जायेंगीं ! कितना सच बोल गयी थी मां ! मैं नादान नहीं समझी थी !

मां कितनी सच्ची और कड़वी बात कह गयी थी ! मैं भोली कहने लगी -नहीं मां ! मेरे भाई भाभी बहुत अच्छे हैं । ऐसा क्यों कहती हो !
-अरी भोली लड़की एक पर्दा है जो मैंने डाल रखा है तुम्हारी आंखों पर ! बाद में पता चलेगा तुझे जब आंखों की शर्म उतर जायेगी ! जब इनकी आंखों का पानी मर जायेगा । तब तुम कहोगी कि मां क्या कहती थी और जो कहती थी सच कहती थी !

तो क्या आज वह पर्दा गिर गया ? वह आंखों की शर्म उतर गयी ? भाई का वह प्यार का मुलम्मा उतर गया । मां की लीपापोती सब बारिश के पानी से धुली दीवारों जैसी एक ही बार में उतर गयी ? उतर गयी ऊपरी कलई ?
कितना भरापूरा परिवार था हमारा ! छह भाई बहन ! पांच बहनें और एक भाई । राखी के दिन सारी बहनें जब वीर को राखियां बांधतीं तो उसकी बाजू भर जाती और वह कहता कि मुझे भगवान् इतना दे कि सबको तोहफे पे तोहफे दे पाऊं ! और आज ? आज कैसे मायके आने से भी बड़ी मासूमियत से रोक रहा है ।

वीर ! मैं तब भी कहती थी कि मुझे कोई तोहफे वोहफे नहीं चाहियें , बस मेरा मां जाया वीर चाहिये और आज उसी वीर ने कैसे रुला दिया ! आंसू हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रहे ! झर झर बहते जा रहे हैं ! एक वह दिन भी था जब मैं शादी के बाद पहला फेरा डालने ससुराल से आई थी । बस स्टैंड पर यही भाई कितना बेचैन खड़ा मेरी राह देख रहा था । बस से उतरते ही हमारी ओर भागा भागा आया था और गले लगकर रोता चला गया था !

फिर हमारे लिये पहले से तय रिक्शा पर हमारा अटैची रखकर पीछे पीछे स्कूटर चलाता आया और गली में आते ही मां को आवाज दी -बीजी ! भप्पी आ गयी ! भप्पी आ गयी । गली के सभी घरों की खिड़कियां पट पट खुलीं मुझे देखने के लिये ! यह एक बेटी का स्वागत् था । आंखों में प्यार के तोरण थे !

सच एक दिन में ही कितना कुछ बदल जाता है एक लड़की का ! जीवन में जैसे एक बहुत बड़ा तूफान आ जाता है ! सब कुछ बदल जाता है -घर संसार से लेकर अंतर्मन तक ! कहां से कहां पहुंच जाती है और क्या से क्या हो जाती है एक लड़की ! अपने पराये हो जाते हैं और पराये अपने ! नये रिश्ते अपनाने पड़ते हैं और पुराने मन के कोने में छिपाने पड़ते हैं ! यह कितना बड़ा फासला एक ही दिन में तय करना पड़ता है एक लड़की को !

कैसे वह एक एक सहेली से मिली थी और कैसे अपने सारे कपड़े उसी गूंगे दर्जी से ही सिलवाती रही थी ! वही जलोखाना के गोलगप्पे ही मज़ेदार लगते थे जिन्हें देखते ही मुंह में पानी आ जाता था ! वह ठंडी सड़क और शालीमार बाग -सब जगह गयी थी ! कितनी पसंद नापसंद हो जाती हैं या भुलानी पड़ती हैं एक लड़की को ! कितनी नयी पसंद बन जाती हैं ! यही भाई सब जगह लेकर गया -यह ले लो ! यह खा लो !

आज वही भाई कहता है कि क्या करोगी आकर ? अरे क्या करती हैं लड़कियां मायके आकर ? यह भी कोई कहने या पूछने की बात है ! लड़कियां अपनी स्मृतियों में खो जाने के लिये आती हैं और उस पर भी सवाल या रोक ?जब तक मां रही हर साल बच्चों की की छुट्टियों से पहले ही पापा का अंग्रेजी में लिखा खत आ जाता जैसे कोई आदेश -नो एक्सक्यूज! मस्ट कम विद चिल्ड्रन इन हॉलीडे

! मां पापा को काला अंग्रेज कहती थीं कि बता हिंदी में दो आखर नहीं लिख सकता तेरा पापा ! अंग्रेज बना फिरता है ! हम सब भाई बहन जब इकट्ठे होते तो पापा को काला अंग्रेज कहते और वे बस मुस्कुराते रहते और मज़ा लेते ! मेरे बच्चों समेत आने पर मां को जैसे नयी से नयी सब्जी बनाने का चाव चढ़ जाता ! और पापा भी सब्जी मंडी जाकर थैले भर भर कर फल और सब्जियां लाते ! वीर शाम को ऑफिस से आता तो किसी न किसी रेस्तरां में ले जाता ! क्या दिन थे वे ! हंसते खेलते दिन ! आह ! अब कहां उड़न छू हो गये ? आंसू और बहने लगे , बहते गये, झर झर!

सच किसी ने बड़े पते की बात कही थी -मैंने अपनी पत्नी के संदूक को चोरी से खोला, उसमें मायके की यादों के सिवा कुछ न था । यह पंक्ति मेरे दिल को छू गयी और याद रही । सच ही तो कहा लिखने वाले ने ! एक बेटी के पास ससुराल में मायके की यादें ही तो होती हैं । अब याद आ रहा है जब गर्मी की छुट्टियां खत्म होतीं तब मेरी मां खूब सारे कच्चे आम मंगवाती और फिर अचार में डालने वाले मसाले लेकर पापा आते । मां मेरी विदाई से पहले पहले आम का अचार डालती और अमृतसर की बड़ियां भी मंगवाती ।

एक मर्तबान भर के पूरे साल चलने वाला अचार सौगात में देते कहती तेरी मां इससे ज्यादा कुछ दे नहीं सकती भप्पी ! मैं कहती-मां इतना कुछ तो दे दिया और क्या चाहिए मुझे ! फिर गले लग कर मां बेटी खूब मिलतीं और वीर हमारा अटैची और सौगातें पहले से ही रिक्शा में रखवा कर तैयार रहता । जब तक बस चल न देती तब तक खड़ा बाॅय बाॅय करता रहता ! आज उसी वीर ने क्या कह दिया ? क्यों कह दिया ? ओह मां ! कहां हो ? कितना सच बोल गयी थी , बता गयी थी कि मां से ही मायका होता है ! मेरे बाद इन गलियों को तरसेगी भप्पी !

मेरे इस तरह जल्दी जल्दी मायके आने पर आस पड़ोस के लोग दबी जुबान में कहने लगे कि भप्पी अपनी ससुराल में खुश तो है ? तब बीजी ने कहा कि आप सबको पता है कि मेरी दो बड़ी बेटियां विदेश में रहती हैं । उनकी शादियों के बाद न उनके बच्चों को गोदी में खिला पाई और न ही उनके कोई लाड चाव कर पाई । वही लाड चाव अब भप्पी के बच्चों के साथ पूरे कर रही हूं ।

बस । इतनी सी बात है ! और कोई भेद नहीं इसमें ! फिर उसके बाद यह कानाफूसी बंद हो गयी ! सच में ससुराल से जल्द जल्द आना कोई खेल तो नहीं था । वहां भी सासु कहती थी क्या दौड़ी फिरती हो बार बार ? टिक कर ससुराल में रहो । क्या नहीं है यहां ? सासु भी कभी मायके जाती होगी और जानती होगी कि मायके में क्या होता है ! पर अपने समय को भूल गयी !

हां ! मेरी दो बहनें विदेश में थीं । जब हम बच्चियां थीं तब एक बार बड़ी बहन सरोज आई थीं विदेश से ! शादी के बाद पहली बार और हम सबके लिये खूब सारे कपड़े लेकर आई थीं ! उन दिनों बड़ा क्रेज था विदेशी कपड़ों का ! हम छोटी बहनें जब गली या स्कूल में ये विदेशी कपड़े पहन कर जातीं तब सबकी निगाहें हमारे ऊपर रहतीं ! तब देश ने इतनी तरक्की नहीं की थी ।

अब तो विदेशी फैशन से ज्यादा हमारे देश में फैशन है । क्या नहीं है ! पर हमारी बड़ी दीदी को एक इम्प्रेशन यह रह गया कि हम इंडिया में रहने वाले भाई बहन तो गरीब हैं और पता नहीं जैसे कैसे गुजारा चलाते हैं ! वीर नौकरी पर लग गया था और मेरे पति भी एक जमींदार परिवार के साथ साथ नौकरी करते थे । कहीं कोई कमी नहीं थी ! वीर और इन्होंने जब दूसरी दीदी कांता इंग्लैंड से आई तब मिल कर उनका इतना स्वागत् सत्कार किया कि यह इम्प्रेशन न जाये कि हम किसी तरफ से गरीब हैं ! और वे इसमें कामयाब भी रहे । सच ! हमारे दिन फिर चुके थे ।

मेरी वह बड़ी बहन सरोज फिर मेरी बड़ी बेटी की शादी में आई और उसका यह इम्प्रेशन न गया कि इंडिया में जो परिवार के लोग हैं वे गरीब हैं । और वह बार बार घबरा कर पूछती रही कि भप्पी ! कैसे करोगी बिटिया की शादी ? मैंने इतना ही कहा कि दीदी ! आप निश्चिंत रहिये और, देखती रहिये सब हो जायेगा आपकी आंखों के सामने ! जब धूमधाम से बेटी की शादी हुई तब खुद ही बोलीं कि मैंने गंगा नहा ली ! बहुत अच्छी शादी हुई है ! शुक्र है इसी जन्म में दीदी के हमें गरीब मानने का भरम तोड़ सकी !

-मम्मी ! यह क्या रोनी सूरत बनाये अकेली बैठी हुई हो ?
बेटी रिशी कमरे में आते ही बोली ।
-नहीं । ऐसी तो कोई बात नहीं !
-हमारे नाना तो आपकी तारीफ करते पापा से कहते थे -एवर स्माइलिंग फेस और यह सोते भी उठेगी तो स्माइल के साथ और आज यह चेहरे पर कैसे बारह बज रहे हैं ?
-जा अपनी ड्यूटी पे जा । कुछ नहीं । सब ठीक है ।

मां ने बेटी को टालने की कोशिश की लेकिन बेटी भी मां को जानती थी । बोली -मम्मी ! क्या मामा ने कुछ कहा ? फोन कर रही थी न मामा जी को ?
-हां । कर रही थी । यूं ही हालचाल पूछने के लिये किया था । हम अपने रिश्तेदारों से बहुत दूर हैं न ! कोई आता जाता भी नहीं तो मन थोड़ा उदास सा हो जाता है कभी कभी ! इसलिये फोन पर बात कर ही दिल को तसल्ली सी दे लेती हूं !
-तो आज तसल्ली नहीं हुई न !
-चल हट! अपने काम पे जा । टाइम हो रहा है तेरा ! नाश्ता बना दिया है । चल !
फिर भी बेटी रिशी की तसल्ली न हुई । मा के गले में बाहें डालकर बोली -वो सीआईडी प्रोग्राम में कहते हैं न कि कुछ तो गड़बड़ है ! मम्मी कुछ तो छिपा रही हो !
-कुछ नहीं ! भाई बहन की बात क्या छिपानी ? कोई गड़बड़ नहीं बाबा ! जा !
-ठीक है । जाती हूं पर लौटने तक यह रोनी सूरत दिखलाई नहीं देनी चाहिये !
-अरी ऐसा कुछ नहीं है ।
-तो पक्का ! आने पर स्माइल दोगी न !
-जा बाबा जा ! तुझे देर हो रही है !
बेटी ने नाश्ता किया और अपना टिफिन तैयार कर चली गयी मां को देखती देखती !
आखिर ये हंसते खेलते दिन बीत गये और बीजी की सेहत गिरती चली गयी । सेहत इतनी गिर गयी कि वे दूसरों के हाथों की ओर देखने लगीं । बिल्कुल बिस्तर पर लग गयी थी बीजी ! बस बिस्तर पर बैठी टुकुर टुकुर देखती रहती । पापा भागदौड़ कर हार गये पर कोई फर्क न पड़ा । अब भाभी ही चूल्हा चौका संभालती । फिर भी बीजी कुछ न कुछ बताती रहती कि ये बना लो भप्पी के लिये । ये बहुत पसंद करती है । हां , बिस्तर पर बैठे बैठे ही अचार डालने की कोशिश करती पर मैं ही बीजी को रोक देती -बहुत अचार खिला लिया बीजी ! अब तो मेरी बेटी रिशी बिल्कुल आप जैसा अचार डालना सीख गयी आपको देखते देखते ! मुश्किल से बीजी हाथ पीछे हटाती ! ऐसे भी बीजी को बहुत प्यार उमड़ता मुझ पर !

पापा एक सुबह सुबह इस दुनिया को अलविदा कह गये । तब तो मैं मायके से बहुत दूर रहती थी । फिर भी इन्होंने फटाफट गाड़ी की और हम अंतिम संस्कार से पहले पहुंच ही गये थे । इंग्लैंड से सरोज से छोटी दीदी कांता भी आ गयी थी और वही घर जो हंसता खेलता और महकता रहता था एकदम उदासी में डूब गया था !
संस्कार की दूसरी सुबह जब मैं जागी तब वीर और कांता दीदी पापा के संदूक में से सारे कागज़ पलट कर रहे थे । मैं एकदम सन्न रह गयी कि क्या एक ही दिन बाद यह खोजबीन ? पापा जैसे जीवन यात्रा पर जाने की पूरी तैयारी किये बैठे थे । हर चीज़ ऐसे संभाल कर रखी थी कि कोई बच्चा भी सारा हिसाब किताब जान ले । और हिसाब किताब मिल भी गया । वीर और कांता दीदी के चेहरे पर जरा भी कोई शिकन नहीं आई कि हम क्या कर रहे हैं !
फिर एक दो दिन बाद ही वीर ने हम बहनों के आगे मकान को अपने नाम किये जाने के कागज़ रख दिये और हमने भी कहा कि वीर हमें आपसे बढ़कर कौन ? हमारे लिये तो अब आप ही हो । हम सबने खुशी खुशी कोर्ट के कागज़ पर साइन कर दिये !

पर मैं यह जरूर सोचती रही कि वीर को इस कार्यवाही की इतनी जल्दी क्या पड़ी थी ? क्या वीर को हम बहनों पर भरोसा नहीं था ? जायदाद के लिये तो हमें कभी कोई लालच नहीं था बल्कि मेरे पति भी इस मामले में मेरे से आगे की सोच रखते थे । उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन से अपनी छोटी बहन को विवाह के बाद उसके हिस्से की ज़मीन देने में देर नहीं लगाई थी ! फिर वीर को इतनी जल्दी क्यों ? क्या इसलिये कि दो बहनें विदेश रहती हैं , फिर इस काम के लिये कब आयेंगी ? वैसे बीजी हमारे पापा को कहा करती थीं -एक ही तो बेटा है हमारा ! जीते जी इसके नाम कर दे मकान ! पर पापा कहते यदि ऐसा कदम उठाया तो किसी भी दिन इस छत से बाहर होंगे ! कौन सही था , कौन गलत ? नहीं जानती !

रब्ब रब्ब करते वे दुख भरे दिन भी बीते और फिर बेटियों के साथ लौटने का दिन भी आ गया । इस बार न आम के अचार का मर्तबान था और न ही अमृतसर की बड़ियां ! न पापा इधर उधर उदास डोल रहे थे । बस बीजी थी जो बैड पर बैठी टुकूर टुकुर मेरी विदाई देख रही थी कि अचानक कांता दीदी ने आदेश सुना दिया -भप्पी ! तू न एक काम कर ! बीजी को अपने साथ ले जा ! वीर को कुछ दिन आराम चाहिये । अभी पापा के दुख में डूबा है और ऊपर से बीजी की हालत देख ही रही हो ! तू बीर को कुछ दिनों के लिये छुट्टी दे दे इस काम से !

मैं क्या कहती ! चुपचाप देखती रही । गाड़ी में बीजी को उनके कुछ जरूरी सामान के साथ उनकी इच्छा पूछे बिना लाद दिया गया । हम अपने घर आ गये ! बीजी के लिये हमारे पास बाथरूम में इंग्लिश सीट भी नहीं थी । इन्होंने भागदौड़ कर एक ही शाम में वह सीट लगवा दी । बीजी ने आशीष दी इन्हें और कांता को बद्दुआ देते कहा कि कांता बंदिये तूने मुझे अपने पति के दुख में अपने ही घर में रोने भी न दिया ! मैं अपने घर से आना नहीं चाहती थी पर मेरी न तेरे वीर ने सुनी और न तेरी दीदी कांता ने ! बस एक फालतू सामान की तरह घर से बाहर फेंक दिया ! जैसे तेरे पापा के गंदे बचे सामान को फेंका था ! मैं भी शायद वैसा ही कोई सामान थी उन भाई बहन की नज़र में ! कांता बंदिये ! तू भी कभी ज़िंदगी में ऐसे ही तड़पे !

ये एकदम से बोले- बीजी क्या मैं आपका बेटा नहीं ? मैं आपकी सेवा नहीं कर सकता ? आप यह क्यों सोच रही हैं कि दामाद हूं और इसके घर रहना पड़ेगा ? आप यह सोचिये कि दूसरे बेटे के पास आ गयी हैं ! मैं आपको किसी तरह की कोई कमी नहीं महसूस होने दूंगा !
बीजी ने इन्हें गले लगाते कहा कि मेरी भप्पी ! सबसे प्यारी बेटी है और आप भी सबसे प्यारे बेटे ! मुझे क्या चिंता है पर ये दुख के दिन मैं अपने घर रहना चाहती थी पर कोई बात नहीं ! सब दिन एक समाना !

इस तरह बीजी हमारे पास खुशी खुशी रहने को मान गयीं और उनके मन का बोझ भी कम होने लगा । फिर पापा की पेंशन बीजी के नाम ट्रांस्फर करवाने का जिम्मा भी इनके ऊपर आया और इन्होंने भागदौड़ कर यह काम भी कर लिया तो एक दिन वीर का फोन आया कि भप्पी ! मैं बीजी की देखभाल के लिये कुछ पैसे हर महीने भेज दिया करूंगा! इस पर इन्हें बहुत गुस्सा आया और मेरे हाथ से फोन छीन कर बोले कि हम ये पैसे कभी नहीं लेंगे ! यहां कोई पेशेंट दाखिल नहीं और न यह कोई केयर सेंटर है ! यहां तो एक मां अपने बेटे के पास रहने आई है और मै इनकी देखभाल कर सकता हूं । इनकी पेंशन से भी रुपया नहीं लूंगा और दोबारा ऐसी बात भी मत कहना !

बीजी की आंखों में खुशी के आंसू थे और बोलीं-मैंने ही आपको प्यारी बेटी भप्पी के लिये चुना था ! आज मैं बहुत खुश हूं कि मेरा चुनाव गलत नहीं था ! हम दोनों को बीजी ने गले लगा लिया !
मेरी दोनों बेटियों की भी आंखें यह मंजर देखकर भर आईं ।

इस तरह बीजी ने हमारे यहां दिल लगाने की कोशिश शुरू की । मैं पड़ोस वाली बूढ़ी अम्मा को भी बुला लाती ताकि वह दोनों हमउम्र मिल बैठ कर कुछ बातें कर सकें । अपने गुजरे समय को जी सकें ! दोनों धूप में चांदी वाले बालों की छाया में बातें करतीं कभी रोतीं तो कभी खिलखिलातीं! ये शाम को आते तो बीजी के पसंद की कोई न कोई मिठाई ले आते । बीजी मना करतीं तो कहते और क्या पसंद है , वह बता दो बीजी , कल वही ले आऊंगा ! इस तरह एक साल बीत गया । हमें बीजी के आने से रौनक ही मिली । हमारा घर भरा भरा सा लगता !

पर कहते हैं न कि हर दिन होत न एक समाना! वही बात हुई। जो मेरी बीच वाली बहन थी नीरू वह अपने पति के साथ सारी उम्र तो रही जमशेदपुर लेकिन पापा ने समय रहते वीर के लिए प्लाट लेते समय नीरू को भी साथ‌ वाला प्लाट खरीद दिया था। इस तरह दोनों भाई बहन पड़ोसी हो गये थे। जब नीरू को बातों बातों में यह खबर लगी कि बीजी के नाम पेंशन आ रही है और वीर यह पेंशन देने को तैयार है, जो बहन बीजी को अपने पास रख ले! पता नहीं नीरू के मन में क्या था और क्या नहीं लेकिन उसका फोन आया कि मैं बीजी को लेने आ रही हूँ। भप्पी ! तूने बहुत सेवा कर ली बीजी की! कुछ समय दूसरों को भी मौका दे सेवा का!
मैं क्या कहती? नीरू आई और बीजी को वापस ले गयी! हमें अपना घर बीजी के बिना खाने को दौड़ने लगा पर क्या कर सकती थी? बीजी सबकी एक जैसी मां जो थी!
ले तो गयी नीरू बीजी को पेंशन के लोभ में लेकिन बिना मोह के आधी आधी रात जाग कर सेवा कैसे करती? बड़ा मुश्किल है अपनी नींद किसी के ऊपर कुर्बान करना! नीरू का पेंशन का मोह जल्द ही टूट गया और उसने वीर के घर ही बीजी को सौंप दिया! इस तरह बीजी भाई बहनों के बीच एक अनचाही जिम्मेदारी बन कर रह गयी!
फिर एक दिन वीर का संदेश आया कि बीजी नहीं रही और हम सब काम छोड़कर भागे! बीजी के बिना वही घर खाने को दौड़ रहा था! वह अचार के मर्तबान! वह अमृतसरी बढ़ियां सब जैसे बीते सपने की तरह थीं।
आज मायके वाला सपना भी चकनाचूर हो गया!
फिर दोनों बेटियों के बच्चों ने अमृतसर जाने की जिद्द पकड़ ली। तभी मैंने सोचा कि मायका थोड़ा पास ही तो पड़ेगा क्यों न वीर को भी मिलती चलूँ! और जैसे ही वीर से बात की तो उसका रूखा जवाब पाकर मेरी आह निकल गयी! हाय मां वीर ने यह क्या और क्यों कह दिया? क्या चिड़ियां दा चम्बा नहीं रहा? कैसे यकीन करूँ? मेरा सपनीला मायका छूट गया? कैसे विश्वास करूँ…….

एक बार तो दिल में आया कि बच्चों के साथ अमृतसर फेरी लगा ही आऊं और राह में अपने मायके वाले शहर भी हो आऊँ लेकिन वीर को न मिलूँ और बस एक फोन कर कहूँ कि वीर मैं आई तो थी पर बच्चों ने जल्दी मचा दी और बिना घर आये जाना पड़ा!
नहीं! इतनी हिम्मत नहीं‌ है मेरी! आखिर चिड़ियों के चम्बे का भरम तो बना रहे!