रांची। झारखंड गठन में यहां के मूलवासी-सदानों की अहम भूमिका रही है। इसलिए अब इन समुदाय की उपेक्षा बर्दाश्त नही की जाएगी। सदान आयोग का गठन करने के साथ-साथ झारखंड की क्षेत्रीय सदानी भाषाओं नागपुरी, पंचपरगनिया खोरठा, कुरमाली, को प्राथमिक स्तर से पढ़ाई शुरू की जाए। स्थानीयता को परिभाषित करने व नियोजन नीति बनाने जल्द से जल्द बनाया जाए। यह बातें मूलवासी-सदान मोर्चा के बैनर तले मंगलवार को राजभवन में आयोजित धरने के दौरान कही गयी।
क्षितीश कुमार राय ने कहा कि जहां 65 प्रतिशत आबादी सदानों की है वहीं वे उपेक्षित हैं। जिन सदानों ने झारखंड प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. स्वतंत्रता की लड़ाई हो या झारखंड आंदोलन सदानों अपनी शहादत दी। लेकिन हर सरकार की तरह वर्तमान सरकार भी सदानों के साथ भेदभाव कर रही है। उन्होंने कहा कि जिन 4 क्षेत्रीय भाषाओं नागपुरी, पंचपरगनिया खोरठा, कुरमाली, के आधार पर राज्य अलग हुआ उन्हीं क्षेत्रीय भाषाओं को दरकिनार कर दिया गया। इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा। डॉ करमचंद आहिर ने क्षेत्रीय भाषाओं की अवहेलना करना झारखंड को बर्बादी की ओर ढकेलना है। डॉ शकुंतला मिश्रा ने कहा कि सरकार को यह नहीं भूलना नहीं चाहिए कि झारखंड में 65 प्रतिशत मूलवासी सदान रहते हैं। जिन्होंने अलग राज्य लेने में तन मन धन निछावर किया है। रमेश दयाल सिंह ने कहा अलग राज्य की लड़ाई में हम लोगों ने धनबल सब तरह से सहयोग किया लेकिन आज हम सदान ,सरकार के गलत नीति के कारण उपेक्षित हैं। विशाल कुमार सिंह ने कहा झारखंड में विधानसभा का सीट को 81 से बढ़ाकर 160 किया जाना चाहिए तभी मूलवासी सदानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल पाएगा. धरना में डॉ उमेश नाथ तिवारी, डॉ सुदेश कुमार, रमेश दयाल सिंह, प्रो विक्रम कुमार सेठ, प्रो लक्ष्मीकांत प्रमाणिक, दुर्गा चरण महतो, दिनेश महतो, गौतम महतो, शैलेंद्र महतो सहित कई उपस्थित थे।