नई दिल्ली। बीते साल भर से हरकोई परेशान है। परेशानी में यदि आपके पास पैसा है, तो आपको मानसिक बल मिलता है। इसलिए जरूरी है कि अपना पैसा बचाकर चलें। अभी के दौर में फिजूलखर्ची नहीं करें। एक विचारक ने था, सच है पैसा खुदा नहीं है, लेकिन खुदा कसम खुदा से कम भी नहीं है। वर्तमान में यह बात सौ फीसदी सटीक है। हालांकि, केवल पैसा आ जाना ही काफी नहीं है। पैसे को संभालकर रखना व उसका सदुपयोग करना बहुत जरूरी है। आचार्य चाणक्य के अनुसार, अगर धनपति कुबेर भी अपने आय से ज्यादा खर्च करें, तो कंगाल हो जाए। ऐसे में धन की बचत करना बहुत जरूरी है।
जरूरत दाल में नमक जितनी
संत कबीर कहते हैं – साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ यानी जिस प्रकार से दाल में नमक कम होने से स्वाद नहीं आता और ज्यादा होने से स्वाद गड़बड़ा जाता है। ठीक उसी प्रकार से जीवन में पैसे की दरकार होती है। यानी दाल का स्वाद स्वयं भी ले सकूं और दूसरे को दाल देने में सक्षम हूं।
इस बात को मानना पड़ेगा कि पैसे में ताकत है। पैसे से आलीशान घर, अच्छे-अच्छे कपड़े, चमक-दमकवाला साज-सजावट का सामान खरीदा जा सकता है। पैसे से लोगों की वाह-वाही, झूठी तारीफ या चापलूसी भी खरीदी जा सकती है। पैसा होने से चंद दिनों के लिए आपके कई शुभचिंतक भी पैदा हो जाते हैं जो आगे-पीछे दुम हिलाए आपके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार खड़े रहते हैं। पैसे में बस इतना ही देने की ताकत है, मगर इससे ज़्यादा पैसा आपको कुछ नहीं दे सकता है। हमें जिन चीज़ों की सख्त ज़रूरत है, वे पैसे से नहीं खरीदी जा सकती हैं, जैसे एक सच्चे दोस्त का प्यार, मन की शांति और आखिरी घड़ी में थोड़ा-सा सच्चा दिलासा ताकि हम चैन से मर सकें। और जिन लोगों के लिए सृष्टिकर्ता के साथ का रिश्ता अनमोल है, पैसा उनके लिए वह रिश्ता नहीं खरीद सकता।
समझिए पैसे का महत्व
आपने शायद सुना होगा कि कैसे डाकुओं का गिरोह बंदूक की नोक पर यह मांग करता हैः “जान प्यारी है या पैसा!” आज हम सभी एक ऐसी दुविधा में हैं जिसमें हमसे, खासकर अमीर देशों में रहनेवाले लोगों से इसी तरह की माँग की जा रही है। लेकिन आज ये माँग कोई डाकू नहीं करता बल्कि समाज में ऐशो-आराम की चीज़ों पर ज़्यादा ज़ोर देने के ज़रिए हमसे ये माँग की जाती है। ऐश-आराम और पैसों पर ज़्यादा ज़ोर देने से नये-नये मुद्दे और कई परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। पैसा और भौतिक चीज़ों को पाने के लिए हमें क्या कीमत चुकानी पड़ती है? क्या हम थोड़े में ही खुश नहीं रह सकते हैं? क्या आज सचमुच लोग भौतिक चीज़ों की वेदी पर अपने “सच्चे जीवन” को भेंट चढ़ा रहे हैं? क्या पैसा एक ऐसा ज़रिया है जो हमें खुशहाल जीवन की ओर ले जा सकता है?
शरीर चलाने के लिए जितना पैसा चाहिए पैसे का उतना ही महत्व है। शरीर चलाने के लिए क्या चाहिए? खाना चाहिए, कपड़े चाहिए और सिर छुपाने के लिए कुछ जगह चाहिए। बस इतना ही महत्व है पैसे का। यदि पैसा हैसियत बनने लग गया या दूसरों को नीचा दिखाने का या अपने आप को ऊंचा दिखाने का साधन बनने लग गया, तो अब ये पैसा बीमारी है। याद रखिए कि पैसां से सुख सुविधा तो खरीद सकते है, लेकिन पैसों से मन की शांति कभी नही खरीद सकते हैं।