नई दिल्ली। लिम्फैटिक फाइलेरियासिस (ईएलएफ) के उन्मूलन के लिए की गई प्रयासों में एक महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है। सर्व दवा सेवन (एमडीए), जो कि इस बीमारी के नियंत्रण के लिए एक प्रमुख रणनीति है, ने 345 जिलों में से 138 जिलों को सफलतापूर्वक ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे (टीएएस-1) में सफलता दिलाई है, जिसके परिणामस्वरूप इन जिलों में एमडीए कार्यक्रम समाप्त कर दिया गया है।
मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) को 2004 में लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के नियंत्रण के लिए एक रणनीति के रूप में अपनाया गया था और यह नियमित रूप से प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत, प्रभावित क्षेत्रों में समुचित दवा वितरण किया जाता है, जिससे बीमारी के प्रसार को नियंत्रित किया जा सके।
राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी) के अनुसार, भारत के 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 345 जिले लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के लिए स्थानिक हैं। इनमें से 138 जिलों ने ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे (टीएएस-1) में सफलता प्राप्त की है, जो कि इस बात का संकेत है कि इन जिलों में लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के संचरण को नियंत्रित किया गया है और इस वजह से इन जिलों में एमडीए कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया है।
टीएएस-1, टीएएस-2, और टीएएस-3 के परिणामों के अनुसार, जिलों की संख्या क्रमशः 138, 128, और 106 है। टीएएस-1 में सफलता प्राप्त करने वाले जिलों की संख्या 138 है, जबकि टीएएस-2 में यह संख्या 128 और टीएएस-3 में 106 (संचयी) है। यह आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि भारत ने इस बीमारी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा खोला है और प्रभावी नियंत्रण उपायों के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रगति की है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि यह सफलता देश के समर्पण और सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि एमडीए कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन और ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे की प्रगति से यह सुनिश्चित होता है कि भारत लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के उन्मूलन की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस उपलब्धि को देशभर के स्वास्थ्य कर्मियों, अधिकारियों, और कार्यकर्ताओं के समर्पण का परिणाम बताते हुए भविष्य में भी इस दिशा में निरंतर प्रयास जारी रखने का संकल्प लिया है।