किसान आंदोलन -सरकार आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो और बढ़ेगा गतिरोध

किसान आंदोलन में हाल के दिनों में एक महिला द्वारा छेङछाङ के आरोप के बाद किसान आंदोलन पर दाग भी लगा।

भारत किसानों का देश है यानी कृषि प्रधान देश है और देश में 65 फिसदी आवादी किसानों की है। देश में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार बनाने में भी किसानों की बङी भूमिका होती है। विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान बीते सात महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमाए बैठे हैं और सरकार भी अपने रुख पर अडिग है। सरकार का कहना है कि कानूनों में संशोधन तो हो सकते हैं लेकिन कानून वापस नहीं लिए जाएंगे। अब तक सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं पर सब बेनतीजा रहीं बात चाहे ब्रिटिश शासनकाल की हो या स्वतंत्र भारत की आंदोलनों और सरकार का संबंध पुराना ही रही है ।

इस आंदोलन का असर बंगाल के विधानसभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भाजपा को दिख भी चुका है। सरकार को अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इसका हल जल्द से जल्द निकालना चाहिए! वरना विधानसभा चुनावों में इसका असर साफ दिखेगा! किसानों की रणनीति अब देशभर में राजभवनों के घेराव की है! सवाल है कि अगर इसी तरह का रवैया बना रहा किसान धरने पर बने रहे और सरकार आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो गतिरोध और बढ़ेगा ऐसा होना देश हित में किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं है! इसलिए सरकार को किसानों के साथ गतिरोध को बढ़ाने के बजाय फिर से सकारात्मक माहौल में बात करने की जरूरत है।

हालांकि देश के कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर फिर से किसानों से बात करने को तैयार हैं तो वहीं किसान आंदोलन में हाल के दिनों में एक महिला द्वारा छेङछाङ के आरोप के बाद किसान आंदोलन पर दाग भी लगा। लेकिन किसान नेता इसे सरकार की साजीश बता इससे अपना पल्ला झाङ लिया। इन सबके बीच अव अगले साल 2022 में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं लिहाजा न चाहकर भी केंद्र सरकार को अव किसान संगठनों से बातें करना मजबूरी हो जायेगी। क्योंकी सवाल फिर सत्ता का होगा।