नई दिल्ली। देश में राष्ट्रीय महिला आयोग से लेकर हर राज्य के महिला आयोग हैं और यदा कदा सुर्खियों में आते हैं लेकिन आमतौर पर खामोश ही रहते हैं, शत्रुघ्न सिन्हा की तर्ज पर-खामोश ! पर क्या खामोश रहने के लिए महिला आयोग का गठन किया जाता है ? इन आयोगों को तो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का संज्ञान लेना होता है । पर ऐसा संज्ञान बहुत कम सुनने पढ़ने को मिलता है । आज ही देखिये हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया मीडिया में नज़र आई हैं चरखी दादरी से और कह रही हैं कि जींद से महिला पुलिस कर्मचारी आयोग के सामने आयेंगीं , अपनी व्यथा कथा सुनाने एसपी द्वारा यौन शोषण के मुद्दे पर! श्रीमती रेणु भाटिया कह रही हैं कि उनके फेसबुक मैसेंजर पर इस आईपीएस ऑफिसर के खिलाफ सबूत होने की बात कही जा रही है । मैंने उन लोगों को खुलकर सामने आने की बात कही है ।
अब पता नहीं क्यों, यह ‘खुलकर’ सामने आने वाली ऑफर पर ‘दामिनी’ फिल्म याद आने लगी है , जिसमें वकील बने अमरीश पुरी दामिनी(मीनाक्षी शेषाद्रि) से कठघरे में खड़ी कर ऐसे ऐसे सवाल खुलकर पूछते हैं कि वह अदालत में शर्मिंदा होती जाती है और बेहोश होकर गिर जाती है । क्या एक महिला होने के नाते श्रीमती रेणु भाटिया इन महिला पुलिस कर्मियों की मन की बात पढ़ने और मन की थाह पाने में असमर्थ हैं ? जंतर मंतर पर बैठीं महिला पहलवानों के मन की थाह किसी मन की बात करने वाले ने पा ली होती तो विनेश फौगाट अभी तक मेडल पाने की कोशिश कर रही होती, राजनीति में कदम न रखती । विनेश ने दुखी मन से लिख दिया था कि मां ! मैं हार गयी और रेसलिंग जीत गयी ! तब या जंतर मंतर के दिनों में हरियाणा महिला आयोग की कोई उपस्थिति नज़र नहीं आई थी । हो सकता है, वह दिल्ली का मसला हो लेकिन जिन दिनों महिला कोच पंचकूला में तत्कालीन खेलमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोले बैठी थी, तब क्या एक्शन लिया था ? तब तो मुख्यमंत्री भी कह रहे थे कि अभी दोषी करार नहीं दिया गया तो हम मंत्रिमंडल से कैसे बाहर कर दें ? महिला आयोग की जो भी भूमिका थी वह बहुत ढुलमुल भूमिका रही । इधर दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति मालीवाल हेमामालिनी के गालों जैसी सड़कों पर नरेश बाल्यान के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दे रही हैं और अरविंद केजरीवाल से इस विधायक के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही हैं।