जाने कहां गये वो दिन, अव जनता के दर्द को नहीं समझ पा रही सरकारें

पिछले कुछ महीनों पर नजर डालें तो देश मे खाने की जरूरी चीजों जिसमें खाद्य तेल दाल एवं अन्य खाद्य पदार्थों के दामों में भारी उछाल आया है खाने के तेल की कीमत तो दुगनी से ज्यादा हो चुकी है

लोकतंत्र में जनता ही सरकार होती है और जनता अपने जनप्रतिनिधि के माध्यम से शासन चलाती है । जाहिर है जव जनता सरकारें चुनति हैं तो उन्हें इस बात का मलाल रहता है कि सरकार उनके लिये काम करेंगी लेकिन वही सरकार जव जनता को लूटने लगती है तो फिर बेचारी जनता अपने पूराने दिनों को याद करने लगती है। आज देश में तेजी से बढ़ती महंगाई की मार से आमजन हैरान बेचैन परेशान हैं ।इस पर लगाम लगाने का काम सरकार के नियंत्रण से निकलता हुआ महसूस होने लगा है! पेट्रोल डीजल की कीमतों में जो उछाल आ रहा है उससे खाद्यान्न वस्तुओं के परिवहन ढुलाई में तेजी से वृद्धि हो रही है सवाल है कि जनता के हित में सरकार की इच्छाशक्ति कहां खो गई है।

आमतौर पर जब जरूरी वस्तुओं के दाम बेतरह बढ़ने लगते हैं तब जाकर महंगाई सुर्खियों में आती है। पिछले कुछ महीनों पर नजर डालें तो देश मे खाने की जरूरी चीजों जिसमें खाद्य तेल दाल एवं अन्य खाद्य पदार्थों के दामों में भारी उछाल आया है खाने के तेल की कीमत तो दुगनी से ज्यादा हो चुकी है एक ओर महामारी के चलते रोजगार कम हुआ लोगों की आय कम हुई दूसरी ओर महंगाई तेजी से बढ़ रही है कुछ लोगो का मानना है महंगाई पिछले कई सालों में सबसे ज्यादा बढ़ी है तकलीफ की बात यह नहीं है कि महंगाई बढ़ गई है बल्कि यह है कि लोगों की आमदनी कम हो गई है लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं इससे सबसे ज्यादा आम जन जीवन प्रभावित हुआ रोजी रोटी तक ठप रहने और खाने पीने के संकट के दौर में हम समझ सकते हैं कि आम लोगों को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा होगा अब पूरे देश में मानसून का आगाज हो चुका है मानसून जब अपनी चरम सीमा पर रहेगा तब बाढ़ की संकट गहराने लगेगा बाढ़ से भी सबसे ज्यादा ग्रामीण इलाकों के गरीबों को सामना करना पड़ेगा यानी हर तरह से गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को ही झेलना पड़ेगा। ऐसे में बेचारी जनता अपने उन दिनों का याद कर बस इतना भर कह रही है कि हे सरकार इस अच्छे दिन से तो मेरे वो पूराने दिन ही अच्छे थे और अगर हो सके तो उसे लौटा दो—-