दशमत के बहाने क्या शुरू होगा दलित चिंतन?

जरूरत आज इस बात की है कि ऐसे किसी भी कृत्य पर सही समय पर कार्रवाई हो, जैसा कि दशमत के केस में हुआ है, निश्चित तौर पर इसका श्रेय सोशल मीडिया को दिया जाना चाहिए, जिसके लिए साधुवाद।

निशि भाट, स्वतंत्र पत्रकार

इधर बीते कुछ दिनों से एक अच्छा चलन शुरू हुआ है, सामाजिक सरोकार के मुद्दे सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सरकारें न सिर्फ हरकत में आती है बल्कि जरूरी कार्रवाई भी की जाती है। दशरत का मामला नया है, मध्यप्रदेश के सीधी जिले में नशे में चूर एक ब्राह्मण युवक ने दलित पर मूत्र विसर्जन कर दिया। नजदीक ही खड़ा कोई भला मानक वीडियो भी शूट कर रहा था, यह भी हो सकता है उच्च जाति के अहंकार में दंभ भरने वाले युवक प्रवेश शुक्ला ने खुद ही वीडियो शूट कराया हो, खैर वीडियो वायरल हुआ और मध्यप्रदेश की सरकार ने जरूरी कार्रवारी भी की, दशमत को मुख्यमंत्री निवास पर बुलाया गया, पांव धुलवाए गए। आरोपी पर संविधान की धाराओं के तहत सजा भी दी गई।
क्येंकि मामले ने तूल पकड़ लिया इसलिए राज्य सरकार ने भी बिना कोई देरी किए दशमत को लौटा हुआ सम्मान वापस दिलाने की पूरी चेष्ठा की। लेकिन दशमत के बहाने दलित चिंतन को एक बार फिर हवा मिलेगी शायद इसकी उम्मीद नहीं है, पूर्व में वायरल हुए तमाम वीडियो की तरह दशमत भी कहीं खो जाएगें। कोलकता के स्टेशन पर लता मंगेश्कर का गाना गाते हुए मिली रानू मंडल का भी इसी तरह वीडियो शूट किया गया और रानू को रातों रात शोहरत भी मिल गई। कई बड़े गायकों ने रानू को गाने का ऑफर दिया। बाबा का ढाबा भी सभी को याद होगा, एक यूट्यूबर के चैनल पर बाबा पर वीडियो जारी होने के बाद सबका ध्यान बाबा की तरफ गया, बाबा को शोाहरत भी मिली और एक बार फिर गुमनामी के अंधेरे में खो गए। लेकिन दशमत पर मुत्र विर्सजन की घटना ने एक सामाजिक चिंतन को जन्म दिया है, जिसे फिलहाल धूमिल नहीं पड़ना चाहिए, इधर कुछ दिनों से देश में राष्ट्रहित की बयार चल पड़ी है, धर्म की राजनीति में जातिवाद को न भुलाया जाएं, सदियों तक दलित उत्पीड़न देश में ज्वलंत मुद्दा रहा है, शिक्षा का अधिकार हो या फिर धार्मिक स्थल पर पूजा पाठ करने का अधिकार, दलित उत्थान के लिए लंबा संघर्ष किया गया।
इस संदर्भ में निश्चित तौर पर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता, लेकिन सवर्ण समाज ने बाबा भीमरााव अंबेडकर को भी बौद्ध धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया, लेकिन वह देश में भेदभाव की राजनीति को खत्म नहीं कर पाएं। दशमत जैसे हजारों दलित आज भी समाज की मुख्यधारा में खुले मन से स्वीकार नहीं किए जाते हैं। वर्ष 2021 में रिलीज हुई जय भीम मूवी में दलित अत्याचार को मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया गया, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई इस मूवी को काफी लोगों ने देखा और सराहना भी की। दलितों के कानूनी पेंचदगियां भी उत्पीड़न का कारण बनी, लेकिन संविधान में वर्णित अधिकारों की बदौलत काफी हद तक इस समुदाय के अधिकारों की रक्षा भी गई।

(निशि भाट, स्वतंत्र पत्रकार)