राजनीति में हार जीत लगी रहती है। हर राजनीतिक दल बेशक समाजसेवा की बात करें, लेकिन सभी का लक्ष्य होता है, सत्ता की कुर्सी। इसके लिए ही पूरी कवायद होती है। ऐसे में जब भारतीय जनता पार्टी की ओर से पश्चिम बंगाल में सोनार बांग्ला मिशन की शुरूआत की जाती है। हर बूथ तक पहुंचने के लिए पूरा खाका बना लिया गया है। भाजपा नेतृत्व इस बात को कह रहा है कि जनता की सलाह से ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी अपना चुनावी घोषणा पत्र तैयार करेगी। यानी – हर स्तर पर जनता की सहभागिता की बात की जा रही है।
जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में लगातार अपने केंद्रीय नेताओं की सभाओं पर फोकस कर रही है, उससे इतना तो तय हो गया है कि भाजपा किसी भी कीमत पर बंगाल में अपनी धमक मजबूत करना चाहती है। पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को बीते कई महीनोें से बंगाल की माटी का मुआयना करने के लिए पार्टी ने छोडा है। वे दिलीप घोष के साथ जमीनी सच्चाई को दिल्ली में केंद्रीय नेताओं को बताते हैं। उसके बाद पार्टी के रणनीतिकार उस पर काम करते हैं।
स्वयं जेपी नड्डा कहते हैं कि सोनार बांग्ला बनाने के लिए भाजपा बंगाल की जनता के सुझावों को शामिल करेगी। उन्होंने बताया कि 30 हजार से ज्यादा सुझाव पेटियों के जरिए ये सुझाव बटोरे जाएंगे। प्रदेश की 294 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक में करीब 100 बक्से रखे जाएंगे। उन्होंने कहा कि 50 बक्से लेकर हमारे कार्यकर्ता घर-घर जाएंगे, जबकि 50 बक्सों को शहरों के मुख्य स्थानों पर रखा जा सकेगा। इनमें लोग हमारे मेनिफेस्टो को लेकर अपने सुझाव दे सकेंगे। इन्हें ध्यान में रखते हुए ही हम प्रदेश के लिए अपना मेनिफेस्टो तैयार करेंगे। हम सोनार बांग्ला के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद्र चटर्जी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, श्यामाप्रसाद मुखर्जी और ईश्वर चंद्र विद्यासागर की महान परंपरा वाले बंगाल को उसका गौरव वापस दिलाएंगे। नड्डा ने कहा कि ये कैंपेन 3 मार्च से 20 मार्च तक हर विधानसभा को कवर करेगा।
तेरा निज़ाम है सिल दे जुबान शायर की
गौर करने योग्य यह भी है कि बीते महीना भर में भाजपा के सबसे बडे चेहरे स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन बार राज्य का दौरा कर चुके हैं। कई योजनाओं का शुभारंभ किया गया, तो चुनावी सभाओं में राज्य की तृणमूल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को खूब खरी-खोटी सुनाई गई। असल में, तेरा निज़ाम है…. ये लाइनें दुष्यंत कुमार की एक गजल की हैं- तेरा निज़ाम है सिल दे जुबान शायर की, ये एहतियात जरूरी है इस बह़र के लिए। कहा जाता है कि दुष्यंत कुमार ने ये लाइनें 1975-77 के आपातकाल की पृष्ठभूमि में लिखी थीं। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये आज के लिए ही लिखी गई हैँ।
भाजपा पूरी ताकत के साथ इस चुनाव में उतरी है। भाजपा यहां पर राष्ट्रीयता के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ी है। साथ ही पार्टी ने राज्य में ममता सरकार की तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ जो मोर्चा खोला है उसका उसे फायदा जरूर होगा।भाजपा लोगों को ये बताने में काफी हद तक सफल होती दिखाई दे रही है कि ममता हिंदुओं के बारे में नहीं सोचती हैं। वहीं, ममता द्वारा जय श्री राम के नारे का विरोध करने की घटना ने इसको कहीं न कहीं प्रमाणित करने का काम किया है। इसके बाद यहां ये एक ममता विरोध का नारा बन चुका है। जहां तक इस चुनाव में ममता के तरीके की बात है तो ये पहले की ही तरह है, लेकिन भाजपा उसको जवाब देने की भूमिका में है। केंद्र में सरकार होने का फायदा भी कहीं न कहीं पार्टी को मिल सकता है। उनका ये भी कहना है कि चुनावी हिंसा जिस तरह से लेफ्ट और टीएमसी पहले कर लेती थी इस बार वैसा नहीं हो सकेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस बार के विधानसभा चुनव में राज्य पुलिस का उपयोग न के ही बराबर होगा। इसलिए टीएमसी इस बार हिंसा का फायदा अपनी जीत के लिए नहीं उठा सकेंगी। हालांकि, ये चुनाव हिंसा रहित नहीं होने वाला है।
भाजपा के लिए आसान नहीं
ममता को सत्ता से हटाना भाजपा के लिए आसान नहीं है तो इतना मुश्किल भी नहीं होगा। लेकिन इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। ये इस बात पर तय करेगा कि चुनाव में लोग कैसे वोट करते हैं। साथ ही मुस्लिम वोटों में जो बंटवारा होगा, ये काफी कुछ इस पर भी निर्भर करेगा। ऐसे में, बंगाल की धरती से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में सभी के मुंह पर एक ही सवाल है कि भाजपा अपने इस मिशन के जरिए लक्ष्य को कितना और किस हद तक हासिल कर पाएगी। हालांकि, इसका जवाब भविष्य के पास है। इसमें भागीदारी राज्य की जनता की होगी। हम और आप तो केवल दर्शक ही होंगे।