सेरोगेसी से संतानसुख : नये कानून के तहत मेडिकल रिपोर्ट के बाद ही होगी इसकी अनुमति

इधर कुछ सालों से ऐसे युगल अधिक हो गए हैं जो बिना किसी ठोस आधार के पैसे की बल पर संतानसुख हासिल कर रहे हैं, जिसे विशेषज्ञ भी ठीक नहीं मानते हैं। अब जानते हैं आखिर एआरटी के तहत किस तरह के दम्पति संतानसुख ले सकते हैं और सेरोगेसी और आईवीएफ में क्या फर्क है।

नई दिल्ली। इधर कुछ सालों ने बॉलिवुड अभिनेताओं द्वारा संतानसुख के लिए सेरोगेसी का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। शाहरूख खान, तुषार कपूर, अमीर खान के बाद अब प्रियंका चोपड़ा सेरोगेसी के माध्यम से मां बनी हैं। जिसकी वजह से सेरोगेसी का व्यवसायीकरण हो गया है। लंबे अर्से से सेरोगेसी और आईवीएफ पर नकेल कसने के लिए सरकार संशोधित एआरटी असिसटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेटिरी बिल लागू कर चुकी है, जिसे सबसे पहले वर्ष 2010 में संशोधित किया गया, इसके बाद फिर बीते साल 2021 में नये कानून को दोनों ही सभा लोकसभा और राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया है। वर्ष 2010 में किए गए संशोधन के बाद इस बिल के तहत पहली बार लेसबियन या समलैंगिक युगल को भी संतानसुख लेने की अनुमति मिली। बिल में कहा गया कि ऐसे दंपतियों को यदि कानूनी मान्यता मिल गई है वह एआरटी बिल के तहत संतानसुख ले सकते हैं।
नारची (नेशनल एसोसिएशन फॉर रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ केयर इंन इंडियन) की पूर्व अध्यक्ष डॉ. अचला बतरा कहती हैं कि नये एआरटी कानून में ऐसी सभी संभावनाओं को रोकने की कोशिश की गई जिससे सेरोगेसी या आईवीएफ का व्यवसायिककरण रोका जा सके। कुछ विशेष मेडिकल कंडिशन जिसमें, दम्पति तकनीकि वजहों से संतानसुख लेने में असक्षम है वहीं इस तकनीक का फायदा ले सकते हैं, और इस बात की पुष्टि एक मेडिकल बोर्ड द्वारा मुल्यांकन के बाद ही की जाएगी कि दंपति वास्तव में प्राकृतिक रूप से संतानसुख लेने में सक्षम नहीं हैं। दिसंबर महीने में पारित नये एआरटी बिल 2021 के तहत सेरोगेसी का चयन करने से पहले राज्य, ब्लॉक और जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड बनाया जाएगा, जिसकी संस्तुति के बाद ही दंपति इस विकल्प को अपना सकेगें। इसके साथ दंपति को जिला न्यायलय में जाकर एक प्रमाणपत्र देना होगा कि सेरोगेसी से होने वाले बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र पर माता पिता के तौर पर उनका नाम होगा सेरोगेसी मां का नहीं। यदि किसी महिला को यूट्रेस या गर्भाश्य संबंधी दिक्कत है, यूट्रेस में कैंसर है गांठ है या फिर यूट्रेस कमजोर के कारण बार बार गर्भपात हो जाता है तो इस स्थिति में महिला सेरोगेसी का विकल्प अपना सकती है।

सफरदरजंग अस्पताल की महिला एवं प्रसूति रोग विभाग की डॉ. दिव्या पांडे कहती हैं कि नये बिल के तहत सेरोगेसी पहले बच्चे के लिए ही मान्य होगी, दूसरे बच्चे के लिए या फिर सिंगल पेरेट्स सेरोगेसी का लाभ नहीं ले पाएगें जैसे कि सुष्मिता सेन सिंगल पैरेंट्स के तहत संतानसुख ले चुकी हैं। इसी तरह आईवीएफ जिसे इंविट्रो फर्टिलाइजेशन भी कहा जा सकता है, का प्रयोग भी अपने सुविधा के लिए नहीं किया जा सकेगा। इसमें पुरूष को यह प्रमाणित करना होगा कि उसके शुक्राणु गर्भधारण करने में सक्षम नहीं है या फिर स्पर्म काउंट कम है।

क्या है सेरोगेसी
एआरटी बिल के तहत सेरोगेसी वह प्रक्रिया है जिसमें संतानसुख लेने के लिए महिला अपने गर्भ में बच्चे को न पाल कर किसी अन्य की कोख लेती है, जिसे किराए की कोख भी कहा जाता है। इस काम के लिए सेरोगेट मां को निर्धारित रकम दी जाती है और जन्म के बाद उसका बच्चे पर किसी तरह का अधिकार नहीं रहता है। लेकिन चिकित्सीय जगत में सेरोगेसी विशेष मेडिकल स्थिति के तहत ही अपनाया जा सकता है जबकि सभी तरह के इलाज कराने के बाद भी महिला को गर्भधारण नहीं हो रहा है। प्रक्रिया के तहत मां के अंडाश्य और पुरूष के स्पर्म के भ्रूण को पहले लैबारेटरी में फरटाइल किया जाता है, इसके बाद इसे सेरोगेट मां के गर्भ में पहुंचाया जाता है। जहां नवजात नौ महीने का समय पूरा करता है। फ्लोपियन ट्यूब खराब है या फिर किसी जेनेटिक बीमारी की वजह से बार बार गर्भपात हो जाता है। सेरोगेसी के लिए दंपति को पहले से किसी बच्चे का न होना जरूरी है। नये कानून के अनुसार यदि नियम के तहत सेरोगेसी को नहीं अपनाया गया तो दस लाख का जुर्माना और पांच साल की कैद का प्रावधान रखा गया है।

आईवीएफ क्या है
संतानसुख लेने के लिए आईवीएफ या इंनविट्रो फर्टिलाइजेशन का प्रचलन बीते कुछ सालों से काफी बढ़ा है। जिसका प्रयोग असर निसंतान दंपति करते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार आईवीएफ से गर्भधारण में सफलता मिल ही जाएं। रोेहतक की 34 वर्षीय निशा कहती हैं कि शादी के दस साल बाद भी हमें कोई संतान नहीं हुई तो हमने आईवीएफ का सहारा लिया लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी आईवीएफ से संतानसुख नहीं ले पाएं। दरअसल, आईवीएफ में भ्रूण का विकास मां के गर्भ में ही होता है लेकिन किसी कारण से सामान्य प्रक्रिया से जब गर्भ नहीं ठहरता तो चिकित्सक मां के अंडाश्य और पिता के शुक्राणु को एक ट्यूब में विकसित कर उसे मां के गर्भाश्य में प्रत्यारोपित कर देते हैं, इसलिए से टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है। कई बार ऐसी कंडिशन जहां पुरूष के शुक्राणु कम गुणवत्ता वाले होते हैं ऐसे में बाहरी किसी व्यक्ति के शुक्राणु भी प्रत्यारोपित किए जाते हैं, यह विषय आयुष्मान खुराना की फिल्म विकी डोनर में प्रमुखता से उठाया गया था।

क्यों बढ़ रही है संतानहीनता
-18 की जगह विवाह की उम्र 30 से 31 साल हुई
-कामकाजी महिलाओं पर देखा गया एल्कोहल व सिगरेट का सेवन
-गर्भनिरोधक गोलियों का अधिक इस्तेमाल भी संतान न होने में सहायक
-पुरुषों में सिगरेट व पैंट की जेब में मोबाइल रखने का असर पड़ रहा है शुक्राणुओं पर
-केवल 2 प्रतिशत मामले में ट्रार्च व रूबेला वायरस के संक्रमण की वजह से गर्भपात