नई दिल्ली। जहां तक स्मरण आता है, कोरोना से जुड़े हर प्रसंग में प्रधानमंत्री (PM Narnendra Modi) ने मास्क (Mask) और दो गज दूरी की बात हर मर्तबा की है। उस दिन भी, जब दो वैक्सीन (Vaccine) तैयार कर लिया था हमने। तब भी यही बात दोहराई गई थी कि वैक्सीन लेने के बाद भी संयमित रहना है, दो गज की दूरी बनानी है, मास्क पहनना है आदि आदि। ये कहने वाली बात थी, कह दी गई। शिद्दत से कही गई।
चीजें बदलनी शुरू हुईं। कोविड 19 (COVID19) दमदार तरीके से वापस आया। रफ्तार और धार तेज करके आया। फिर वही अपील: मास्क पहनिए और दो गज की दूरी मेंटेन कीजिये।
इस बीच 5 राज्यों के चुनाव तय हो गए। रैलियां हुईं। प्रधानमंत्री (Prime Minister) समेत केंद्रीय मंत्रिमंडल का प्रायः हर सदस्य पांचों राज्यों में चुनाव प्रचार करने लगा। मोदी जी ने बंगाल पर फोकस किया। उनकी 20 रैलियां तय की गईं। 5 साल से कैलाश विजयवर्गीय वहां मोर्चा संभाल रहे थे। अमित शाह लगातार दलितों के घर भोजन कर रहे थे। भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले का सिलसिला बदस्तूर जारी था। टीवी चैनल चीख चीख कर इन हत्याओं पर रिपोर्ट पेश कर रहे थे। मतुआ समुदाय के बीच बैठ कर अमित शाह के भोज को जोरदार तवज्जो दिया गया। ममता बनर्जी ने मोदी पर जो आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, उसे दिखाया गया और तमाम शोज आयोजित किये गए। इन सब से कोरोना (COVID19) को गायब कर दिया गया जबकि कोरोना था और मजबूती के साथ था।
ऐसा नहीं था कि बंगाल में चुनाव (West Bengal Election) चल रहा था और कोरोना डर के मारे कहीं छिप गया था। हमने कोरोना को गायब कर दिया। साजिशन। हमने बयानबाजी को तवज्जो दी। ममता के रोड शो, शाह के रोड शो को हमने फ़्लैश किया, लाइव दिखाया। क्या तब रोड शो में कोरोना नहीं था? था। बिल्कुल था। हमने उसे नजरअंदाज किया। किसी भी गुर्दे वाले पत्रकार में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो प्रधानमंत्री या गृहमंत्री या सूबे के मुख्यमंत्री से पूछ सके कि मालिक/मालकिन! इस कोरोना के दौर में आप क्यों रोड शो कर रहे हैं? क्यों आग से खेल रहे हैं?
अब हालत ये है कि लाशें बजबजा रही हैं। अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है। लोग सो नहीं पा रहे हैं। लोगों के वजन तेजी से घटते जा रहे हैं। मुझ समेत कई लोगों ने सम्पूर्ण lockdown लगाने के लिए अनेक ट्वीट किये पर साला नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन कर रह गए! अभी भी बंगाल में देश का प्रधानमंत्री गरज रहा है। 3 चरणों के चुनाव शेष हैं। 28 तक चुनाव होने हैं। 2 मई को पता चलेगा कि सरकार कौन बना रहा है। लेकिन सवाल ये है कि तब तक जो जनहानि हो चुकी होगी, उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? मरघट में जो लाशों का रेला लगा है, उसके अंतिम क्रिया कर्म के लिए कौन जिम्मेवारी लेगा? चलो, भाजपा एक मिनट के लिए बंगाल फतेह कर भी लेती है तो किस कीमत पर? जो लोग पट पट कर मर रहे हैं, उसका दोषी किसे माना जाए? इस बेवकूफ जनता को या अधर्मी, निर्मोही, घमंड में चूर शासक वर्ग को? जवाब तो खोजना ही पड़ेगा आपको क्योंकि आनेवाली पीढियां सवाल जरूर पूछेंगी।