शिक्षा मानव के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण कङी है और बगैर शिक्षा के मानव का जीवन दानव का हो जाता है ।बच्चों की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बना कर अपने पैरों पर खड़ा करना हैं लेकिन आज डिग्रियों का व्यापार होता नज़र आ रहा हैं!समाज में बहुत से ऐसे लोग मिल जाते हैं जो अपने आप को तो बहुत पढ़ा लिखा मानते हैं लेकिन उनकी हरकतों को देख कर ऐसा लगता है कि व शिक्षित होकर भी अशिक्षित ही है।
आज विद्यालयों में सिर्फ कितावी शिक्षा दी जाती है लेकिन शिक्षा का कतई मतलब यह नहीं है कि किताबों का ज्ञान बल्कि नैतिकता और आसपास की अच्छी बातों का ज्ञान होने के साथ साथ इंसानियत का ज्ञान होना भी बहुत जरूरी है!असली पढ़ा लिखा इंसान वही समझा जाता है जिसके अंदर नैतिकता की भावना हो समाज में अच्छी शिक्षाओं का प्रसार करे और भौतिकवाद में भी अच्छी तरह खुद जिए और लोगों को भी अच्छी तरह जीने की सलाह दे! देश की हर समस्या का हल निकालने के लिए पढ़ें लिखे नागरिकों का बहुत बढ़ा योगदान हो सकता है लेकिन यह तभी संभव है जब नागरिक किताबी पढ़ाई लिखाई के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक भी पढ़ें।
हमारे समाज में जब भी कोई अनैतिक कार्य होता है या नौजवानों द्वारा कोई गलत रास्ता अपना लेता हैं या जो कोई भी अनैतिक कार्य करता है या फिर गलत रास्ता अपनाता है तो क्या उसके पास अपना दिमाग नहीं होता है! जो वह गलत कामों के बुरे परिणामों के नतीजे बारे सोच नहीं सकता है? अगर कोई सही रास्ते पर जा रहा हो और आगे गड्ढा आ जाए तो क्या वह खुद उसमें छलांग कर अपनी जिंदगी खराब कर सकता है? शायद नहीं! इसलिए पहले हम लोगों को अपने आप को सुधारना होगा और यह तभी संभव है जव हम सिर्फ किताबी शिक्षा ग्रहण नां कर मानवता की शिक्षा भी ग्रहण करें। तभी तो स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि कितावी शिक्षा हमें कितावी ज्ञान दे सकती है लेकिन अगर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना है तो खुद के भीतर के मानव को जगाईये