कृष्णमोहन झा
नवीनतम जानकारी के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम होने के लगभग 6 माह बाद गत 2 फरवरी को पहली बार देश भर में सभी विश्वविद्यालयों के द्वार खोल दिए गए और इनमें न केवल छात्रों बल्कि छात्राओं को भी अध्ययन करने की अनुमति तालिबान सरकार ने दी यद्यपि पूर्वी जलालाबाद स्थित एक विश्वविद्यालय में लड़कियों के लिए अलग प्रवेश द्वार से अंदर जाना संभव हो सका । देश के कुछ अन्य निजी विश्वविद्यालयों में छात्राओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिल सकी। 6 माह के अंतराल के बाद देश भर में सभी विश्वविद्यालयों के दरवाजे खोल देने के लिए तालिबान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से प्नशंसा भले हासिल कर ली हो परंतु अभी भी हकीकत में स्थिति कुछ अलग हो सकती है। यह भी बताया जाता है कि और एक परन्तु वहां के अधिकांश प्रांतों में स्कूलों और कालेजों के द्वार लड़कियों के लिए अभी तक नहीं खुले हैं। अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ने पर तालिबान सत्ता बीच बीच में यह आश्वासन दे देती है कि जल्द ही लड़कियों को भी स्कूलों और कालेजों में जाकर अध्ययन करने का अधिकार मिल जायेगा परन्तु तालिबान सरकार ने उसकी कोई निश्चित तारीख कभी नहीं बताई और महिलाओं के प्रति तालिबान की संकीर्ण मानसिकता को देखते हुए इसमें भी संदेह ही है कि अगर वह लड़कियों के लिए स्कूल और कॉलेज खोलने की निश्चित तारीख घोषित कर भी दे तो अपनी घोषणा को सचमुच में अमली जामा पहना देगा। तालिबान सरकार के संस्कृति और सूचना मंत्री जबीहुल्लाह मुजाहिद ने हाल में ही यह घोषणा की है कि आगामी 21 मार्च को अफगान नववर्ष के शुभारंभ के दिन उनकी सरकार का शिक्षा विभाग देश भर में लड़कियों के सभी स्कूल और कॉलेज खोलने पर विचार कर रहा है परंतु इसके साथ ही वे यह भी कहते हैं कि लड़कियों के पर्याप्त छात्रावास की कमी इस रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है ।हजीबुल्लाह के अनुसार लड़कियों के पृथक छात्रावास इसलिए जरूरी हैं ताकि जब लड़कों के स्कूल और कालेज आते जाते वक्त लड़कियां छात्रावास में रुक सकें। तालिबान सरकार चाहती है कि पहले लड़कियों के लिए स्कूल और कॉलेजों में मुख्य प्रवेश द्वार और कक्षाओं में उनके लिए अलग बैठक व्यवस्था तय करना जरूरी है । गौरतलब है कि अफगानिस्तान के केवल 10 प्रांतों में लड़कियां कक्षा सात के बाद भी स्कूल जा सकती हैं।बाकी प्रांतों में कक्षा सात के बाद उनके लिए शिक्षा संस्थानों के दरवाजे कब खुलेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। अब तक का इतिहास देखते हुए तालिबान के लिए अपनी बात से मुकर जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखने की दकियानूसी सोच तालिबान की पहचान बन चुकी है । गौरतलब है कि 2001 के पूर्व भी जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था तब भी स्कूलों और कॉलेजों के द्वार लड़कियों के लिए बंद कर दिए गए थे।यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा यह कोई नहीं जानता। तालिबान की सत्ता में महिलाओं को न तो बाहर काम करने की इजाजत है और न ही अब लड़कियां अब स्कूल अथवा कालेज जाकर पढ़ाए जारी रख सकती हैं। अफगानिस्तान की महिलाएं तालिबान के डर से अपने घरों से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा पा रही हैं। अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान ने महिलाओं के हित में अनेक घोषणाएं की थीं परन्तु अब उनको जिस तरह घर की चारदीवारी के अंदर ही रहने के लिए विवश कर दिया गया है उससे यह साबित हो गया है कि तालिबान द्वारा महिलाओं के हित में पहले की गई सारी घोषणाएं महज दिखावा थीं । सत्ता पर काबिज होने के बाद जब तालिबान की ओर से यह कहा गया था कि तालिबान 2.0 में महिलाओं को सत्ता में भी प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाएगा तब महिलाओं को उम्मीद की नई किरण दिखाई दी थी परंतु तालिबान सरकार का गठन हुआ तो तालिबान सरकार के प्रवक्ता ने यह कहकर तालिबान का असली रूप उजागर कर दिया कि महिलाएं घर के सारे काम करने के लिए होती हैं। उनका काम घर में रहकर बच्चे पैदा करना है । अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता कायम होने के बाद सबसे ज्यादा दहशत में वहां की महिलाएं हैं जिन्हें किसी पुरुष साथी के बिना घर के बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। खुद को घर में कैद कर चुकी महिलाओं को भी हमेशा यह भय बना रहता है कि न जाने कब कोई तालिबानी उनके घर में बलात घुस कर उन्हें उठाकर ले जाए और अपने साथ शादी करने के लिए मजबूर कर दे। अफगानिस्तान में लड़कियों के लिए स्कूल कालेज के द्वार खोलने हेतु तालिबान सत्ता पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है परंतु तालिबान इस मामले में अपनी दकियानूसी सोच छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। तालिबान सरकार के प्रवक्ता ने इस बारे में सरकार की ओर से सफाई देते हुए कहा है कि इस्लामी कानून की व्याख्या के अनुसार छात्रों को सख्ती से अलग करने की व्यवस्था सुनिश्चित हो जाने के बाद अफगानिस्तान में लड़कियों को स्कूल कालेजों में जाकर पढ़ाई करने की अनुमति दी जाएगी। प्रवक्ता का कहना है कि अभी छात्राओं के लिए पर्यावरण सुरक्षित नहीं है। गौरतलब है कि तालिबान की इस घोषणा के बाद नोबल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने तालिबान सरकार से अफगानिस्तान में लड़कियों के लिए पुनः स्कूल खोलने की अपील की थी। मलाला ने इस्लामिक देशों के नेताओं से भी यह अपील की थी कि वे तालिबान सरकार को यह बताएं कि इस्लामी कानून में लड़कियों की शिक्षा वर्जित नहीं है। मलाला ने साफ साफ कहा था कि दुनिया में अफगानिस्तान ही एकमात्र ऐसा देश है जहां लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी गई है।
अफगानिस्तान में सत्ता की बागडोर तालिबान के पास आने के बाद लड़कों के स्कूल तो पहले की तरह शुरू हो ग ए हैं परंतु लड़कियों के स्कूल न खोलने के पीछे सरकार यह तर्क दे रही है कि अभी तक लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल न बन पाने के कारण उनके स्कूल जाने पर पाबंदी लगाई गई है । देश में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वालों का कहना है कि पूरे अफगानिस्तान में लड़कियों के लिए अलग स्कूल बनाए गए हैं जहां सफाई कर्मचारी भी महिलाएं ही नियुक्त की गई थीं फिर उनके लिए सुरक्षित माहौल उपलब्ध न होने का तालिबानी तर्क लड़कियां को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने का बहाना मात्र है। पूर्व में स्कूल प्रशासक के पद पर कार्य कर चुकी तोरपेकाई मोमंद बताती हैं कि अफगानिस्तान में लड़कियों के जो माध्यमिक स्कूल अतीत के वर्षों में खोले गए हैं उनमें हमेशा महिला शिक्षकों और कर्मचारियों को नियुक्त किया जाता था। अफगानिस्तान के अधिकांश परिवारों की महिलाओं ने हमेशा रोजगार के लिए शिक्षण का क्षेत्र ही चुना है लेकिन तालिबान के पास सत्ता आ जाने के बाद स्थिति यह है कि लगभग एक लाख महिला शिक्षकों को कई माह के भुगतान ही नहीं किया गया और अब इसमें संदेह ही है कि उन्हें उनके बकाया वेतन का भुगतान करने की उदारता कभी तालिबान शासक दिखाएंगे।
कंधार में स्कूल न खुलने से निराश दो लड़कियों ने घर में ही पेंटिंग सेंटर खोल लिया है और वे दूसरी लड़कियों को अपने इस पेंटिंग सेंटर में चित्र कला सिखाने लगी हैं। उनके सेंटर में पेंटिंग सीखने के लिए आने वाली लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है । पेंटिंग सेंटर की संचालक इन दो लड़कियां से अब देश की उन दूसरी लड़कियों को भी घर में रहकर ही कुछ रचनात्मक कार्य प्रारंभ करने की प्रेरणा मिल रही है जो पिछले कई माहों से अपने स्कूल न खुलने की वजह धैर्य खोने लगी थीं। देश के अन्य हिस्सों में भी महिलाओं ने घर पर रहकर अपने लिए काम खोज लिए हैं लेकिन कभी भी तालिबान के कोपभाजन बनने के डर उन्हें हमेशा सताता रहता है। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बिना इस स्थिति में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)