नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की सियासत गरमा चुकी है। पंचायत चुनाव में शिकस्त के बाद भाजपा के अंदरखाने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटाने को लेकर मुहिम तेज हो गई है। राज्य के कुछ असतंुष्ट विधायकों से बात की गई। मामला दिल्ली तक पहुंचा। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से मुलाकात की। तुरंत बाद जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा को दिल्ली तलब किया गया। बावजूद इसके नतीजा कुछ नहीं निकला है।
अब सवाल उठता है आखिर क्यों ? यदि भाजपा नेतृत्व चाह लें तो क्या एक राज्य के मुख्यमंत्री को नहीं बदल सकती है ? या जो दिख रहा है या दिखाया जा रहा है, कहानी उससे अलग है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि लडाई तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच रहीं। तलवारें हमेशा खींची रहीं। मनोज सिन्हा कभी धुरी बने थे, उन्हें संवैधानिक पद देकर किनारे लगा दिया गया।
अब फिर राजनीति में वो आ गए। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि यूपी में भाजपा को सत्ता दिलाने में सुनील बंसल का अहम (Sunil Bansal)की इच्छाएं तो नहीं जाग गई है ? अरविंद शर्मा को उत्तर प्रदेश भेजना क्या दिल्ली से योगी को नियंत्रित करने की सोच थी, जिसे योगी (Yogi Adityanath) समझ गए और अरविंद शर्मा को वेटिंग में रखा हुआ है ? भाजपा के केंद्रीय संगठन महाससिच बीएल संतोष (BL Santosh) और उत्तर प्रदेश के प्रभारी राधामोहन सिंह ने जो विधायकों और मंत्रियों से बात की, उसकी रिपोर्ट दिल्ली के लोगों ने पढ लिया है। उसके बाद भी निर्णय क्यों नहीं लिया जा रहा है ?
इसमें संघ (RSS)और संत समाज को भी टटोलने की कोशिश हो रही है। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) महज एक राजनेता भर नहीं हैं। वे हिंदू वाहिनी के सर्वेसर्वा और गोरक्षापीठाधीश्वर भी हैं। उनके अनुयायियों को भी शांत रखना होगा। भाजपा संघ और संत समाज को कैसे भरोसे में लेगी, इसको लेकर दिल्ली में मंथन जारी है। इस मंथन से निकले विष और कौन धारण करेगा और किसके हिस्से अमृत कलश लगेगा, सभी की नजरें इसी पर है।