रंगमंच और उसका अस्तित्व क्या है? क्या होना चाहिए?

उत्तीर्ण कलाकार और निदेशक प्रियंका शर्मा क्या कहती हैं? ऐक लेख वर्ल्ड थियेटर डे पर

“इस राह पर जो सब पर गुजरती है वही हम पर भी गुजरी” शुरू शुरू में घर वाले इसके लिए राजी नहीं थे लेकिन समय जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया हालात थोड़े से बेहतर हुए हालांकि शुरुआत में बड़ी मुश्किल हुई लेकिन इन मुश्किलों ने रंगमंच का रंग गाढ़ा ही किया फीका नहीं पड़ने दिया और आज जब ये लेख लिख रही हूं तो सोचती हूं कि मैं किसी एक पड़ाव पर तो पहुँची हूँ अब तक मैं लगभग 100 नाटको के 500 से अधिक शो कर चुकी हूं मेरा अपना एक ग्रुप है जिसमें करीब 30 से 40 कलाकार है और अब तक हमने कुछ 10- 15 नाटकों का निर्देशन भी किया है।दिल्ली में तफ़रीह थिएटर फेस्टिवल नाम का पहला गार्डन फेस्टिवल का भी आयोजन करते है ।

हालांकि मंजिल अभी बहुत दूर है लेकिन फिर भी अपने 16- 17 साल के अनुभव से कह सकती हूं की रंगमंच जितना समय और जितना मेहनत आपसे करवाता है यह उससे ज्यादा सलाहियत भी आपको देता है ,अभिव्यक्ति के माध्यमों में पारंगत कर देता है जो आपको भावना के ऐसे स्तर पर ले जाते हैं जहां आपके पास पाने के लिए सब कुछ है और कुछ खोने का डर नहीं । लोग अक्सर पूछते हैं की थिएटर से क्या हासिल होता है? उन्हें समझना पड़ेगा कि थिएटर करके कुछ नहीं मिलता बल्कि थिएटर करना ही हासिल है। लोगों ने थिएटर को फिल्म टीवी में पहुचने का एक जरिया भर मान लिया है हमें समझना होगा कि थिएटर कोई पायदान नहीं है जिस पर चढ़कर किसी और जगह पर पहुंचा जा सके इसका इस्तेमाल केवल खाली जगह या समय भरने के लिए नहीं किया जा सकता कि आप कहीं कुछ नहीं कर रहे हैं ये भी सच है कि सिर्फ और सिर्फ थिएटर करके शायद इतना पैसा नहीं कमाया जा सकता जितना एक टीवी सीरियल या फिल्म करके कमाया जा सकता है और यह बात गलत भी नहीं है क्योंकि वास्तव में हमारे शहरों में नाटक करने के हालात कुछ ऐसे ही बन गए हैं जबकि पहले ऐसा नहीं था अब ऑडिटोरियम्स का किराया रिहर्सल करने की जगह, कॉस्टयूम, आने जाने का किराया बहुत बढ़ गया है लेकिन फिर भी मैं मानती हूं कि थिएटर करना जरूरी है और यह इसलिए जरूरी नहीं है कि एक कमाई का जरिया है बल्कि यह आपको जीवन जीने का सलीका सिखाता है या आपकी बेतरतीब जिंदगी को बड़े करीने से आपके सामने लाकर खड़ा कर देता है, आपके व्यक्तित्व को गहराई देता है, आपमें सोचने समझने की शक्ति पैदा करता है , मानवीय संवेदनाओ को अनुभूति के स्तर पर जीने का मौका देना , संवेदनशील बनाता है ,आपको ये सलाहियत देता है कि आप अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सके … वास्तव में थिएटर आपको एक उपजाऊ मिट्टी बनाता है जिसमे आप जैसा भी बीज डालेंगे वो फलेगा – फूलेगा … और एक्टिंग से जुड़े लोगों के लिए ही नही बल्कि सबके लिए ज़रूरी है ।