होली पर क्या कया दहन करें….

फिर मनाते हैं होली और अपनी पुरानी अनावश्यक कामनाओं को जलाते हैं !

नई दिल्ली। होली पर हम सब मस्त और रंग रंगीले हो जाते हैं और दूसरों को भी अपने प्यार में रंग डालते हैं । होली उल्लास, खुशी और मस्ती का त्योहार है । होली को रंगों की होली, सिर्फ जल की होली यानी कभी फूलों की होली के रूप में मनाने की बात आती है और सभी रूपों में मनाई जाती है । आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री गुरु रविशंकर ने एक नया विचार दिया है होली के अवसर पर कि अपनी पुरानी अनावश्यक इच्छाओं को होली में जलाकर, नये उद्देश्यों के लिए जगह बनायें ! हालांकि कामनाओं के बिना मनुष्य जीवन बिल्कुल ही नीरस माना जायेगा लेकिन पुरानी अनावश्यक कामनाओं को राख कर जीवन में आगे बढ़ना होगा । उनका कहना है कि होली उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो हिंदू केलेंडर के अनुसार आखिरी पूर्णिमा होती है । इसीलिए हमारे देश में उस आखिरी पूर्णिमा से पहले पुरानी और अनावश्यक वस्तुओं की होलिका जलाने की परंपरा है । आप अपने मन में जो भी पुरानी कामनाएँ इकट्ठी करके रखते हैं, उन्हें होलिका में जला डालना चाहिए । कामनाओं को जलाने का अर्थ है, तृप्त हो जाना, पूर्ण हो‌ जाना, समर्पित हो जाना ! पुरानी कामनाओं को समाप्त करने से एक नया जीवन शुरू हो जायेगा ! होलिका जलाने के दूसरे दिन लोग सारी शत्रुता भुला कर एक दूसरे को‌‌ रंग लगाकर मानवता और एकता का उत्सव मनाते हैं ! इसीलिये तो कहते हैं, बुरा न मानो‌‌ होली है‌ !
जब जल संकट बढ़ गया, तब सिर्फ रंगों और फूलों की होली का आह्वान किया जाने लगा । यह होली का बदलता स्वरूप है, जिससे होली का महत्त्व कम नहीं हो जाता । होली एक उल्लास और उमंग का उत्सव है न कि सिर्फ एक परंपरागत उत्सव भर है यह ! हमारे देश के दो‌ बड़े‌ उत्सव हैं -होली और दीपावली ! दोनों के संदेश स्पष्ट हैं ! होली जहां जीवन को उमंग और उल्लास से जीने का संदेश देती है, वहीं दीपावली अंधेरे से प्रकाश की ओर यानी निराशा से आशा की ओर जाने का संदेश देती है और यह भी संदेश देती है कि अन्याय को मत सहो और इसका खात्मा करो !