कोरोना काल में आयुर्वेद के प्रति लोगों का का भरोसा कायम है। इम्युनिटी के लिए लोग आयुर्वेद की ओर मुड़े। क्या आुयर्वेद कोरोना के लिए कारगर है ? हां, तो कैसे ? इसी मसले पर हमने बात की वड़ोदरा आयुर्वेद कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर कमलेश भोगयाटा से। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :
प्रश्न : कोविड-19 के इलाज में आयुर्वेद किस तरह से मददगार है?
उत्तर : जब भी मौसम बदलता है, यानी जब सर्दी से गर्मी आती है या गर्मी से सदी तो आयुर्वेद में इस समय को ऋतु संधि कहा गया है। इस ऋतु संधि में कई सारे वायरस सक्रिय होते रहते हैं। इसलिए लोग अधिक बीमार होते हैं। इस दौरान लोगों की इम्युनिटी भी काफी कमजोर होती है। आयुर्वेद के हिसाब से ये कह सकते हैं कि हमारा शारीरिक बल, हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
वायरस का हम समूल नाश नहीं कर सकते हैं। जब तक यह पृथ्वी है, तब तक वायरस का अस्तित्व रहेगा। नए-नए वायरस आएंगे। आयुर्वेद कहता है कि हम अपना इम्युनिटी पावर बढ़ाएं, ताकि इस प्रकार के वायरस से लड़ने की शक्ति हमारे पास हो।
आयुर्वेद (हमने) कोविड में दोष प्रत्यनिक/ आधारित चिकित्सा दी। आयुर्वेद में हम सबने प्रकृति को ध्यान में रखकर इलाज किया है और कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति की भूख, नींद, मेटाबॉलिक रेट अलग है। भौगोलिक संरचना अलग-अलग है, तो आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति का इलाज भी बिल्कुल अलग है।
आयुष मंत्रालय ने कॉमन एक प्रोटोकॉल बनाने की कोशिश की थी और वो प्रटोकॉल बहुत अच्छा था। हमारा फिजिकल और मेंटल कांस्टीट्युशन है, वो तीन तत्व वायु, पित्त, और कफ से बना है। मानसिक ढांचा सत्व, रज और तम से बना है। आयुष मंत्रालय ने जो प्रोटोकॉल बनाया है, उसके सहारे तीनों दोषों को बैलेंस किया जा सकता है। कोविड दवा के रूप में हमने दशमूल क्वाथ, संशमनि वटी दिया है।
प्रश्न : क्या सभी मरीजों को समान उपचार दिया गया ?
उत्तर : काफी हद तक। बाकि जब हम कोविड वार्ड में काम कर रहे थे तो मरीजों की अतिरिक्त जरूरत क्या है, इस पर हम ध्यान देते थे। हम कॉमन प्रोटोकाल के हिसाब से तो उपचार देते ही थे लेकिन कुछ ऐसे भी मरीज थे, जिनमें स्पुटम बहुत ही एग्रीगेट हो रहा था तो इजी इंपल्शन हो सके इसके लिए हम बहेड़ा सिरप देते थे। जहां कफ ज्यादा निकल रहा था तो वहां हमने ये दिया।
दूसरी लहर में तो हमारे सामने काफी सारी इमरजेंजीस आई थी। मुख्यरूप से कहा जाए तो इसकी दो वजहें थीं – एक तो वायरस ने अपना स्ट्रेन चेंज किया था और दूसरा मरीजों को ऑक्सीजन वाले बेड नहीं मिल रहे थे। वेंटीलेटर कम थे।
दूसरी लहर आयुर्वेद की एल्कोहल बेस्ड प्रीपरेशन और मेटल प्रीपरेशन जो हर्बोमीनरल प्रीपरेशन है वो आयुर्वेद की इमरजेंसी मेडिसीन है, के माध्यम से SPO2 लेवल काफी ज्यादा आया। लंग्स के जो ब्रोंकेज होते हैं वो डायल्यूटेड हो गए जिस वजह से ऑक्सीजन का कंजम्पशन अच्छी तरह से हो सके। दूसरी लहर में हमने कोविड की इमरजेंसी मेडिसीन जो आयुष के प्रोटोकॉल में थी, उसके अलावा भी मरीज की जरूरत को देखते हुए अन्य दवाओं का उपयोग किया।
प्रश्न : कोविड से लड़ने के लिए आयुर्वेद के जरिए हम ख्ुद को कैसे तैयार कर सकते हैं ?
उत्तर : आयुर्वेद सबसे अधिक इम्युनिटी पर ही ही फोकस करता है और दूसरा योगिक therapy जिसे हमने मरीजों को दैनिक चर्या में शामिल करने की सलाह दी और लोगों को जागरूक किया कि आप रोजाना प्राणायाम करें। उससे SPO2 लेवल काफी अच्छी तरह बढ़ता है।
यह पूरी तरह से एक वैज्ञानिक तरीका है। प्राणायाम के दौरान सांस पूरा अंदर लेना पूरक सांस को रोकना (कुंभक) और सांस को छोड़ना (रेचक), से ब्रीथ साइज कैपेसिटी बढ़ती है। अलग अलग तरीके के प्राणायाम, सूर्य नमस्कार भी लाभदायक हैं। योगशास्त्र के अनुसार, पूरे शरीर में एक एनर्जी का फ्लो है, जो किसी भी कारण से कहीं भी जब डिस्टर्ब होता है तो हमें बीमारी होती है।
हम स्वास्थ्य रहें, इसके लिए हमें अपने खान-पान पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। जैसा अन्न, वैसा तन और मन। कोविड में लंग्स पर काफी प्रभाव पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार, लंग्स कफ का स्थान है। वहां जाएंगे तो वहां कफ की वृद्धि होगी। इसलिए कफ ना बढे यह भी हमें देखना है। यह केवल दवा से नहीं रूक सकता है, इसके लिए हमें अपने आहार यानी भोजन में विशेष सतर्कता बरतनी होगी। आयुर्वेद के लाइन ऑफ ट्रीटमेंट में दवा के साथ आहार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। हमें प्रोटीन लेना चाहिए, गरम पानी या मूंग का पानी, या मूंग की दाल, बीमारी के शुरुआती स्टेज में देना जरूरी है। आयुर्वेद में हम इनिशियल स्टेज में दही, दूध, व दूध वाली चीजें जैसे पनीर आदि लेंगे, तो दोष बढ़ेंगे।
अगर डाइट और मेडिसिन उन दोनों के इफेक्ट एक दूसरे से अलग अलग या विरोधाभासी रहे तो डाइट भी मेडिसिन को ऑब्सट्रैक्ट करता है और मेडिसिन भी डाइट को ऑब्सट्रैक्ट करती है।
प्रश्न : क्या हम आयुर्वेद को एलोपैथ के साथ इंटीग्रेट कर सकते हैं ?
उत्तर : आयुष के कुछ इंटीग्रेटेड सेंटर हों। कोविड के और कुछ ऐसे सेंटर हो जो आयुष के हों, जहां पर आप माइल्ड से मॉडरेट पेशेंट्स को इनिशियली एडमिट कर सकें। आज अगर मॉडरेट परसेंट पेशेंट वाले सीवियर हो जाएं तो ही उनको इंटीग्रेटेड सेंटर में शिफ्ट करना चाहिए। हमने सर्वे भी किया था और पेशेंट को ट्रीटमेंट भी दी थी। हमने यह देखा था कि माइल्ड से मॉडरेट पेशेंट्स में अगर हम आयुष को इंप्लीमेंट करें , तो उसमें माइल्ड से मॉडरेट और मॉडरेट से सीवियर केस में कन्वर्ट होने वाले 5 से 10 प्रतिशत ही है। यह ट्रीटमेंट बहुत ही कॉस्ट इफेक्टिव होता है। यह सुलभ भी है। कुल मिलाकर यह मेरा कोरोना के पहले लहर और दूसरी लहर के दौरान के अनुभव का परिणाम है। हालांकि, इस पर और भी डिबेट और डिस्कशन हो सकते हैं।