Yoga, आपके पास तो है नेचुरल ऑक्सीमीटर, इस्तेमाल तो करो

अनुलोम विलोम का सही तरीका जानकर आप बहुत-सी बीमारियों का खात्मा बिना दवा के कर सकते हैं। बस, जरूरत है इसे नियमित करने की।

नई दिल्ली। कोरोना की पहली लहर देखी। फिर दूसरी लहर देखी। अब तीसरी लहर का डर सता रहा है। अच्छा हो कि तीसरी लहर हमारा बाल भी बांका नहीं कर पाए। इसके लिए आपको सावधान होना पड़ेगा। कोरोना से जुड़े सभी प्रोटोकाॅल को अपनाते हुए आपको खान-पान और नेचुरल ऑक्सीमीटर का प्रयोग करना होगा। नेचुरल ऑक्सीमीटर के नाम से आप हैरान हैं क्या? यह आपके पास ही है। इसे खरीदना नहीं पड़ेगा। बस, जरूरत है इसे खोजने और सही व नियमित प्रयोग की। यह नेचुरल ऑक्सीमीटर है अनुलोमविलोम।

जीने के लिए Oxygen की आवश्यकता होती है। यह वातावरण में मिलता है। इसे अपको लेना आना चाहिए। उचित तरीके से। तभी आप जिएंगे और अनेक बीमारियों को अलविदा कहेंगे। इस प्रगतिशील युग ने जहां अनेक सुख-सुविधाओं के साधन जुटाए हैं, वहीं मानसिक अप्रसन्नता, चिंता, शोक, क्रोध आदि की स्थितियां भी पैदा की हैं, जिनसे मस्तिष्क, हृदय, आत्मा, ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेंद्रियां प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती हैं। हमारे शरीर में रक्त वाहिनी धमनियों में जो रक्त दौड़ता है उसको दौड़ने की गति हृदय से मिलती है, जो दिन-रात पम्पिंग मशीन की तरह कार्य करते हुए रक्त को पम्प करता रहता है। इसे दिल की धड़कना कहते हैं।

हृदय के दबाव से रक्त धमनियों में पहुंचता है और सारे शरीर में भ्रमण करते हुए वापस हृदय के पास लौट आता है। हृदय रक्त को शुद्ध करके वापस शरीर में भ्रमण के लिए धमनियों में भेज देता है। रक्त पर हृदय की पम्पिंग का जो दबाव पड़ता है इसे रक्तचाप कहते हैं। इस प्रकार ब्लड प्रेशर होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। कोई रोग नहीं है पर जब कुछ कारणों से यह दबाव बढ़ता है तो इसे उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) कहते हैं और यदि दबाव कम होता है तो इसे निम्न रक्तचाप (लो बीपी) कहते हैं। उच्च रक्तचाप आरामतलब वर्ग का रोग है। जैसे बुद्धिजीवी, वकील, लेखक, अधिक धन-धान्य से संपन्न व्यक्ति एवं चिंतनशील वैज्ञानिक आदि।

एलोपैथिक औषधियों का अंधाधुंध प्रयोग भी इस रोग का कारण है। गांवों की अपेक्षा यह रोग शहरों में अधिक पाया जाता है। यह रोग मनुष्य के शरीर में चोर दरवाजे से प्रविष्ट होता है। जिसका प्रारंभ में मनुष्य को नहीं पता चलता है, और यह शरीर में अच्छी तरह अपना थान बना लेता है। इसीलिए इस रोग को साइलेंट किलर के नाम से जाना जाता है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि प्राणायाम (आक्सीजन) के बिना जीवन संभव नहीं है।

अनुलोमविलोम

योगियों ने इस प्राणायाम का नाम नाड़ी शोधन प्राणायाम या फिर लोम-विलोम प्राणायाम इसलिए रखा है क्योंकि इसके अभ्यास से हमारे शरीर की 72 हज़ार नाड़ियों की शुद्धि होती है।

विधि – अनुलोम-विलोम प्राणायाम को बाए नासिका से प्रारम्भ करते हैं। अंगुष्ठ के माध्यम से दाहिनी नासिका को बंध करके बाई नाक से श्वास धीरे-धीरे अंदर भरना चाहिए। श्वास पूरा अंदर भरने पर ,अनामिका व् मध्यमा से वामश्वर को बंध करके दाहिनी नाक से पूरा श्वास बाहर छोड़ देना चाहिए। धीरे-धीरे श्वास-पश्वास की गति मध्यम और तीव्र करनी चाहिए। तीव्र गति से पूरी शक्ति के साथ श्वास अन्दर भरें व बाहर निकाले व् अपनी शक्ति के अनुसार श्वास-प्रश्वास के साथ गति मन्द, मध्यम और तीव्र करें। तीव्र गति से पूरक, रेचक करने से प्राण की तेज ध्वनि होती है। श्वास पूरा बाहर निकलने पर वाम स्वर को बंद रखते हुए दाए नाक से श्वास पूरा अंदर भरना चाहिए तथा अंदर पूरा भर जाने पर दाए नाक को बंद करके बाए नासिका से श्वास बाहर छोड़ने चाहिए। यह एक प्रकियापुरी हुई। इस प्रकार इस विधि को सतत करते रहना। थकान होने पर बीच में थोड़ा विश्राम करे फिर पुनः प्राणायाम करें। इस प्रकार तीन मिनिट से प्रारम्भ करके इस प्राणायाम को १० मिनिट तक किया जा सकता है।

नोट – इस प्राणायाम को सभी लोग कर सकते हैं। इसे करते समय मुंह से श्वास नहीं लेना चाहिए। किसी भी प्रकार की असुविधा होने पर प्राणायाम का अभ्यास न करें। श्वास की गति धीमी रखें। कमर, पीठ, रीढ़ और गर्दन बिल्कुल सीधी रखें।